1980 तक जनतंत्र में कार्यपालिका का अमूल्य सहयोग रहता था,और सभी का आदर करते हुए
कार्यप्रणाली सहज और सरल थी. कार्यपालिका धीर-धीरे अवमूल्यन की तरफ बढ़ते हुए अपने कार्यों से लोक और जन से एकदम
दूर हो गयी है. कार्यपालिका का अफसर सेवक
होते हुए भी सेवा से दूर तथा नौकरी करते हुए नौकर कहलाना पसंद नहीं करता. एक ऐसा
नौकरशाह जो जन और सेवा से दूर निहित स्वार्थ से कार्य सम्पादन करने वाला . देश का जनतंत्र
नौकरशाह द्वारा , नौकरशाह के लिए , नौकरशाह की शासनप्रणाली हो गयी
आला अफसरी ग्लैमर से जुड़ गया. सेवा में नाम आते ही मीडिया में इंटरब्यू, फोटो तथा जीवनी छपने
लगी. कई कोचिंग संस्थान तो इनके इंटरब्यू के लिए अच्छी धनराशि देकर अपने संस्थान का
सिद्ध करने लगे.कुछ पत्र,पत्रिकाएं भी इस दौड़ में शामिल हो गयी.कहने का अर्थ कि
प्रथम ग्रास में ही मक्खी, आगे-आगे देखिये होता है क्या. नौकरी में आने के पूर्व
ही पैसा,लोग,और चमक-दमक साथ लग गयी. IPL क्रिकेट में भरपूर पैसा लेने के बाद भी जैसे क्रिकेटर मैच
फिक्सिंग,स्पाट फिक्सिंग,बाल फिक्सिंग इत्यादि कर अकूत धन बनाते हैं. उनकी धन की
लिप्सा शांत ही नहीं होती है.अभी-अभी तीन क्रिकेटर दिल्ली पुलिस द्वारा पकडे गे.
एक बाल फिक्स करने का साठ लाख में सौदा हुआ है. IPL क्रिकेट की जांच में खिलाड़ियों
के तार दाऊद से जुड़े मिले. हवाला,ड्रग्स,माफिया और काला धन की पूरी खेप
इनके यहाँ खपाई जाती थी.टैक्स चोरी व
टैक्स हेवेन देशों से भी इनको धन मिला.
सांठगाँठ में कारपोरेट लीडर, राजनीतिक नेता व मंत्री, अफसर तथा दाउद के गुर्गों का
नाम आया.सरकार और मंत्री तक बनाने में
कारपोरेट लीडर का दखल नीरा राडिया काण्ड से सिद्ध हो चुका है. दिनाक २० मई
१३ के दैनिक जागरण में संकटों का उजाला शीर्षक से अंशुमान तिवारी की काले धन के
बारे में पड़ताल छपी है.जिसके अनुसार एक आयरिश पत्रकार गेराल्डर के पास १७० देशों के २५ लाख लोंगों व कंपनियों
की जानकारी है जिससे योरोपीय व अमेरिकी सरकारे टैक्स हैवेन व अनैतिक ब्यवहार के
आरोप से घिरी हैं.सूची में भारत के कारपोरेट लीडर व राजनेता सहित ६१२ लोंगों के नाम
सामने आ चुके हैं. लन्दन शेयर बाजार की सौ शीर्ष कंपनियों में ९८ टैक्स हैवेन का
इस्तेमाल कर रहीं हैं . कारपोरेट लीडर व राजनेता तथा अफसर निवेश व विकास का
सब्जबाग़ दिखा जितना टैक्स चोरी करते हैं उससे देश का शिक्षा व स्वास्थ्य बजट की
धनराशि आधी होगी. टैक्स हैवेन का धंधा कोई पुराना नहीं है.१९३० में यह धंधा स्विट्जरलैंड ने मंदी से डरकर शुरू किया. आस्ट्रिया व स्विट्जरलैंड के बीच मौजूद छोटी सी रियासत लीचेंस्टीन भी तब
तक अपने क़ानून बदलकर टैक्स हैवेन बन चुकी थी. जुरिख—जुग – लीचेंस्टीन की तिकड़ी को
दुनिया का पहला स्थापित टैक्स हैवेन माना जाता है.१९६० से १९९० के बीच पूरी
दुनियाँ में करीब सौ टैक्स हैवेन खेलने लगे.
यही हालत इन अफसरों
की है.वेतन सबसे ज्यादा,लेकिन फिर भी अपनी शादी में भरपूर दहेज़ लेना,देश के
बहुमूल्य साधनों का मुफ्त उपभोग करना इत्यादि इनके नस-नस में बश जाती है. यू पी
भवन. जिले के डाक बंगला तथा सर्किट हाउस इनसे भरे पड़े मिलेंगे ,जहां पूर्ण अधिकार
से तफरीह करते इनको देखा जा सकता है. अपने ब्याक्तिगत कार्यों में सरकारी
हेलीकाप्टर तक का प्रयोग बिना हिचक के यहीं तबका कर सकता है. नई मुंबई में ३२.४३
करोड़ की लागत से यू पी भवन १७ साल में बनवाया गया
जिसका उद्घाटन २३ मई १३ को हुआ. यूपी से बिभिन्न परीक्षाओं के लिए आने वाले
बिद्यार्थियों,कैंसर तथा अन्य रोगों के इलाज के लिए आने वाले मरीजों के लिए फिलहाल इस भवन में कुछ भी नहीं है
फिर हुआ ट्रेनिग का दौर .
थ्री स्टार से फाईब स्टार होटल की सुख-सुबिधा में ट्रेनिंग का खर्च देश वहन किया.
बीच-बीच में क्षेत्र और गांवों के जीवन से रूबरू होने के लिए १५-२० की टोली में
जिले में इनका कार्यक्रम ट्रेनिग के बीच होता है. उनके नाम और कार्यक्रम जिले में
ट्रेनिग सेंटर से पूर्व में आ जाते हैं. जिले में उनकी ही बिरादरी का आला अफसर
रहता है. उनकी आव-भगत के लिए लिखित में लेखापाल से परगना मजिस्ट्रेट तक लगा दिए
जाते हैं. अच्छे से अच्छे होटल में ठहराया जाता है.आवभगत में कोई कोर-कसर नहीं
रक्खी जाती,क्योकि कल वे ही जिले में उनके अफसर बन कर आयेंगे. गांवों में रात्रि
कालीन बिश्राम, खेत और किसानों की जिन्दगी से रूबरू तथा ग्राम में गरीबों की हालत फाईब स्टार होटल से ही देख ली जाती है .आवश्यक
प्रमाणपत्र लेखपाल,नायब-तहसीलदार , तहसीलदार प्रधान,किसान इत्यादि से हस्ताक्षरित
करा आदरपूर्वक सुलभ करा दिया जाता है.मुफ्त खाना,आवास और तफरीह जो होती है , उससे
नौकरशाह की नींव और मजबूत होती है. बची-खुची शाहखर्ची और बादशाहत की ट्रेनिंग इनके अग्रज से मिल जाती है
जो इनको ट्रेंड करने का काम करते हैं.
दैनिक जागरण के १८
मई १३ के अंक में सिफारिशों से नौकरी की बुनियाद डालते आईएएस-पीसीएस शीर्षक से
समाचार छापा है जिसमें उत्तर-प्रदेश में इन संवर्गो द्वारा सेवा नियमावली के
उल्लंघन और मलाईदार पोस्टिंग के लिए सिफारिशों का जिक्र है. यह भी कहा गया है कि
इसके दूरगामी परिणाम होंगे. दक्षिण भारत के रहने वाले भी सहारनपुर,गौतमबुद्ध
नगर,गाजियाबाद इत्यादि में पोस्टिंग हेतु सिफारिश करा रहे हैं. सांसद,बिधायक,और
मंत्री तक ने सिफारिश कर रक्खी है. सेवा नियमावली में पोस्टिंग हेतु सिफारिश सेवा
के अयोग्य ठहराने के लिए काफी है. दूसरे संबर्ग या छोटे कर्मचारी इस हेतु दण्डित
कर दिए जाते हैं,लेकिन समरथ के लिए यह दोष नहीं है. यदि जांच कराई जाय तो इन
सांसदों,मंत्रियों के अफसर रिश्तेदार निकलेंगे.एक उदाहरण से यह बात और स्पष्ट हो
जायेगी. उत्तर-भारत के एकाध-दो सूबे को हरा-भरा चरागाह मान लीजिये जिसमें बिभिन्न
कद-काठी के जानवर चर रहे हैं. कद-काठी के अनुसार चरना एक प्राकृतिक गुण है. अब अगर
भैंसा , घोड़ा, गैंडा भरपूर चरने के बाद
मस्त हो उस सुन्दर चरागाह में लीद,गोबर,और हरियाली को सींग द्वारा तहस-नहस
करे तो तकलीफ होगी ही,तथा दूसरे कमजोर
जानवर भय के मारे अपना पेट भी नहीं भर पायेंगे. यही हालत इन दो सूबों की हो गयी
है.
मलाईदार पेशा के रूप
सबसे उच्च स्थान पर उद्योग है. कारपोरेट
लीडर हर देश में सर्वोच्च हैं और सभी पेशा ग्लोबल होने के कारण मीडिया में
१०० शीर्ष धनी ब्यक्तियों की सूची निकलती रहती है. दूसरे स्थान पर आजकल क्रिकेट
हैं, आईपीएल में फिक्सिंग घोटाले के बाद तो यह सर्वमान्य है. यह आईपीएल के पूर्व
आयुक्त ललित मोदी के दर्जनों ट्वीट में दर्ज है. इस खेल के
बीसीसीआई , आईपीएल और
फ्रेन्चाइजी तीन त्रिकोण है. सहारा ने पुणे वाँरियर्स को खरीदने के लिए १७०२ करोड़
खर्च किये,जब कि बीसीसीआई के अध्यक्ष एन श्रीनिवासन ने अपने हितों को पूरा करते
हुए मारन बंधुओं के सन ग्रुप को हैदरावाद सनराइजर्स की फ्रेन्चाइजी बहुत कम दामों
में दिलवाई.मोदी ने इसके सबूत के तौर पर २००८ के
आईपीएल के दौरान श्रीनिवासन,उनकी पत्नी ,बेटी ,और दामाद के मैच पास की फोटो
भी ट्विटर पर जारी की.
सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई को फटकार लगाते हुए आईपीएल की
खामियों को दूर करने के लिए एक तंत्र बिकसित करने के निर्देश दिए.. बीसीसीआई व
आईपीएल खुद एक तंत्र हैं जिनकी रूपरेखा सटोरियों और काले धन के कारोबारियों के
अनुकूल है. इनपर बिदेशी मुद्रा संबंधित क़ानून के उल्लंघन का आरोप है. बीसीसीआई में
राजनेताओं का जमावड़ा है,जिसमें कई केन्द्रीय मंत्री भी हैं. क्रिकेट आज ऐसे लोंगों
के बंधन में है जिनके पास अकूत धन और ताकत
है.शरद पवार,फारूख अब्दुल्ला,नरेंद्र मोदी,अरूण जेटली ,सीपी जोशी कुछ ऐसे नाम हैं
जो क्रिकेट तथा क़ानून को अपनी मुट्ठी में रखते हैं. नेशनल स्पोर्ट्स बिल संसद में
क्यों पास नहीं हुआ,यह किसी से छिपा नहीं है. कोई सही,सख्त,और कानूनी कदम उठाने का
मतलब होगा सरकार के एक हिस्से का अपने ही दूसरे हिस्से के बिरुद्ध कार्यवाही करना.
उद्योगपतियों में अंबानी, माल्या ,श्री निवासन जैसे नाम आईपीएल से जुड़े हैं.
शाहरूख खान,जूही चावला,प्रीती जिंटा ,शिल्पा शेट्टी जैसे बालीवुड दिग्गज आईपीएल
टीम के मालिक हैं. इस घालमेल खेल में मैच फिक्सिंग में बैन किये गए हर्शल
गिब्स तथा नशीले पदार्थ सेवन में बैन होते हुए भी शेन वार्न खेल रहे हैं. यह खेल
है कि बिजनेस या दोनों. इस घालमेल खेल का कोई नियम कायदा क़ानून नहीं है,क्योंकि
इसके खिलाड़ी प्लेयर नहीं ,नेता और कंपनी है,जिसमें फिक्सर और अंडरवर्ल्ड भी
हिस्सेदार हैं. बीसीसीआई अपने को चैरिटी संस्था घोषित की है तथा कर रियायत की माँग
करती है लेकिन आयकर बिभाग ने इस साल इसको २३०० करोड़ टैक्स की नोटिस दे चुका है. बित्त
मंत्रालय भी स्वामित्व व निवेश की जांच करा रहा है. आईपीएल के बारे में एक प्रमुख
बित्तीय संस्थान ने माना था कि टीमों के मूल्यांकन, खिलाड़ियों की
कीमत,हिस्सेदारी,निवेश,कागजी कम्पनियाँ,बिदेशी पैसा,प्रायोजन के ठेके,आडिट सहित
करीब २५ ऐसे क्षेत्र है जिन्हें लेकर आईपीएल सवालों के घेरे में है.( स्रोत २७ मई
१३ दैनिक जागरण में अंशुमान तिवारी का लेख “कालिख के चियर लीडर” )
इन पर अपने देश का सूचना
अधिकार क़ानून भी नहीं लागू होता. कोई खेल बिधेयक पास नहीं होने देंगे क्योकि इससे
इनका मुख्य खेल बिगड़ जाएगा. भले ही इस खेल का असली सूत्रधार दाउद हो. सट्टेबाज
काले धन व हवाला से एक समानांतर आर्थिक तंत्र खडा करने के करीब हैं. अब तो कानूनन सुप्रीम
कोर्ट का ही सहारा है.
तीसरे नंबर पर नौकरी
पेशा,वह भी नौकरशाहों की नौकरी. सभी सुख-सुबिधा संपन्न. सभी आर्थिक साधन तक
निर्बाध पहुँच. अपने को सर्वज्ञ
,सर्वशक्तिमान, सर्वब्याप्त इत्यादि बिशेषण से बिभूषित मानते हैं.
हरियाणा के बहुचर्चित जूनियर शिक्षक भर्ती घोटाले में सीबीआई की विशेष अदालत ने इनेलो मुखिया ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय चौटाला के अलावा प्राथमिक शिक्षा के पूर्व निदेशक संजीव कुमार, चौटाला के पूर्व ओएसडी विद्याधर और इनेलो के मौजूद विधायक शेर सिंह बादशामी को भी 10 साल की सजा सुनाई है। इस ममाले में 4 अन्य दोषियों का भी 10 साल की सजा सुनाई गई है।
दिलचस्प बात यह है कि पूर्व आईएएस अधिकारी संजीव कुमार ही वह व्हिसिल ब्लोवर हैं, जिन्होंने इस मामले का खुलासा किया था। लेकिन कोर्ट ने उन्हें भी घोटाले में दोषी पाया और 10 साल की सजा सुनाई।
दरअसल चौटाला ने घोटाले को अंजाम देने के लिए ही 1985 बैच के आईएएस अधिकारी संजीव कुमार को शिक्षा विभाग का निदेशक बनाया था। चौटाला ने घोटाले के लिए ही प्राथमिक शिक्षा निदेशक के पद से दो आईएएस के ट्रांसफर कर दिए थे। आईएएस अफसर आरपी चंद्रशेखर (तत्कालीन प्राथमिक शिक्षा निदेशक) ने अप्रैल 2000 में योग्य उम्मीदवारों की सूची जारी करने का प्रस्ताव दिया था, जिसके अगले ही दिन उनका ट्रांसफर कर दिया गया।
इसके बाद 1986 बैच की आईएसएस अधिकारी रजनी शेखर सिब्बल शिक्षा विभाग की निदेशक बनाया गया। जब उन्होंने इस नियुक्तियों की सूची में बदलाव करने से इनकार कर दिया तो उनका भी ट्रांसफर कर दिया गया। इसके बाद वर्ष 1985 बैच के अधिकारी संजीव कुमार को शिक्षा विभाग का निदेशक बनाया गया। इन पर आरोप लगा कि इनकी निगरानी में ही भर्ती की सारी कार्रवाई को अंजाम दिया गया। सीबीआई अदालत ने उन्हें मामले में दोषी करार दिया।
अपने उम्मीदवारों को भी भर्ती करवाना चाहते थे संजीव
संजीव कुमार पर आरोप लगा कि प्रदेश में परीक्षा के बाद योग्य उम्मीदवारों की जो सूची बनी उनमें अन्य आरोपियों के अलावा संजीव कुमार के उम्मीदवार भी थे। परीक्षा के बाद जब नतीजे घोषित करने की बारी आई तो अजय चौटाला व शेर सिंह बडशामी ने संजीव कुमार को धमकाते हुए उनके उम्मीदवारों के नाम सूची से काटकर नई सूची बनाई और नतीजे घोषित करने के लिए कहा। यहीं से पूरे भर्ती घोटाले का खुलासा होना शुरू हो गया।
अपने आप को ठगा महसूस होने पर संजीव कुमार 2003 में सुप्रीम कोर्ट गए। उन्होंने याचिका दायर करके योग्य व अयोग्य उम्मीदवारों की दो सूचियां पेश कीं। सूत्रों का यह भी कहना है कि जब मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी तो संजीव कुमार के कार्यालय में आग लग गई और उसमें उम्मीदवारों की सूची सहित जेबीटी भर्ती का काफी रिकार्ड जल गया।
याचिका पर सुनवाई के बाद मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया गया। सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक यूनिट ने इस मामले में प्राथमिक जांच के बाद 2004 में केस दर्ज किया था। हालांकि, संजीव कुमार पूरे मामले का खुलासा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट गए थे, लेकिन सीबीआई की जांच में वह भी दोषी पाए गए। उम्मीदवारों की सूचियों का घालमेल उनके दस्तखतों के बाद ही हो सका था।
संजीव को दोषी ठहराकर जज भी हो गए थे दुख्री
आईएएस अफसर संजीव कुमार को दोषी ठहराकर सीबीआई के विशेष जज भी दुखी हो गए थे। विशेष जज विनोद कुमार ने अपने फैसले में कहा था ‘मैं आपको अपनी अंतरआत्मा से माफ करता हूं।’ संजीव कुमार ने अदालत द्वारा खुद को दोषी ठहराए जाने के बाद जज से कहा था कि न्याय व्यवस्था के प्रति मेरा विश्वास बुरी तरह हिल चुका है और मैं खुद को संभाल नहीं पा रहा हूं।
उन्होंने न्यायाधीश से कहा कि खुद के दोषी पाए जाने के बाद उन्हें लग रहा कि उनसे बड़ी गलती हो गई। उन्होंने कहा, ‘मैं उन सभी लोगों से जाकर माफी मांगना चाहता हूं जो इस मामले में दोषी करार दिए गए।’ उन्होंने आश्चर्य प्रकट किया कि ‘मैंने ही इस पूरे मामले को उजागर किया और आज मैं ही दोषी हूं।’
उन्होंने कहा था कि ‘मैं तिहाड़ के जेल नंबर पांच में जाना चाहता हूं, जहां अन्य दोषियों को रखा गया है। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि न तो आपने कोई अपराध किया और न मैंने कोई गलती। इसके बावजूद मेरे कारण सब सलाखों के पीछे हैं।’
अपनी भावुकता पर काबू पाने के बाद उन्होंने जज से दी जाने वाली सजा में रियायत बरतने की मांग की और कहा कि यदि उन्हें जेल भेजा गया तो इससे उनके बच्चों का बड़ा नुकसान होगा और साथ ही उनके करियर को भी धक्का पहुंचेगा।
उन्होंने कहा, ‘कल जब आप फैसला सुना रहे थे तब आप वह व्यक्ति नहीं थे जिसे मैंने सुनवाई के दौरान देखा था।’
इस पर न्यायाधीश ने कहा कि वह भी इंसान हैं और उनसे भी गलती हो सकती है। उन्होंने कहा कि इस मामले को ऊपरी अदालत के न्यायाधीश हो सकता है कि अलग नजरिये से देखें और कुमार को वहां राहत मिल जाए
दिलचस्प बात यह है कि पूर्व आईएएस अधिकारी संजीव कुमार ही वह व्हिसिल ब्लोवर हैं, जिन्होंने इस मामले का खुलासा किया था। लेकिन कोर्ट ने उन्हें भी घोटाले में दोषी पाया और 10 साल की सजा सुनाई।
दरअसल चौटाला ने घोटाले को अंजाम देने के लिए ही 1985 बैच के आईएएस अधिकारी संजीव कुमार को शिक्षा विभाग का निदेशक बनाया था। चौटाला ने घोटाले के लिए ही प्राथमिक शिक्षा निदेशक के पद से दो आईएएस के ट्रांसफर कर दिए थे। आईएएस अफसर आरपी चंद्रशेखर (तत्कालीन प्राथमिक शिक्षा निदेशक) ने अप्रैल 2000 में योग्य उम्मीदवारों की सूची जारी करने का प्रस्ताव दिया था, जिसके अगले ही दिन उनका ट्रांसफर कर दिया गया।
इसके बाद 1986 बैच की आईएसएस अधिकारी रजनी शेखर सिब्बल शिक्षा विभाग की निदेशक बनाया गया। जब उन्होंने इस नियुक्तियों की सूची में बदलाव करने से इनकार कर दिया तो उनका भी ट्रांसफर कर दिया गया। इसके बाद वर्ष 1985 बैच के अधिकारी संजीव कुमार को शिक्षा विभाग का निदेशक बनाया गया। इन पर आरोप लगा कि इनकी निगरानी में ही भर्ती की सारी कार्रवाई को अंजाम दिया गया। सीबीआई अदालत ने उन्हें मामले में दोषी करार दिया।
अपने उम्मीदवारों को भी भर्ती करवाना चाहते थे संजीव
संजीव कुमार पर आरोप लगा कि प्रदेश में परीक्षा के बाद योग्य उम्मीदवारों की जो सूची बनी उनमें अन्य आरोपियों के अलावा संजीव कुमार के उम्मीदवार भी थे। परीक्षा के बाद जब नतीजे घोषित करने की बारी आई तो अजय चौटाला व शेर सिंह बडशामी ने संजीव कुमार को धमकाते हुए उनके उम्मीदवारों के नाम सूची से काटकर नई सूची बनाई और नतीजे घोषित करने के लिए कहा। यहीं से पूरे भर्ती घोटाले का खुलासा होना शुरू हो गया।
अपने आप को ठगा महसूस होने पर संजीव कुमार 2003 में सुप्रीम कोर्ट गए। उन्होंने याचिका दायर करके योग्य व अयोग्य उम्मीदवारों की दो सूचियां पेश कीं। सूत्रों का यह भी कहना है कि जब मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी तो संजीव कुमार के कार्यालय में आग लग गई और उसमें उम्मीदवारों की सूची सहित जेबीटी भर्ती का काफी रिकार्ड जल गया।
याचिका पर सुनवाई के बाद मामले की सीबीआई जांच का आदेश दिया गया। सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक यूनिट ने इस मामले में प्राथमिक जांच के बाद 2004 में केस दर्ज किया था। हालांकि, संजीव कुमार पूरे मामले का खुलासा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट गए थे, लेकिन सीबीआई की जांच में वह भी दोषी पाए गए। उम्मीदवारों की सूचियों का घालमेल उनके दस्तखतों के बाद ही हो सका था।
संजीव को दोषी ठहराकर जज भी हो गए थे दुख्री
आईएएस अफसर संजीव कुमार को दोषी ठहराकर सीबीआई के विशेष जज भी दुखी हो गए थे। विशेष जज विनोद कुमार ने अपने फैसले में कहा था ‘मैं आपको अपनी अंतरआत्मा से माफ करता हूं।’ संजीव कुमार ने अदालत द्वारा खुद को दोषी ठहराए जाने के बाद जज से कहा था कि न्याय व्यवस्था के प्रति मेरा विश्वास बुरी तरह हिल चुका है और मैं खुद को संभाल नहीं पा रहा हूं।
उन्होंने न्यायाधीश से कहा कि खुद के दोषी पाए जाने के बाद उन्हें लग रहा कि उनसे बड़ी गलती हो गई। उन्होंने कहा, ‘मैं उन सभी लोगों से जाकर माफी मांगना चाहता हूं जो इस मामले में दोषी करार दिए गए।’ उन्होंने आश्चर्य प्रकट किया कि ‘मैंने ही इस पूरे मामले को उजागर किया और आज मैं ही दोषी हूं।’
उन्होंने कहा था कि ‘मैं तिहाड़ के जेल नंबर पांच में जाना चाहता हूं, जहां अन्य दोषियों को रखा गया है। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि न तो आपने कोई अपराध किया और न मैंने कोई गलती। इसके बावजूद मेरे कारण सब सलाखों के पीछे हैं।’
अपनी भावुकता पर काबू पाने के बाद उन्होंने जज से दी जाने वाली सजा में रियायत बरतने की मांग की और कहा कि यदि उन्हें जेल भेजा गया तो इससे उनके बच्चों का बड़ा नुकसान होगा और साथ ही उनके करियर को भी धक्का पहुंचेगा।
उन्होंने कहा, ‘कल जब आप फैसला सुना रहे थे तब आप वह व्यक्ति नहीं थे जिसे मैंने सुनवाई के दौरान देखा था।’
इस पर न्यायाधीश ने कहा कि वह भी इंसान हैं और उनसे भी गलती हो सकती है। उन्होंने कहा कि इस मामले को ऊपरी अदालत के न्यायाधीश हो सकता है कि अलग नजरिये से देखें और कुमार को वहां राहत मिल जाए
मैनपुरी में करीब 19 करोड़
रुपये के मिड डे मील घोटाले में सीबीआइ आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी में है। इस
मामले में दो तत्कालीन डीएम और सीडीओ के अलावा अन्य अफसरों को आरोपी बनाने का
फैसला किया है। इनके खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं। सीबीआइ आरोप पत्र दाखिल करने के
लिए जल्द ही अफसरों के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति मांगेगी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के
आदेश पर सीबीआइ ने मैनपुरी मिड डे मील घोटाले की जांच की। पिछले साल 17 अगस्त
१३ को सीबीआइ ने घोटाले में शामिल लोगों के खिलाफ षड्यंत्र, धोखाधड़ी
और गंभीर आपराधिक धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया। सूत्रों के अनुसार सीबीआइ ने अब
तक की विवेचना में करीब १९ करोड़ रुपये के अधिक भुगतान की गड़बड़ी पकड़ी
है।
मनरेगा ( महात्मा
गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी क़ानून )घोटाले की पोल खोलती कैग (C.A.G)की
रिपोर्ट जिसके अनुसार प्रति ब्यक्ति १०० दिन की जगह केवल ४३ दिन का रोजगार दिया
गया है. बेचारे अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जन जाति ,और गरीब दोहरी त्रासदी में
जानबूझकर डाल दिए गए हैं. न मजदूर रहे न १०० दिन का रोजगार ही मिला .धरातल पर गरीब और गरीब तथा अफसर
सर्व-संपन्न. सूचना का अधिकार व मनरेगा लागू कराने में अहम भूमिका निभाने वाली
सबसे सक्रिय और पुरानी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् (एनएसी) की सदस्य अरूणा राय ने
इसी मुद्दे पर परिषद् से अलग हो गयीं.उन्होंने मनरेगा में काम करने वालों को
न्यूनतम मजदूरी नहीं देने के लिए सरकार को आड़े हाथों लिया .यहाँ तक कहा कि उन्हें
समझ नहीं आता कि भारत जैसा देश कैसे अपने लोंगों को न्यूनतम मजदूरी तक देने से
इनकार कर सकता है. कर्नाटक हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद लोगों को न्यूनतम मजदूरी
देने की जगह अफसरों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट के इनकार के बाद भी वे नहीं माने.
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