कब मेरे अधिकार लूट
लिए गए,यह मुझे पता ही नहीं चला.स्वतन्त्रता के पूर्व के नौकरशाहों के अत्याचार पढ़
कर लगा कि अब हम इससे स्वतंत्र हो गए हैं. अब नौकरशाह सेवक रूप में हैं या
हमारे बीच के ही हैं. लाँमेकर हम चुनते
हैं,लेकिन सब छलावा निकला. अभी भी लांमेकर या जिले के शीर्ष नौकरशाहों के मुख से
अनायास निकल जाता है कि इस जिले के मालिक हम हैं या आप जो याचक के रूप में खड़े
हैं.
स्वतंत्रता के पूर्व
इन नौकर शाहों को पैदा करने वाले अंग्रेजों ने कलक्टर नाम व पद को समाप्त करने का
प्रस्ताव रखा था, लेकिन इन भस्मासुरों ने यह धमकी दी कि सभी चमक-दमक ख़त्म होकर
आपका (अंग्रेजों का ) शासन भी समाप्त हो जाएगा.
अब हम इनसे मिलने के
पूर्व बाहर बैठे अफसर के द्वारा एक पर्ची भेजकर इंतज़ार करते हैं या इनसे ऊंचे
अफसरों से मिलने के लिए पास बनवाने की मारामारी से होकर गुजरते हैं. चर्चा में यह जाहिर हुआ कि इनको ट्रेनिंग में
यह सिखाया जाता है कि आप किसी को जितना ही इंतज़ार कराकर मिलेंगे ,उतने ही बड़े अफसर
माने जायेंगे. हरिद्वार के गायत्री परिवार में अन्ना हजारे पधारे,इतने प्रभावित
हुए कि मुंह से अनायास निकल पडा कि इस देश के अधिकारियों में करूणा,बेदना,संस्कार
और भारतीय मूल्य भरने के लिए गायत्री परिवार में प्रवास कराना चाहिए. बिधिवत
ट्रेनिंग दिलानी चाहिए.
लूट के बहुत से
रूप हैं जमीन के क़ानून और नियमों में उलझा कर लूटना सबसे सरल है. सर्वे,चकबंदी,मेडबन्दी ,पैमाईस ,बंदोबस्त,सीरदारी ,भूमिधरी,सीकमी, कब्जा, अधिग्रहण इत्यादि के नाम पर खूब लूटा गया. अब नया नाम कम्प्यूटरीकरण है. इसके लिए कमेटी ,अध्ययन दल,मीटिंग,कार्यशाला,इत्यादि का दौर शुरू हुआ. यह मैं
नहीं कह रहा हूँ -
Computerisation of Land Records
THIRTY-THIRD REPORT
LOK SABHA SECRETARIAT
NEW DELHI
में यह कहा गया है.
इस रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि लगभग १००० करोड़
खर्च करने के बाद भी कम्पूटराइजेशन का काम ठीक
नहीं है.केवल राजस्व बिभाग को मजबूत करने का काम किया गया है .
किसी बिभाग का कंप्यूटर न ठीक से काम
कर रहा है न कोई बिभागीय बेवसाईट .अफसर न कम्प्यूटरीकरण के प्रति संजीदा है,न उससे
काम लेना चाहता है.पूछने पर बेशर्मी व दंभ भरा उत्तर कि जब दो से पाँच हजार में
कंप्यूटर पर काम करने वाले हैं तो मुझे
कंप्यूटर पर काम करने की क्या जरूरत है.परिणाम कहीं क्लोन बेवसाईट ,कहीं बेवसाईट
हैक,तो कहीं फीडिंग गलत इत्यादि आज भी हो रहा है.
अब नए नाम के रूप में डिजीटल शब्द पैदा हो गया
है. अब सभी रिकार्ड का डिजिटलाइजेशन होंगा
.रोज टेक्नोलाजी बदल रही है ,अब ३ डी का ज़माना चल रहा है . कोई पूछे कि महोदय कम्पूटराइजेशन का काम पूर्ण हो गया है कि आप
आगे की सोच रहें हैं ,जन सामान्य को मूल
मुद्दा कम्पूटराइजेशन से ध्यान हटाने व अपनी नाकामी छिपाने के लिए डिजिटलाइजेशन
शब्द की इजाद किये हैं. उत्तर-प्रदेश सरकार ने नजूल संबंधी अभिलेखों के समुचित रख
-रखाव के लिए नजूल रजिस्टरों का
डिजिटलाइजेशन कराने के निर्देश दिए हैं. पट्टा करने का आदेश दिया है लेकिन
फ्रीहोल्ड करने पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है.
नजूल का अभी कम्पूटराइजेशन तक पूर्ण नहीं हुआ,नजूल भूमि संबंधी अफसरों की
धींगामुश्ती को मा० उच्च-न्यायालय इलाहाबाद
ने सत्य नारायन कपूर बनाम स्टेट आफ उ०प्र० में बिस्तृत रूप से बर्णन किया
है. इलाहाबाद उच्च-न्यायालय ने उत्तर-प्रदेश
औद्योगिक विकास निगम की याचिका में यह टिप्पणी की कि राजनेताओं और नौकरशाहों द्वारा औद्योगिक विकास के नाम पर गरीब किसानों
की जमीन लेकर उन्हें गरीबी के दल-दल में धकेला जा रहा है .दूसरी ओर कुछ अमीर लोंगो
को गलत तरीके से लाभ पहुंचाते हुए उनके काले धन की खपत कर उन्हें और अमीर बनाया जा
रहा है.न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि देश में ख़ास तौर पर उत्तर-प्रदेश को
बिदेशियों ने हजारों साल तक लूटा,और आजादी के बाद अलग तरीके से आज भी यह लूट जारी
है. प्रकरण यह था कि निगम ने महेश चन्द्र
व एनी को उद्योग लगाने के लिए सिकंदरा (नोएडा) में प्लाट आबंटित किया,इसे १८ माह
में पूरा करने की शर्त रखी गयी थी. फिर निगम ने उसे तरह-तरह के मामले में उलझाए
रखा जिससे आबंटी शर्त पूरी न कर सका. इतने मुकदमों से भी जी न भरा तो आबंटन ही
रद्द कर दिया. इसके बाद महेश चन्द्र सिविल वाद दायर किया जिसमें उनके पक्ष में
फैसला हुआ.अपील भी निगम के खिलाफ गयी.इसके बाद निगम हाईकोर्ट गयी. २६ मई १३ के
दैनिक जागरण के सम्पादकीय में इसे लूटने वाला गठजोड़ शीर्षक से प्रकाशित किया गया है. अफसर और
राजनेता की संपत्ति कैसे दस-बीस और सौ गुना बढ़ जाती है. विकास प्राधिकरण ,आवास
बिकास ,और औद्योगिक विकास के नाम पर किसान की जमीन का अधिग्रहण खुद एक लूट का
उद्योग बन गया है. तंत्र में यह लूट यत्र-तत्र-सर्वत्र आपको देखने को मिल जायेगी.
विकास प्राधिकरण ,आवास बिकास के अधिकारी किशानों की जमीन बिना उसकी अनुमति के जाकर
नापना,नकली पैमाईस, मिट्टी नमूना इत्यादि लेना शुरू कर देंगे ,पूछने पर कह देगे
आपकी जमीन अधिगृहीत करनी है. किसी राजनेता इत्यादि की जमीन होगी तो मामले को उलझा
देंगे जैसे उत्तर-प्रदेश के कुशीनगर की मैत्रेय योजना.
डिजिटलाइजेशन
शब्द THE LAND
TITLING BILL, 2011 में आया है जिसमें यह कहा गया है कि In the
definition “Register” can be defined as digital records……..यह
शब्द २०११ के बिल में आया,लेकिन इस क्षेत्र में कार्य क्या हुआ यह किसी को नहीं
मालूम. १० से १५ जनवरी २०१० में Department
of Land Resources (DoLR), के अफसरों का एक दल अचल संपत्ति के
स्वत्व के रख-रखाव को देखने हेतु आस्ट्रेलिया गया. वहाँ भूमि से सम्बंधित बिभागों
के समन्वय व कार्यप्रणाली तथा कम्पूटराइजेशन,
डिजिटलाइजेशन से प्रभावित हो एक रिपोर्ट प्रस्तुत किया. तब से यह कवायद शुरू हुयी .
परिणाम
के लिए मा० उच्च-न्यायालय इलाहाबाद ने
सत्य नारायन कपूर बनाम स्टेट आफ उ०प्र० तथा Computerisation of Land Records
THIRTY-THIRD REPORT
LOK SABHA SECRETARIAT
NEW DELHI
देखी जा सकती है.
नेशनल
कंपोजिट हेल्थ इंडेक्स के मुताबिक़ मात् व शिशु मृत्यु दर ,कुपोषण के कारण होने वाली मौतों और इलाज में
लापरवाही में देश के १८४ ,उत्तर-प्रदेश के २६ और
रूहेलखंड के सभी ९ जिलों में स्वास्थ्य
सेवा बेहद खराब है. दूसरी
तरफ पेरिस में जारी ओईसीडी आर्थिक सहयोग व विकास संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक़
बेहतर जीवन सूचकांक में आस्ट्रेलिया प्रथम स्थान पर है. पाया गया कि ८४ प्रतिशत
आस्ट्रेलियाई अपनी जिन्दगी से संतुष्ट हैं. इस रिपोर्ट में ३४ विकसित और उभरती अर्थब्यवस्था
वाले देशों के कल्याणकारी कार्यों की तुलना की गयी है.इसमें आवास,आमदनी,नौकरी,शिक्षा,संतुष्टि ,तथा काम तथाजीवन के बीच संतुलन समेत ११ श्रेणियों को
आधार बनाया गया है. अब आस्ट्रेलिया
के भूमि से सम्बंधित बिभागों के समन्वय व
कार्यप्रणाली तथा कम्पूटराइजेशन,
डिजिटलाइजेशन से प्रभावित हो एक रिपोर्ट प्रस्तुत कर देना एक बात है, यहाँ के प्रशासनिक तंत्र के रोड़े में उसे
लागू करना केवल दिवास्वप्न है. वित्त,राजस्व और गृह बिभाग तो अपने को देश और
प्रांत से भी ऊपर मानते हैं, समन्वय क्या
और कैसे होगा??.
राजस्व
बिभाग के समन्वय व कार्यप्रणाली तथा कम्पूटराइजेशन, डिजिटलाइजेशन की हकीकत यह है कि
आज तक लैंड बैंक,लैंड श्रेणी, लैंड मैप इत्यादि का कोई भी कार्य संतोषप्रद नहीं
है.
वित्त
एवं उच्च शिक्षा बिभाग का समन्वय भी देखे---उत्तर-प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयऔर
उससे सम्बद्ध के छात्रों व शिक्षकों का कंप्यूटरीकृत डाटाबेस तैयार करने का काम
२००९ में शुरू किया गया. सभी जानते हैं कि इससे अनियमित तरीके से एक से ज्यादा बार
छात्रों के अनियमित वजीफे भुगतान ,तथा एक से अधिक स्कूलों में अध्यापन कार्य करने
वाले अध्यापकों पर अंकुश लगेगा. कंप्यूटरीकृत डाटाबेस तैयार करने के साफ्टवेयर पर
कई करोड़ रूपया खर्च कर तैयार करा लिया गया है. अब विश्वविद्यालय के पास इस
साफ्टवेयर के स्पेसिफिकेशन के हार्डवेयर नहीं हैं.विश्वविद्यालयों की माँग पर उच्च
शिक्षा बिभाग ने हार्डवेयर के मद में आबंटित तीन करोड़ रूपये की धनराशि को गोरखपुर
विश्वविद्यालय,महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय,और
लखनऊ विश्वविद्यालयों के बीच बांटने का प्रस्ताव वित्त बिभाग को भेजा.वित्त बिभाग
इस पर सहमत नहीं हुआ. दो बिभागों के अहं में कंप्यूटरीकृत डाटाबेस का काम आज तक नहीं हो
पाया.
इसी तरह स्टाम्प एवं निबंधन बिभाग में कंप्यूटर से काम २००५ में शुरू हुआ. उद्देश्य था
कि घर बैठे देश या विश्व के किसी कोने से कोई ग्राम/मुहल्ला तहसील ,जिला को
कंप्यूटर पर डाल कर उसी तरह सभी आवश्यक सूचना जैसे स्टाम्प शुल्क,रजिस्ट्री फीस
तथा रजिस्ट्रेशन नियम इत्यादि प्राप्त कर लेगा जैसे रेलवे का रिजर्वेशन करा लेता
है.ऐसा साफ्टवेयर बनाया गया कि स्टाम्प शुल्क,रजिस्ट्री फीस का किसी भी तरह अपवंचन
नहीं हो पायेगा तथा जन-सामान्य का बहुमूल्य समय बचेगा. आज भी उक्त योजना का यह हाल
है कि आतंरिक आडिट तथा महालेखाकार आडिट द्वारा करोड़ों रूपये स्टाम्प शुल्क की कमी
इंगित होती है,और कंप्यूटर भी चल रहे हैं. जन-सामान्य क्या बिभाग का कोई भी
अधिकारी यह बताने में सक्षम नहीं है कि इतने रूपये का स्टाम्प शुल्क लगा दीजिये और
निश्चिन्त हो जाइए ,भविष्य में कभी भी स्टाम्प कमी का मुकदमा आप पर नहीं चलेगा. यह
भी देखने को मिला है कि वही कलक्टर लिक्विडेटर व कंपनी जज की मीटिंग में किसी
कंपनी की जमीन इत्यादि का मूल्यांकन सुनिश्चित करेगा, तथा बाद में स्टाम्प कमी
निकाल उसकी बाजारू कीमत कुछ और बताएगा. कलक्टर उत्तर-प्रदेश संपत्ति मूल्यांकन
नियमावली के नियम ४ के अंतर्गत बाजार मूल्य के बराबर जिले में सभी संपत्तियों का
सर्किल रेट तय करेगा तथा स्टाम्प कमी के मुकदमें में उक्त नियमावली के नियम ७ की
ब्याख्या करते हुए उसी संपत्ति का बाजार मूल्य कुछ और तय करेगा. सभी सरकारी जमीन
जैसे नजूल इत्यादि के लेखपत्रों पर अदा
स्टाम्प शुल्क पर निष्पादक के रूप में हस्ताक्षर करेगा तथा बाद में उसी
संपत्ति पर स्टाम्प कमी का मुकदमा भी निर्णीत करेगा. जन सामान्य या विश्व के किसी
देश में अफसरों को यह अधिकार नहीं होगा कि स्टाम्प पेपर पर हस्ताक्षर के बाद भी इस
तरह की हरकत करे.
जल, जंगल और जमीन के
अधिकार की लूट कैसे क्यों और कहाँ-कहाँ हुई ,यह सर्वबिदित है. बिकास के नाम पर सभी
नदियाँ कैद हैं. पानी छोड़ने के लिये अध्ययन दल,मीटिंग,कार्यशाला,इत्यादि का दौर शुरू है.सरकार की तरफ से नदी को बांधो के हवाले करना बिकास के लिए
जरूरी बताया जा रहा है,अंतर मंत्रालय कमेटी की सदस्य सुनीता नारायण ,जल-पुरुष
राजेन्द्र सिह तथा अबिच्छिन्न गंगा सेवा के सार्वभौम संयोजक स्वामी
अविमुक्तेस्वरानंद के बीच गंगा में ५१ फीसद जल वापस करने पर सहमति बनती दिखाए दे
रही है. स्वामी जी माँ गंगा की ह्त्या के प्रयास का F.I.R
कर चुके है. गंगा
एक्शन प्लान बड़े पैमाने पर सार्वजनिक धन की बर्बादी वाली योजना ही साबित हुई है।
इससे अधिक निराशाजनक और क्या होगा कि उत्तर प्रदेश सरकार तब भी गंगा को साफ-सुथरा
बनाने में सक्षम नहीं हो पा रही है जब वह उन कारणों से भलीभांति अवगत है जो इस नदी
को प्रदूषित कर रहे हैं। इन कारणों के निवारण के नाम पर शासन-प्रशासन
की ओर से जो कुछ किया जा रहा है उसे कागजी कवायद के अतिरिक्त और कुछ नहीं कहा जा
सकता। बात चाहे उन उद्योगों पर अंकुश लगाने की हो जो अपना दूषित जल गंगा में उड़ेल
रहे हैं अथवा सीवेज शोधन संयंत्रों की क्षमता बढ़ाने की या फिर उनके समुचित रखरखाव
की-किसी
भी मोर्चे पर ऐसा कुछ भी होता हुआ नजर नहीं आता जिससे यह भरोसा हो कि गंगा को साफ-सुथरा
बनाने के लिए गंभीरता से प्रयास किए जा रहे हैं। इस सूचना से उत्साहित नहीं हुआ जा
सकता कि गंगा नदी के
जल को साफ-स्वच्छ
करने के लिए 42 अरब रुपये की एक नई योजना बनाई
जा रही है। इसका कारण यह है कि गंगा के प्रदूषण पर अंकुश लगाने के नाम पर अब तक न
जाने कितनी योजनाओं और कार्यक्रमों पर अमल हो चुका है, लेकिन
सच्चाई यह है कि इस नदी का प्रदूषण कम होने के बजाय दिन-प्रतिदिन
बढ़ता ही जा रहा है। इन योजनाओं पर भारी-भरकम धनराशि भी खर्च की जा चुकी है, लेकिन
क्रियान्वयन की खामियों के कारण गंगा की स्थिति में कोई बुनियादी सुधार होता नजर
नहीं आता। गंगा जल को शुद्ध करने के लिए 42 अरब रुपये की जो नई योजना बनाई जा रही है उस पर
यदि पुराने तौर-तरीकों
और उपायों के आधार पर ही अमल किया जाता है तो इसका हश्र भी वही होगा जो पूर्व की
योजनाओं का हुआ।इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को कड़ी चेतावनी
देते हुए कहा कि हजारों करोड़ रूपये की लागत से बने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चालू नहीं पाए गए तो
जिम्मेदार अधिकारियों पर आपराधिक मामला चलाया जाएगा.इलाहाबाद विकास प्राधिकरण से
पूछा कि गंगा किनारे बेतरतीब तरीके से कालोनी बनाने से उपजे प्रदूषण की रोकथाम के
लिए क्या उपाय किये जा रहे हैं? एसटीपी (सीवेज
ट्रीटमेंट प्लांट )का शोधित पानी गंगा में न छोड़े जाने व अन्यत्र ले जाने
की क्या योजना है? पता नहीं अफसरों को
चिंता क्यों नहीं है??
समुद्र में
तेल-स्रोत की खोज के लिए आबंटन में अनियमितता को कैग इंगित कर चुका है. देश के तालाब
कब,कहाँ गायब हो गए कोई बताने वाला नहीं है.आकाश में 2g,spectrum इत्यादि की लूट सिद्ध हो चुकी है.
जंगल भी खुलेआम चट्टानों में तब्दील किये जा रहे
हैं.पेड़ आप काटेंगे तो जुर्म,लेकिन पेड़ की बलि सरकारी मशीनरी इस दावा के साथ करती
है कि एक पेड़ काटने के पूर्व ९ पेड़ लगाए जाते हैं.कितने ज़िंदा रहते हैं इसका आंकड़ा
कहीं नहीं हैं. उत्तर-प्रदेश में लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने दलित
महापुरुषों की याद में लखनऊ ,नोएडा में बने स्मारकों में १४ अरब ८८ करोड़ का घोटाला
उजागर किया है. दो पूर्व मंत्री,१५ इंजीनियर सहित १९९ लोंगो के नाम हैं.जांच का
सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि स्मारकों के लिए धन आबंटन से लेकर निगरानी तक के कार्य
में सदेह (प्रभावी ढंग से)लगे रहे किसी भी आईएएस का नाम नहीं है.३५ लेखाकार व ५
एलडीए के इंजीनियर के नाम है. रकम वसूली की जानी चाहिए यह भी रिपोर्ट में लिखा
है,लेकिन इसमें संदेह है, क्योंकि अभी तो इस मामले की जांच होनी है और १९९ लोंगो
के कार्यों की सही तरह जांच हो सकेगी ,इस पर भी
संदेह है.इस पर भी संदेह है कि ऐसे सबूत जुटा लिए जायेंगे जो अदालत में उन्हें दोषी बना सके.
सदेह उपस्थित रहने वाले तो इस तर्क से निर्दोष हो गए कि मुख्यमंत्री ने अधिकारियों
से कहा था कि स्मारकों का निर्माण पवित्र कार्य है और इसे पूरी ईमानदारी
,निष्ठा,और समयबद्धता के साथ किया जाय. जो इसको सुना और जिसने कहा वे निर्दोष हैं.
दो पूर्व मंत्री,नीचे के छोटे अफसर सहित १९९ लोग इसको कहते समय उपस्थित नहीं थे ,न
सुने थे. मंत्री नसीमुद्दीन ने तो लोकायुक्त की बैधता पर सवाल उठाते हुए कहा कि
एक्ट में लोकायुक्त का कार्यकाल बढाने का प्राविधान नहीं है और मामला सुप्रीम
कोर्ट में पेंडिंग है जिसमें ४ जुलाई निश्चित है.
उत्तर-प्रदेश का खनन बिभाग लखनऊ ,नोएडा के स्मारकों में
इस्तेमाल मिट्टी,गुलाबी पत्थर ,ताज एक्सप्रेस वे,बौद्ध सर्किट क्षेत्र में बालू
खनन पर रायल्टी चोरी पर पाँच दल बना जांच कर रहा है. क्या जब यह सब(रायल्टी चोरी)
हो रही थी तब उत्तर-प्रदेश का खनन बिभाग अस्तित्व में नहीं था???अफसर के
पास जांच,नोटिस,और जाच में अनियमितता का ब्रह्मास्त्र है.यह अस्त्र पुराना है
लेकिन अचूक है. मेरे जिले के आला अफसर की
बहन की शादी थी .जंगल बिभाग से कीमती लकड़ी से पलंग इत्यादि फर्नीचर बने. फर्नीचर बनाने के
पारिश्रमिक के भुगतान का अनुरोध करने पर उसे इस आशय की नोटिस मिली कि जंगल की लकड़ी
आपके यहाँ पायी गयी है जो फारेस्ट एक्ट के तहत जुर्म है ,क्यों न आपकी दूकान गोदाम
को सील कर दिया जाय इत्यादि-इत्यादि.अब किस तरह वह जान बचाया होगा ,यह अनुमान ही
लगाया जा सकता है.सोनभद्र जिले का यह पुराना मर्ज है,कभी खनन रोक दो,कभी खनन शुरू
कर दो,इन खदान मालिकों को नोटिस दो ,इनके काम को रोक दो,इतने लोंगो पर दबाव डाल कर
किसी बिशेष कंपनी में बिलय करा दो.जाहिर
है खनन बिभाग अब केवल यह काम कर रहा है.एक खनन सुरक्षा निदेशालय है,जो खनन बिभाग
से अनुमति के बाद भी निदेशालय यह आपत्ति लगा रहा है कि पट्टा खनन का रकबा कम है,
पट्टा खनन क्षेत्र से बिजली का तार गया है इत्यादि,भले ही बिद्युत सुरक्षा निदेशालय
उस पर अनापत्ति दे चुका हो.. जैसे एक
पेंशन निदेशालय है जो आपके रिटायरमेंट के
बाद पेंशन में आपत्ति लगा देगा और आपकी पेंशन नहीं मिलेगी,भले ही आप सही-सलामत
वेतन लेते हुए रिटायर हों. .एक प्रमुख सचिव के बिभाग में तो पदोन्नति के बाद पदोन्नत
लोंगो को वेतन,उसका एरियर इत्यादि दिए जा रहे हैं जब कि पेंशन प्रकरण में यह
आपत्ति लगाई जा रही है कि रिटायर लोंगो की पदोन्नति सही नहीं है. क़ानून एक है
लेकिन निहित स्वार्थ उसकी अलग- अलग ब्याख्या करा रहा है. वास्तव में लोग
निदेशालय के पावर को समझ ही नहीं रहे थे.
ओबरा (सोनभद्र) के
बारे में जागरण के मुखपृष्ट पर खबर है कि
बाड़ के नाम पर जंगल बिभाग ने हजारों पेड़ों की बलि चढ़ा दी.सोनभद्र की आइपीएफ
से जुडी आदिवासी –वनवासी महासभा ने हाईकोर्ट में बनाधिकार क़ानून को नाकाम करने का
आरोप लगाते हुए जनहित याचिका दायर की है. आरोप लगाया है कि जिस क़ानून से वन
वासियों व आदिवासियों को लाभ मिलना चाहिए था उसी क़ानून का दुरूपयोग उन्हें
प्रताड़ित करने के लिए शुरू कर दिया गया.बनभूमि पर भौमिक अधिकार प्रदान करने हेतु
बने इस क़ानून का दुरूपयोग व ब्याख्या अफसर ही अधिकार भक्षक बनकर कर रहे हैं.
मनरेगा ( महात्मा
गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी क़ानून )घोटाले में ओबरा उत्तर-प्रदेश में
अव्वल रहा यह भी टिप्पणी है.
९ साल पूर्व मनरेगा
में १०० दिन काम की गारंटी दी गयी थी. C.D.O, B.D.O, A.D.O, V.D.O इत्यादि पता नहीं कितने अधिकारी इसमें लग
गए.राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कमेटी,नेशनल मानीटर्स,क्वालिटी निर्धारण
तंत्र,प्रदेश,जिला,ग्राम कमेटियाँ, ग्राम रोजगार सेवक, इत्यादि नए नौकरशाह भी लग
गए.क़ानून में १०० दिन काम की गारंटी को नौकरशाही की फौज चाट गयी. चाट शब्द मैं जानबूझ
कर प्रयोग कर रहा हूँ, क्योकि अभी भी नौकरशाही तृप्त नहीं है.मनरेगा देश के ६२६
जिलों में चल रही है और २०१२-१३ में वाराणसी मंडल मनरेगा में ६३.९४ करोड़ रूपये दिए
गए थे,जिसमें ४ जिले वाराणसी ,चंदौली,गाजीपुर और जौनपुर है. लगभग १५ करोड़ रू० एक जिले का औसत रहा. अफसरों का
प्रमाण पत्र देंखे “ अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जन जाति ,और गरीबी रेखा से नीचे की
भूमिहीन आबादी जो पहले अमीर भू-स्वामियों के खेतों में बंधुआ मजदूर के रूप में काम
करती थीं,मनरेगा की योजनाओं के कारण भू-स्वामियों के चंगुल से मुक्त हो चुकी हैं “
इस दावे की पोल खोलती कैग (C.A.G)की रिपोर्ट जिसके अनुसार
प्रति ब्यक्ति केवल ४३ दिन का रोजगार दिया गया है. बेचारे अनुसूचित जाति ,अनुसूचित
जन जाति ,और गरीब दोहरी त्रासदी में जानबूझकर डाल दिए गए हैं. न मजदूर रहे न १००
दिन का रोजगार ही मिला .धरातल पर गरीब और
गरीब तथा अफसर सर्व-संपन्न. सूचना का अधिकार व मनरेगा लागू कराने में अहम भूमिका
निभाने वाली सबसे सक्रिय और पुरानी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् (एनएसी) की सदस्य
अरूणा राय ने इसी मुद्दे पर परिषद् से अलग हो गयीं.उन्होंने मनरेगा में काम करने
वालों को न्यूनतम मजदूरी नहीं देने के लिए सरकार को आड़े हाथों लिया .यहाँ तक कहा
कि उन्हें समझ नहीं आता कि भारत जैसा देश कैसे अपने लोंगों को न्यूनतम मजदूरी तक
देने से इनकार कर सकता है. कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद लोगों को न्यूनतम
मजदूरी देने की जगह प्रधानमंत्री ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट के इनकार के बाद भी वे नहीं माने.
शिक्षा के अधिकार की गारंटी की दुर्गति देखना हो तो रेलवे
,बस स्टेशनों पर देखे .अफसरों को आज भी चाय वगैरह देते हुए बच्चे मिल जायेंगे.उन्ही
के सामने होटलों व ढाबों पर बाल श्रमिक प्लेट या झाडू लगाते दीख जाते हैं लेकिन
कोई कार्यवाही नहीं होती है. कोल बस्ती के दर्जनों छोटे बच्चे लकड़ी चुनकर बाजार
में बेचते दिखायी पद जाते हैं. केंद्र व राज्य सरकारें बालश्रम को रोकने के लिए तमाम योजनाओं को चला रहीं
हैं.अभी श्रम प्रवर्तन अधिकारी से पूछें कि जिले में कितने बालश्रमिक हैं,जबाब
रटा-रटाया है-कोई आकडा नहीं है. घरेलू नौकरों को कई अधिकार दिलाने के लिए नई राष्ट्रीय
नीति बन रही है.अफसरों का दावा है कि अगर नई नीति पारित हो जाती है तो भारत न केवल
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की संधियों के तहत घरेलू नौकरों को बेहतर माहौल देने में
सफल होगा बल्कि पहले ही संधि लागू कर चुके उरूग्वे,फिलीपींस,मारिशस जैसे देशों की
श्रेणी में आ जाएगा . शरीर का दायाँ हाथ कुछ करे तथा बाँयां हाथ कुछ तथा दिमाग के
आदेश को न माने यह हाल अफसरों का है.कुछ मंत्रालय इसका बिरोध कर रहे हैं.आपत्ति गृह मंत्रालय –अगर
घरेलू नौकरों को यूनियन बनाने की अनुमति दे दी गयी तो क़ानून व्यवस्था के साथ कई
अन्य समस्याएं खडी हो सकती हैं.मैंने आस्ट्रेलिया में देखा है कि कैसे मानव और
मानव अधिकारों के प्रति लोग,शासन,प्रशासन सजग हैं. मानव की लोग इतनी इज्जत करते
हैं कि कोई भी उससे किसी नीति-अनीति के तहत घर का काम नहीं करा सकता.आप किसी को
मजदूर और वह भी बंधुआ मजदूर की तरह काम नहीं ले सकते.सरकारी मशीनरी ईमानदारी से
गोपनीय सर्वे करती रहती है,और मजदूर तो छोडिये कोई अगर अपने बच्चों से
निर्दयतापूर्वक पेश आता है तो तुरंत पकड़ लिया जाता है और सजा का भागी होता है यहाँ
तो बच्चों व अध्यापकों से पढ़ने-पढ़ाने की जगह स्कूल की इमारत बनवाई जा रही है
क्योकि उसमें निहित स्वार्थ है. यह दोहरी व दोमुँही नीति अफसरों को मुबारक हो. मिड-डे मील घोटाला
में केवल एक जिले मैनपुरी में ६ अफसर फंसे हैं,- मिनिस्ती एस ,दिनेश चन्द्र
शुक्ला,सच्चिदानद दुबे (सभी I.A.S) ह्रदय शंकर चतुर्वेदी,जेबी सिंह, (सभी
P.C.S) के डी एन राम बीएसए .सीबीआई ने १९ करोड़ के घोटाले की
चार्जशीट दाखिल की है.मामला २००८ से २०११ के बीच का है.खाना परोसने वाली गाजियाबाद
की संस्था सर्च ने छात्रो की संख्या के सापेक्ष दोगुना खाना, रविवार या छुट्टी के
दिन का भी भुगतान लिया. उत्तर प्रदेश में लैकफेड
घोटाले की जांच कर रही कोऑपरेटिव सेल की एसआइबी करीब 35 शिक्षा
अधिकारियों के खिलाफ नए सिरे से सफीना (एक विशेष नोटिस, जिसमें तय समय पर हाजिर न होने पर गिरफ्तारी का
प्रावधान) काटने
की तैयारी कर रही है। एक दो दिन में यह नई सूची जारी हो जाएगी। एसआइबी ने पिछले
दिनों दो उप शिक्षा निदेशकों समेत 35 शिक्षा अधिकारियों को सफीना भेजा था, लेकिन
इनमें अधिकांश अधिकारियों के हाजिर न होने से एसआइबी अब उनके ऊपर पुख्ता कानूनी
कार्रवाई में जुट गई है। एसआइबी अधिकारियों का कहना है कि किसी को पूछताछ के लिए
तीन बार सफीना काटा जा सकता है और न आने पर उनके खिलाफ कानूनी घेरेबंदी का काम अदालत
खुद करती है। तीन बार की नोटिस के बाद न आने पर अदालत इन अधिकारियों की गिरफ्तारी
का भी आदेश दे सकती है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के
अन्तर्गत 2009-10
में
मेरठ, गाजियाबाद, मैनपुरी, बिजनौर, बदायूं, लखनऊ, बाराबंकी, महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, बलिया, चंदौली
और औरैया जिलों के 25 विद्यालयों के निर्माण का कार्य लैकफेड को दिया
गया था और इसके लिए 14.53 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। घोटाले की अवधि
में उपरोक्त जिलों में तैनात रहे अफसर नोटिस देने के बावजूद एसआइबी के सामने नहीं
आ रहे हैं। कई अधिकारी आए भी तो वह संबंधित दस्तावेज नहीं लाए। उनको दोबारा आने के
निर्देश दिए गए, फिर
भी उन्होंने अपना पक्ष रखने की कोशिश नहीं की। 6 स्कूल निर्माण में 35 अफसरों
पर हेराफेरी का आरोप है.
सबसे नवीन खाद्य सुरक्षा गारंटी क़ानून है.इससे ७५
फीसदी ग्रामीण और ५० फीसदी शहरी आबादी को सस्ता अनाज देना है.कृषि लागत व मूल्य
आयोग ने लगभग ६ लाख करोड़ रूपये खर्च का अनुमान लगाया है.योजना आयोग का एक गरीब के
भर पेट भोजन की लागत की गणना विवादास्पद रही है,और इस देश में तो गरीबों की पहचान
ही आज भी संदिग्ध है.कौन इस सेवा को देगा,वहीं कुख्यात राशन के दुकानदार, पूर्ति बिभाग इत्यादि समय
पर काम न पूरा करना अफसरों की फितरत है। ऐसा ही कुछ जिला पूर्ति विभाग लखनऊ के
अधिकारियों ने गरीबों के साथ भी किया। लखनऊ के शहरी क्षेत्रों में तीस नंवबर तक 57567 गरीबों
की तलाश की जानी थी लेकिन पंद्रह जनवरी तक 22,529 ही गरीबों को चिह्नित किया जा सका। ऐसे में 35,038 गरीबों
को सस्ते दर पर गेंहू, चावल और चीनी दिसंबर में हीं मिल पाई और जनवरी
में भी यही हाल है। दरअसल जिला पूर्ति विभाग को राजधानी में गरीब ही नहीं मिल रहे
थे। गरीबों को राशन उपलब्ध कराने की सरकार की मंशा पर पानी फेरते हुए जिलापूर्ति
विभाग ने अन्य विभागों से मदद मांगी। सरकार ने राजधानी में बीपीएल राशन कार्ड
धारकों (गरीब
रेखा के नीचे) की
संख्या में 57567 का
इजाफा करते हुए उसे 132049 कर दिया है। यह अतिरिक्त वृद्धि चार माह (मार्च
2013) तक
के लिए केंद्र सरकार ने वाधवा समिति की सिफारिश पर की थी। यह सिफारिश इसलिए की गई
थी कि गोदाम में सड़ रहे अनाज को गरीबों में बांट दिया जाए। इसके बाद शासन ने आठ
नंवबर को जारी आदेश में गोमतीनगर, हसनगंज, हजरतगंज, वजीरगंज, यहियागंज, चौक, राजाजीपुरम और आलमबाग क्षेत्रीय खाद्य अधिकारी
से जुड़े क्षेत्रों में राशन कार्ड बनाने के लिए गरीबों का चयन किया जाना था। उन
गरीब राशन कार्ड धारकों को भी बीपीएल श्रेणी में शामिल किया जाना था, जो
अभी एपीएल धारक हैं। क्षेत्रीय खाद्य अधिकारियों को बीपीएल श्रेणी के राशन कार्ड
धारकों को चिह्नित कर निर्धारित लक्ष्य को गत तीस नंवबर12 तक पूरा करना था, जिससे बीपीएल राशन कार्ड धारकों को दिसंबर माह
से सस्ती दरों पर राशन मिल सके। 15 जनवरी 13 तक निर्धारित लक्ष्य को भेदने
में क्षेत्रीय खाद्य अधिकारी विफल रहे और 39.13 प्रतिशत ही गरीब को तलाश
पाए। लक्ष्य के विपरीत चल रहे जिला पूर्ति अधिकारी लखनऊ ने उप नियंत्रक नागरिक
सुरक्षा, बेसिक
शिक्षा अधिकारी, नगर
शिक्षा अधिकारी, जिला
कार्यक्रम अधिकारी व नगर निगम से बीपीएल श्रेणी के धारकों को तलाशने में मदद
मांगी। हालांकि जिला पूर्ति अधिकारी का कहना है कि दो दिन पूर्व बीपीएल श्रेणी के
कार्ड धारकों का लक्ष्य पूरा कर लिया गया है।जिस सार्वजनिक वितरण
प्रणाली के जरिये निर्धन तबके को सस्ती दर पर अनाज उपलब्ध कराने की योजना बनाई जा
रही है वह भ्रष्टाचार और अब्यवस्था से पूरी तरह ग्रस्त है. अगर आपके पास
टीवी,फ्रिज.या फिर दो पहिया वाहन है ,तो सरकार की नजर में अमीर हो गए हैं.आपूर्ति
बिभाग ऐसे गरीबों के राशन कार्डों को निरस्त करना शुरू कर दिया है. अन्त्योदय और
बीपीएल से आप अपात्र हो गए हैं.क़ानून मंत्रालय ने यह टिप्पणी की है कि खाद्यान्न
वितरण के समुचित ढाँचे के बिना खाद्य सुरक्षा क़ानून नहीं लागू किया जाना चाहिए.
NDTV चैनल पर वाराणसी के बजरडीहा क्षेत्र में
दो १२-१४ साल के बच्चों की भूख से मौत पर चर्चा हो रही थी.सरकारी पक्ष बार-बार यह
जोर देकर कह रहा था कि मौत T.B रोग से हुई है. कोई प्रमाण या
डाक्टर की जांच वगैरह दिखाने में असमर्थ था.कोई दुःख,तकलीफ और सम्बेदना नहीं थी.
29 मई 13 दैनिक
जागरण में जय प्रकाश पाण्डेय ने “
मुख्यमंत्री से शहर (वाराणसी)को चाहिए बहुत कुछ ”
शीर्षक से लिखा है “ -----मगर हम क्या करें जब टाट पर लगे पैबंद टाट से भी
बड़े हों जाँय और भूख का भूगोल पेट के क्षेत्रफल की हद पार कर जाए. पुलिस लाइन
ग्राउंड से कुछ ही दूरी पर बजरडीहा और लोहता जैसे न मालूम कितने इलाकों में जब
सैकड़ों नौनिहाल रीढ़ से पेट की चमड़ी चिपकाए मिचमिचाती आँखों से अपनी जर्जर काया
वाली माँ को देख रहे होते हैं तो इस सूबे के सरदार से कुछ ना मांगे तो मांगे
किससे---------सरकारी अस्पतालों में मेडिकल व पैरा मेडिकल सेक्सन के तीन सौ
विशेषज्ञों की कमी मरीजों को दहलाती है. न मालूम किन विशेषज्ञों के हस्ताक्षर के
बाद अस्तित्व में आये पाण्डेयपुर व चौकाघाट फ़्लाईओवर की निष्प्रयोज्यता भी हमारे
सामने सवालों का अम्बार खड़ा करती है,जब कि उत्तर नदारद
है.------------------------------बीते बरस की सर्दियों में ढाई लाख जरूरतमंदों के
बीच बांटा जाने वाला कम्बल .....अभी बंटा नहीं.अब हो रही है कम्बल बांटने की
तैयारी जब कि तापमान है करीब ४५ डिग्री सेल्सियस .
उल्लेखनीय
है कि वाराणसी के बजरडीहा क्षेत्र में पावर लूम बुनकरों की बस्ती है और इसी
बुनकरों के घर आजकल गरीबी और भूख से मौतें हो रहीं हैं.कागज़ पर इनके खुशहाली के
कार्यक्रम,धरातल पर अफसर की खुशहाली. उत्तर-प्रदेश ने इस बित्तीय बर्ष में पावरलूम बुनकरों की
बिद्युत दरों में में दी जाने वाली छूट की प्रतिपूर्ति के लिए पावर कारपोरेशन को
१२० करोड़ रूपये सब्सिडी स्वीकृत किये हैं. देने वाला भी जानता है कि अगर पावरलूम
को पावर ही मिलता तो बेचारों के बच्चे भूख से क्यों मरते. लेने वाला भी जानता है
कि लूट सके तो लूट........सभी प्रतिपूर्ति का पेमेंट हो जाएगा,
एक
दूसरी प्रतिपूर्ति की लूट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल हुई. २७७ करोड़
रूपये सरकार ने एससीएसटी की पिछली फीस की प्रतिपूर्ति के लिए निदेशक समाज कल्याण
बिभाग को दे दिए हैं जो आज तक उक्त छात्रो को नहीं मिला. इंटरनेट पर छात्रों के
नाम के आगे भुगतान दिखाए जाने पर अनेक जिलों में शिकायत हुई. कोई असर न होने पर
याचिका दाखिल हुई. हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि तकनीकी शिक्षण
संस्थानों में अध्ययन रत छात्रो जिनकी पारिवारिक वार्षिक आय ५४६१२ रूपये है की फीस
प्रतिपूर्ति ११ जुलाई १३ तक कर दी जाय या मुख्य सचिव हलफनामा देकर कारण बताएं कि छात्रों की फीस प्रतिपूर्ति क्यों नहीं की
गयी. क्या नौकरशाही बिना न्यायिक दखल के
किसी सही काम को सही समय तक न करने की कसम खा रक्खी है.
मनरेगा,शिक्षा का अधिकार व खाद्य सुरक्षा में से एक भी
अधिकार उन गरीबों को मिला होता तो इनकी मृत्यु नहीं होती.गरीबों को यह अधिकार इसी
तरह कागज़ पर मिला है.विख्यात अंगरेजी लेखक जी के चेस्टरटन ने सही कहा है – कुछ देशों में गरीबों को कायदे
क़ानून की गवर्नेंस नहीं मिलती और मुट्ठी भर पहुँचवालों के लिए कोई गवर्नेंस नहीं
है. देश में 35 करोड़
लोग आज भी ऐसे हैं, जिन्हें बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल
रही हैं। उनके पास रहने के लिए मकान नहीं हैं। पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं है।
खुले में शौच के लिए मजबूर हैं। उनके बच्चों को शिक्षा व चिकित्सा सुविधा नहीं मिल
पा रही है।
गरीबों का हक़ कैसे हड़पते है,इसकों देंखे-गरीबी
रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले B.P.L
के शुष्क शौचालय को जल-प्रवाहित में बदलने के लिए प्रति शौचालय १५ हजार रू० का ७५
फीसदी यानी ११२५० रू० केंद्र सरकार अनुदान देती है .शेष २५ फीसदी में १५ फीसदी
यानी २२५० रू० राज्य सरकार . मात्र १० प्रतिशत १५०० रू० गरीब लाभार्थी को लगाने
होते हैं. जल-प्रवाहित शौचालय का निर्माण करने वाली संस्था या सम्बंधित ब्यक्ति को
अलग से भी २२५० रू० दिए जाते है जिसमें से १८७५ केंद्र सरकार का होता है. २००८ में
देश के एक सूबे उत्तर-प्रदेश में केंद्र ने २४१ करोड़ की योजना मंजूर की . एक भी
निर्माण करने वाली संस्था या सम्बंधित ब्यक्ति,या लाभार्थी की इस आशय की शिकायत
नहीं मिली कि उनका पेमेंट रूका हो. हाँ पेंशन हो,किसी गरीब को अहेतुक सहायता हो,
प्याऊ ,जाड़े में अलाव इत्यादि के पेमेंट या मद में अनेक अड़चन दिखाते हुए समय पर न
पालन करने की कसम खा लिए हैं. कितने शुष्क शौचालय को जल-प्रवाहित में बदले यह सभी
लोग देख रहें हैं. देश में यह क़ानून भी है कि शुष्क शौचालय होना जुर्म है .जिसके
कारण २००९-१० में उत्तर-प्रदेश में शुष्क शौचालय बिहीन रिपोर्ट दे दी गयी थी . २०११
के सेन्सस के आकड़ों से पता लगा कि उत्तर-प्रदेश के शहरी क्षेत्र में १.०६ लाख
शुष्क शौचालय हैं. केंद्र सरकार के अफसर ने राज्य सरकार के अफसर से जबाब-तलब किया.
अंधे के हाथ फिर रेवड़ी मिली .सर्वे शुरू हुआ. ताजा-ताजा सर्वे में जाहिर हुआ कि
सूबे उ०प्र० के ३४ जिलों में ५३९०३ शुष्क शौचालय पाए गए. उन्हें जल-प्रवाहित में
बदलने के लिए ९२.९८ करोड़ रू० मात्र चाहिए. कोई यह नहीं पूछ रहा है कि सेन्सस के
आकडे गलत है कि सूबे की ताजा- ताजा रिपोर्ट और २००९-१० में जो उत्तर-प्रदेश में
शुष्क शौचालय बिहीन रिपोर्ट दे दी गयी थी वह किसने दिया था. शायद उक्त गलती में शुष्क
शौचालय की कम संख्या देखकर(१.०६ लाख शुष्क शौचालय
के बिपरीत ५३९०३ शुष्क शौचालय )पुन: उत्तर-प्रदेश में प्रमुख सचिव नगरीय
रोजगार एवं गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम ने १७-०५-१३ को लखनऊ में नगरीय निकायों के नगर
आयुक्त,डूडा के परियोजना निदेशकों एवं सफाई वेलफेयर के पदाधिकारियों के साथ बैठक
की तथा सर्वे कार्य पुन: ३० जून तक हर हाल
में पूरा करने के निर्देश दिए. यह सारी कवायद और परिश्रम शहरी शौचालय और उसके फंड को लेकर है.अब गाँव में
पूर्ण स्वच्छता अभियान और शौचालय के फंड का बन्दरबाँट नीचे दिया गया है :-
निर्मल
भारत अभियान के तहत गाँव में पूर्ण स्वच्छता अभियान ( टीएससी)चलाया गया,
जिससे ग्रामीणों ने पेयजल प्रबंधन और मल
प्रबंधन पर ध्यान देना शुरू किया और इससे खेती एवं बाग़वानी के लिए उर्वरक बनाने
की दिशा में ग्रामीणों ने कदम बढाए .गाँव वालों ने दस्ते बनाकर खुले में शौच को
हतोत्साहित करना शुरू कर दिया. मीरजापुर में ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत
४९५६ शौचालय बनाने में सवा दो करोड़ खर्च हुए. क्षेत्र के सांसद बाल कुमार पटेल ने
बताया कि ८० फीसदी शौचालयों का सदुपयोग नहीं हो रहा है.उसमें उपले व लकड़ी रक्खी जा
रही है.जिला पंचायत राज अधिकारी के अनुसार शौचालयों का सत्यापन कराया जा रहा
है,दोषियों के बिरुद्ध कार्यवाही भी हो रही है.
मुझे तो किसी गाँव में उक्त दस्ता नहीं मिला,और
पेयजल प्रबंधन और मल प्रबंधन क्या होता है नहीं मालूम. खेती तथा ग्रामीणों बाग़वानी के लिए उर्बरक बनाने में कितने कदम चले
अफसर जाने. यह अफसरों के दावे व प्रमाणपत्र हैं. क्यों दिए गए – भारत सरकार ने वर्ष
२०१२-१३ में बिभिन्न राज्यों को घरों, स्कूलों और आँगनवाणी केन्द्रों को शोचालय निर्माण
के लिए लगभग २५०० करोड़ रू० दिए गए. भारत सरकार के निर्मल अभियान के तहत ग्रामीण
क्षेत्रों में समुदाय संकुलों और एकल घरों के लिए शौचालय बनाए जाते हैं.
अब उक्त लूट के बिरुद्ध जनहित याचिका तो दाखिल होगी ही.
आइये आपके अदा टैक्स
का रूपया किस तरह लूटा जाता है,इसकी एक बानगी देखिये-
स्रोत :- MAIL TODAY COMMENT: CAG
audit of loan waiver tells a familiar story
PUBLISHED: 00:22 GMT, 28 January 2013
स्रोत- दैनिक जागरण
१६ मई २०१३ –कृषि ऋण की बन्दरबांट – देविंदर शर्मा
महाघोटाला – संकट से उबारने के लिए गरीब किसानों को ऋण देने के बजाय
सरकार उनके नाम पर जारी राशि को बड़े उद्योगपतियों को नाममात्र के ब्याज दरों पर
बाँट देती है.
आप ऋण लेने जाए ,लगभग १२ प्रतिशत पर ऋण मिलेगा,वहीं बैंक कृषि
ऋण चार प्रतिशत पर बाँटते हैं.यह मत सोचिये कि यह किसानों को मिलता है,अगर मिलता
तो पिछले १५ साल में २.९० लाख किसान आत्मह्त्या न किये होते.
२००६ का आकडा है कि
कुल कृषि ऋण का ५४ प्रतिशत २५ करोड़ या उससे अधिक की धनराशि का है.मैं तो नहीं समझता कि कोई करोड़पति किसान ऋण लेगा या
बैक उसे ऋण देंगे.देश के कृषि ऋण मुंबई,दिल्ली,चंडीगढ़ और बड़े शहरों से जारी हैं,जो
उत्तर-प्रदेश,बिहार,झारखंड,और पश्चिम बंगाल को दिए गए ऋणों से ज्यादा हैं. २००० तक
कृषि ऋणों में ड्रिप सिंचाई उपकरण निर्माण कम्पनियाँ और कुछ अन्य कृषि ब्यापार
कंपनियों को पात्र रूप में रक्खा गया था,लेकिन इसके बाद ग्रामीण बिद्युत
कंपनियों,भडारण निगमों,कोल्ड स्टोर और मंडी के शेड निर्माण करनेवाली कम्पनियों के
साथ-साथ दलाल और बिचौलियों को भी पात्र बना दिया गया.अब क्या दशों उंगली घी में और
सर कड़ाही में. कोल्ड स्टोर,कंपनी इत्यादि रखने वालों के पौ बारह .छोटे व सीमान्त
किसानों की भाग्य में आत्मह्त्या ही लिखी है.
महालेखाकार ने २००९
के बजट में कृषि ऋण मांफी में ७४००० करोड़ की अनियमितता व भ्रष्टाचार को इंगित
किया है. इसी रिपोर्ट में लगभग ३५.५ लाख लोग जो कुल संख्या के आठ से दस
प्रतिशत के करीब हैं अपात्र होने के बावजूद छूट का लाभ ले लिए दर्जहै.भारतीय
रिजर्व बैक,नेशनल बैक आफ एग्रीकल्चर एंड रूरल डवलपमेंट (नावार्ड )तथा बित्त मंत्रालय के दस्तावेजों से यह लूट सिद्ध है.
वित्त मंत्रालय की
स्वीकारोक्ति---पिछले पाँच साल में कृषि ऋण में ढाई गुना बढ़ोत्तरी के बावजूद छोटे
व सीमान्त किसानों को ऋण का छै प्रतिशत से भी कम दिया गया है.
एसोकेम की
स्वीकारोक्ति---पिछले एक दशक के कृषि ऋणों के बितरण पर उद्योग संगठन एसोकेम के एक
अध्ययन से सिद्ध हुआ है कि कृषि और फसल के आकार तथा ऋण राशि में असुंतलन है और
छोटे व सीमान्त किसान कृषि ऋण के दायरे से बाहर हैं.
बैको की
स्वीकारोक्ति—२००७ में कृषि ऋणों में छोटे व सीमान्त किसान की हिस्सेदारी महज ३.७७
प्रतिशत.२०११-१२ में महज ५.७१ थी.
बजट---२०१३-१४ कृषि
ऋण के लिए सात लाख करोड़ रूपये का प्राविधान
२०१२-१३ कृषि ऋण के लिए पौने छै लाख करोड़ रूपये
का प्राविधान
२०११-१२ कृषि ऋण के लिएपौने पाँच लाख करोड़
रूपये का प्राविधान
आंकड़े सिद्ध करते
हैं कि २००० से २०१० तक कृषि ऋणों में ७५५ प्रतिशत की बृद्धि हुई है.
अभी-अभी पटना में
लालू जी की परिवर्तन रैली हुई. एक पत्रकार ने पूछा कि आपके कार्यकाल में में भी
शासन ठीक नहीं था, तो किस बात की परिवर्तन के लिए रैली.- जबाब था भ्रष्टाचार का
रेट कई गुना बढ़ गया है.जाहिर है अब भ्रष्टाचार पर नहीं उसके रेट पर रैली हो रही
है. अब देश में भ्रष्टाचार का क्या रेट है :--
वित्त मंत्रालय की
स्वीकारोक्ति---पिछले पाँच साल में कृषि ऋण में ढाई गुना बढ़ोत्तरी के बावजूद छोटे
व सीमान्त किसानों को ऋण का छै प्रतिशत से भी कम दिया गया है.
बैको की
स्वीकारोक्ति—२००७ में कृषि ऋणों में छोटे व सीमान्त किसान की हिस्सेदारी महज ३.७७
प्रतिशत.२०११-१२ में महज ५.७१ थी.
इस प्रकार सदुपयोग ४ से ५ प्रतिशत,भ्रष्टाचार की भेंट ९५ से
९६ प्रतिशत.अभी शत-प्रतिशत भ्रष्टाचार नहीं है.
सिद्ध है कि निहित स्वार्थ से ही अफसर कोई काम
करता है. अफसर की सार गर्भित सत्यापन/आपत्ति/रिपोर्ट देखें:-- Tthis is not a scenario you get to hear of in a poor country like
India. The royal family of Thailand wants to donate 100 kg of gold - worth Rs
35 crore as per current market rates - to build a dome atop the Buddha temple
it has constructed in Bodh Gaya but the state government led by Nitish Kumar is
fighting shy of this generous offer.
. If a prime tourist spot cannot be secured
by the state, how are citizens in faraway areas supposed to feel safe
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में मैत्रेय परियोजना के बारे में
भी ठीक इसी तरह का रवैया है ( दैनिक जागरण २१ मई १३ में अजय शुक्ल की रिपोर्ट )
उत्तर-प्रदेश सरकार ने २०११ में सोनभद्र के
बभनी ब्लाक में बीजपुर के डोपहा क्षेत्र में ६६० मेगावाट की तीन इकाईयों के
स्थापना को हरी झंडी दी.पहले पर्यावरण की
आपत्ति दिखा इस पाँवर प्लांट को बभनी ब्लाक के डग़डउवा में हस्तांतरित कर दिया गया.
पाँवर प्लांट के लिए ५७० हेक्टेयर जमीन की जरूरत थी.अभी तक काम ठप है,वजह यह बतायी
जा रही है कि जिन किसानों की जमीन इसमें जा रही है ,उनको मिलने वाला मुआवजा शासन
से नहीं मिला है और धारा २० पर काबिज जमीन पर आदिवासियों के मामलें में वन बिभाग
ने कोई निर्णय नहीं लिया है. वन बिभाग की तरफ से जिला प्रशासन को एनओसी नहीं मिली
है. जिला प्रशासन,अफसर क्या बिना डांट-फटकार के काम नहीं कर सकते---सिद्ध तो यहीं
होता है. उ०प्र० में २०१२ में अखिलेश सरकार बनीं.पर्यावरण और बन्य जीवों के प्रति
विशेष लगाव रखने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लायन सफारी ड्रीम प्रोजेक्ट को
प्राथमिकता पर लिया.मास्टर प्लान तैयार किया गया और इसके पहले जू अथारिटी आफ
इंडिया और बाद में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से एनओसी ले लिया गया.वित्त
बिभाग ने ८६ करोड़ के बजट में से ५६ करोड़ निर्माण कार्य का बजट स्वीकृत कर ४५.६५ करोड़
जारी कर दिया है.अफसरों का कहना है कि जून २०१६ तक इसे तैयार कर लिया जाएगा.
काम में रोड़े अटका
रहे अफसर शीर्षक से दैनिक जागरण २३-५-१३ में समाचार है,उद्यमी महासम्मेलन लखनऊ में
था जिसमें उद्यमियों ने अफसरों पर क़ानून
की गलत ब्याख्या कर देश और सरकार को गुमराह करने का आरोप लगाया. कोर्ट के स्पष्ट
आदेश और ब्याख्या के बाद भी इनके द्वारा अपना निहित स्वार्थ न पूरा होने पर कार्य
न करना एक आदत है,भले ही अवमानना में अदालत सजा और जुर्माना कर दे. जैसे सरकार ने चना के वेसन को वेट मुक्त कर
दिया,जब कि मटर के वेसन पर १२.५ प्रतिशत वैट लागू था. अफसरों की ना-नुकर के बाद
मामला ट्रिब्यूनल में गया जहाँ यह निर्णय हुआ कि दोनों का वेसन एक तरह का है. इसके
बाद भी अफसरों ने मटर की दाल के वेसन पर वैट की दर १२.५ से घटाकर चार प्रतिशत कर
दिया. क्यों कोर्ट के आदेश के बाद शून्य नहीं किया ,यह इनके निहित स्वार्थ और
उद्यमी बिरोधी के साथ-साथ जन बिरोधी चरित्र को सिद्ध करता है. इनकी अनर्गल माँग को
आपने पूरा नहीं किया तो यह जन-बिरोधी , उद्यमी बिरोधी तथा सरकार बिरोधी कार्य करने
में नहीं हिचकेंगे. गुमराह करने के लिए सरकार को यह भी समझायेंगे कि यह प्रचार का
एक विन्दु बनाए कि वैट १२.५ से चार प्रतिशत कम करना यह सिद्ध करता है कि सरकार
उद्यमी और जन-हितैषी है. चोरी और सीनाजोरी, हेकड़ी.तथा गलत बयानी की इससे बड़ी मिसाल
नहीं मिल सकती है. खुद मुख्यमंत्री घाघ अफसरों की पोल खोलते हुए कहा कि उन्होंने
एक काम अफसर को दिया,पाँच महीने का समय भी दिया,न होने पर अगले दिन प्रस्तुत होने
को कहा.अफसर फ़ाइल पर दो पन्ने की रिपोर्ट काम न (होने)करने की लगा दी.मुख्यमंत्री
को अफसर से कहना पडा “ मैं अफसरों से अपशब्दों का इस्तेमाल नहीं करता,अभद्रता नहीं
करता तो इसका मतलब यह नहीं कि मैं कुछ समझता नहीं. उनका इतना कहना था कि दूसरे
अधिकारी ने पहले अफसर की दो पन्ने की रिपोर्ट को दो लाइन में सुधार दिया और काम हो
गया.” लालफीताशाही से क्षुब्ध मुख्यमंत्री ने कहा कि काफी मशक्कत के बाद फाइलें
नीचे से ऊपर अफसर के पास आती हैं.और फिर नीचे भेंज दी जाती
हैं,पूछने पर बतातें हैं कि बाबू ने टिप्पणी ठीक नहीं लिखी थी. जब सब काम बाबू को ही करना
है तो आप काहे के आइएएस .”
इन्डियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष जुगल किशोर ने कहा कि अफसर
फाइलों को आठ से दस माह तक लटका देते हैं
जिसमें हमें शीघ्र फैसला लेने का आश्वासन दिया गया था.
आठ साल पहले बंद हुए(पूर्व नाम डंकन) खाद कारखाने केएफसीएल (कानपुर
फर्टिलाइजर एंड सीमेंट लिमिटेड ) के
अधिशाषी निदेशक सुनील जोशी ने बताया कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल की सहमति के बाद भी
कारखाने को नेप्था से चलाने की अनुमति मिलने में देरी हुई तो कंपनी के चैयरमैन ने
बिना नेपथा गैस के ही पूरा कारखाना चलाने का निर्देश दिया. उनके निर्देश के बाद
मशीनों को गैस आधारित करने के बाद ही उत्पादन शुरू हुआ. १२०० करोड़ निवेश के
कारखाने,जिसमें ९५० कर्मचारी की रोजीरोटी निहित है तथा प्रतिदिन ७५० टन यूरिया
उत्पादन होना है उसको एक अफसर चाहे तो अनुमति नहीं दे सकता है. अब चाहे आपको मशीन
बदलना हो चाहे देश का जितना नुकसान हो और किसी की रोजीरोटी छीन जाए अफसर की मोटी
खाल पर इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता.
३० मई १३ के दैनिक जागरण में कारोबारी
माहौल का अभाव शीर्षक से स्वप्न दास गुप्ता ने भारतीय उद्योगपतियों के विदेश में
निवेश प्रेम को देश में कामकाज के घटिया माहौल की परिणति मान रहे हैं. यूरोप के
किसी भी देश में निवेश करने के उद्यमियों को पूरे यूरोपीय संघ में आसान पहुँच मिल
जाती है. यह भी अकाट्य तथ्य है कि स्थिर ब्यापारिक वातावरण एक कंपनी के मूल्य को
बढ़ा देता है. निवेश केवल देशभक्ति व संस्कृति के बल पर नहीं हो सकता.जो उद्यमी
जोखिम उठाने को तैयार हैं उनके लिए बहुत से विकल्प हैं.बहुत से लापरवाह लोग शार्ट
कट से पैसे कमाते हैं,कुछ किसी की कृपा से लाभान्वित होते हैं तो कुछ सीधे-सीधे
घूसखोरी पर उतर आते हैं.उद्यमियों को ब्यापार के अनुकूल माहौल यानी कायदे-क़ानून पर
आधारित ब्यवस्था चाहिए.
निवेश अफसरों की कबूतर की तरह परिस्थिति पर आँख फेर
लेने तथा बगुला भगत की तरह घूस को चट करने की आदत से नहीं हो सकता है.