Thursday, September 16, 2010
जन हित जन अदालत
झारखंड के लातेहार में बुधवार को विकास शिविर पर नक्सलियों ने हल्ला बोल दिया। करीब 35 की संख्या में आए नक्सलियों ने दो चिकित्सकों समेत 13 सरकारी कर्मचारियों को बना लिया। इसके बाद करीब 150 ग्रामीणों की उपस्थिति में जन अदालत लगाकर अधिकारियों को कार्यप्रणाली में सुधार लाने की चेतावनी दी। नक्सलियों ने 4 घंटे बाद 12 कर्मचारियों को रिहा कर दिया लेकिन ब्लॉक आपूर्ति अधिकारी केश्वर मुर्मू को अपने साथ ले गए। बुधवार को मनिका में विकास शिविर लगा था। शिविर में अधिकारियों समेत स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी मौजूद थे। नक्सलियों के आने की भनक लगते ही मनिका बीडीओ कुछ सहयोगियों के साथ भाग निकले। बाकी वहीं फंस गए। जन अदालत में नक्सलियों ने कहा कि पिछले दिनों सुखाड़ (सूखा) राहत समिति के तत्वावधान में लातेहार में आयोजित धरना-प्रदर्शन को पुलिस ने जबरन रोक दिया था। उसमें शामिल गरीबों की पिटाई भी की। नक्सलियों ने ब्लॉक आपूर्ति अधिकारी को डीलरों पर कार्रवाई करने को कहा। साथ ही स्वास्थ्यकर्मियों को प्रतिदिन गांवों में जाकर दवा वितरण करने की चेतावनी दी। नक्सलियों के सब जोनल कमांडर ने कहा कि मनिका बीडीओ कैलाश प्रसाद साहू अगर सही होते, तो वे हमारे आने की खबर पाकर नहीं भागते।
अफ़सर और कचहरी के फ़ेरे
नौकरी में रहते हुए घर में भुखमरी की नौबत आ पड़े तो एक व्यक्ति कितना क्रूर कदम उठा सकता है, इसकी बानगी बिहार में देखने को मिली। लगभग एक साल से वेतन नहीं मिलने से दुखी नगर निगम कर्मचारी ने बुधवार को खुद को आग में झोंक दिया। सूचना पर पहुंची पुलिस गंभीर हालत में उसे लेकर अस्पताल पहुंची, जहां उसका इलाज चल रहा है। बताया जाता है कि लगभग एक वर्ष से वेतन नहीं मिलने के कारण उसका परिवार भुखमरी से जूझ रहा था, जिसके बाद उसने यह कदम उठाया। पटना के वीरचंद पटेल पथ स्थित नगर निगम की जलापूर्ति शाखा मुख्यालय परिसर में बुधवार को विभिन्न मांगों को लेकर कर्मचारी प्रदर्शन कर रहे थे। इसी दौरान शाम लगभग 5:00 बजे परसा एतबारपुर के रहने वाले दयानंद राम ने शरीर पर केरोसिन छिड़क आग लगा ली। हालांकि साथियों ने उसे बचाने का प्रयास किया पर तब तक वह बुरी तरह झुलस चुका था। आनन-फानन में उसे इलाज के लिए पीएमसीएच में भर्ती कराया गया। जहां उसकी हालत गंभीर बनी हुई है। बताया जाता है कि लगभग एक वर्ष से वेतन नहीं मिलने को लेकर वह कई अधिकारियों से गुहार लगा चुका था पर कोई सुनवाई नहीं हुई। हालात से तंग आकर उसने यह कदम उठाया है। फतेहाबाद, मे जमीन की अदालती लड़ाई हार चुके एक दंपति ने बुधवार को स्थानीय अदालत परिसर में जहर निगल लिया। घटना के बाद कोर्ट में हड़कंप मच गया। दंपति को आनन-फानन में अस्पताल ले जाया गया, जहां अभी दोनों का इलाज चल रहा है। 42 वर्षीय महेंद्र सिंह का गांव हरिपुरा में 19 कनाल 12 मरले जमीन को लेकर इसी गांव के अमरचंद से विवाद चल रहा था। इस विवाद में महेंद्र सिंह की सुप्रीम कोर्ट में अपील खारिज होने के बाद ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट अमित शर्मा की अदालत ने 10 सितंबर को जमीन की रजिस्ट्री अमरचंद के नाम करने और 15 को अदालत में रजिस्ट्री पेश करने के आदेश दिए थे। बुधवार को अमरचंद रजिस्ट्री पेश करने अदालत आया हुआ था। इस दौरान महेंद्र सिंह व उसकी पत्नी कुलवंत कौर भी अदालत में मौजूद थे। जैसे ही अमरचंद ने जमीन की रजिस्ट्री पेश की, महेंद्र ने अपने जेब में रखी जहर की दो शीशियों में एक अपनी पत्नी को दे दी व एक खुद ले ली। देखते ही देखते दोनों ने न्यायाधीश के सामने ही जहर पी लिया। उनकी हालत बिगड़ते देख जज ने तुरंत एंबुलेंस बुलाई। एंबुलेंस के आने में देरी पर पुलिस पीसीआर में दोनों को सामान्य अस्पताल में लेकर पहुंची। महेंद्र व अमरचंद के बीच जमीन को लेकर 2004 से विवाद चल रहा था। दोनों अदालती लड़ाई लड़ रहे थे। 29 मई 2008 को तत्कालीन ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट नरेंद्र कौर ने अमरचंद के हक में फैसला दिया। महेंद्र ने फैसले के खिलाफ अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश जेएस दहिया की अदालत में अपील डाल दी। इस पर अदालत ने अमरचंद को जमीन की बजाय ब्याज सहित रकम महेंद्र सिंह को लौटाने के आदेश दे दिए। इसके खिलाफ अमरचंद पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट पहुंच गए। यहां फैसला उनके पक्ष में आया। इसके बाद महेंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली लेकिन यहां उनकी याचिका रद हो गई
प्रेमी जोड़ा अजीब संकट में फंस गया है।
घर से भागकर चंडीगढ़ मे प्रेम विवाह रचाने वाले उत्तर प्रदेश का प्रेमी जोड़ा अजीब संकट में फंस गया है। हरियाणा की अदालत ने प्रेमी जोड़े को सुरक्षा मुहैया करवाने का आदेश दिया तो यूपी हाईकोर्ट ने प्रेमी जोड़े की गिरफ्तारी का आदेश जारी कर दिया है। अदालतों के निर्णय से दोनों राज्यों की पुलिस में भी तनातनी है। मामला था उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर के प्रेमी जोड़े का। बुधवार को मामला पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचा। हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर याचिका व उसके आदेश को कोर्ट में पेश करने का आदेश दिया। इसके अलावा प्रेमी जोड़े को भी हाईकोर्ट में पेश किया गया। मुजफ्फरनगर की फरजाना के पिता सलीम ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका के माध्यम से आरोप लगाया कि उसकी लड़की फरजाना नाबालिग है और बिना मर्जी अरसद अली ने उसे अपने पास रखा हुआ है। अदालत उसकी लड़की को उनके सुपुर्द करवाए। दो राज्यों के मामले की गंभीरता को देखते हुए कोर्ट ने इस मामले में हरियाणा, पंजाब व चंडीगढ़ के कानून अधिकारियों से सहयोग मांगा है व सहायता के लिए वकील तनु बेदी को नियुक्त किया। कोर्ट ने कहा कि यह दो राज्यों के अधिकार क्षेत्र का मामला है। यूपी के मुजफ्फरनगर निवासी फरजाना व सलीम ने घर से भागकर प्रेम विवाह कर लिया और हरियाणा के यमुनानगर में आ गए और सेशन कोर्ट में पेश होकर सुरक्षा की गुहार लगाई। जज ने यमुनानगर पुलिस को प्रेमी जोडे़ को सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया। तब से प्रेमी जोड़ा पुलिस लाइन यमुनानगर में रह रहा है। इस बीच लड़की के पिता सलीम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर अपनी लड़की को कब्जे से मुक्त करने की मांग की। सलीम की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लड़के को गिरफ्तार कर लड़की मुक्त करने का आदेश दिया। इस आदेश पर यूपी पुलिस लड़के को गिरफ्तार करने यमुनानगर गई लेकिन स्थानीय पुलिस ने कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए प्रेमी जोड़े को सौंपने से इनकार कर दिया। दो राज्यों की न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र को देखते हुए सेशन जज यमुनानगर ने मामले को पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट को रेफर कर दिया।
मानसिक क्रूरता
अलग रह रही पत्नी अपने पति की प्रेमिका के खिलाफ मानसिक क्रूरता का मामला दायर नहीं कर सकती। लेकिन पति व उसके परिजनों को इस जुर्म के लिए दोषी ठहराया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अल्तमश कबीर तथा एके पटनायक ने आईपीसी की धारा 498-ए से संबंधित एक मामले में यह फैसला दिया। इस मामले में आशा रानी ने सुनीता झा के खिलाफ आरोप लगाया था कि वह उसके पति मुकुंद के साथ शादी के बगैर रहती है। सुनीता उसे मानसिक कष्ट देती है। ये दोनों ऐसे साथ रहते हैं मानो शादीशुदा हों।सेशन कोर्ट ने सुनीता की फौजदारी मामला खारिज करने की अपील ठुकरा दी। फिर झारखंड हाईकोर्ट ने भी इस फैसले में दखल से इनकार कर दिया।
हाईकोर्ट का मानना था कि सुनीता शिकायतकर्ता रानी के पति के साथ रहती थी। अत: उसे मुकुंद के परिवार का सदस्य माना जाए। इसके खिलाफ सुनीता ने शीर्ष कोर्ट में अपील की थी। धारा 498-ए के प्रावधानों का खुलासा करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इसके तहत पति या उसके रिश्तेदारों को महिला के प्रति क्रूरता बरतने का दोषी ठहराया जा सकता है। अगर कोई महिला पुरुष से रक्त संबंध या शादी के मार्फत जुड़ी हुई नहीं है तो उसके खिलाफ यह धारा नहीं लगाई जा सकती है!
हाईकोर्ट का मानना था कि सुनीता शिकायतकर्ता रानी के पति के साथ रहती थी। अत: उसे मुकुंद के परिवार का सदस्य माना जाए। इसके खिलाफ सुनीता ने शीर्ष कोर्ट में अपील की थी। धारा 498-ए के प्रावधानों का खुलासा करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इसके तहत पति या उसके रिश्तेदारों को महिला के प्रति क्रूरता बरतने का दोषी ठहराया जा सकता है। अगर कोई महिला पुरुष से रक्त संबंध या शादी के मार्फत जुड़ी हुई नहीं है तो उसके खिलाफ यह धारा नहीं लगाई जा सकती है!
रिक्शा चालकों के लिए खुशखबरी है
राष्ट्रीय राजधानी के रिक्शा चालकों के लिए खुशखबरी है। उच्चतम न्यायालय ने शहर की सड़कों पर चलने वाले रिक्शों की संख्या को सीमित करने से इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि शहर की सड़कों पर रिक्शों संख्या को सीमित किए बिना चल सकते हैं। इसमें कहा गया कि रिक्शों की संख्या को सीमित करने को तब लागू किया जा सकता है, जब अन्य तरह के वाहनों के लिए भी नीति बने। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एके गांगुली की पीठ ने कहा, क्या आपके पास दिल्ली में अन्य वाहनों को सीमित करने के लिए नीति है। अगर आपने अन्य तरह के वाहनों को सीमित किया है तभी हम आपको रिक्शों की संख्या को सीमित करने की अनुमति देंगे। पीठ ने दिल्ली नगर निगम की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उच्च न्यायालय के 10 फरवरी के आदेश को चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय ने 10 फरवरी के अपने आदेश में कहा था कि आजीविका चलाने के रिक्शा चालकों के मौलिक अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ के उस आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है जिसके तहत शहर की सड़कों पर 99 हजार से अधिक रिक्शों को चलने की अनुमति नहीं देने के एमसीडी के फैसले को निरस्त कर दिया गया था।
Tuesday, September 7, 2010
Lawmaker views and Art. 142
Lawmaker views that Policy-making not for courts PM lays down policy rekha for judges by saying do not get into policy formulation and Foodgrains order will hit farmers, impact food security
Prime Minister on Monday suggested that Supreme Court not get into the "realm of policy formulation". He was reacting to a question on the apex court's order to distribute free grain that is rotting in the open.
The Prime Minister though added that he had not seen the final judgment of the court and that he respected the sentiments behind the decision that a way should be found to ensure useful disposal of food grains to meet needs of the people. But he said that it was not possible to distribute the grain for free.
"How can food grains be distributed free to an estimated 37 per cent of the population which lives below the poverty line," Singh said in his interaction with editors at his 7 Race Course Road residence.
"I do recognise that food should be available to the people below poverty line at concessional prices. We have not allowed any increase in the issue price of food grains to people below poverty line since 2004," he said.
"At the same time making food available free would destroy incentives to farmers to produce more. If there was no food available, there would be nothing to distribute."
Singh also asserted that government had taken adequate steps, to the extent possible, in useful disbursal while noting the apex court's concern of food made available to the poor at affordable price
At the same time making food available free would destroy incentives to farmers to produce more. If there was no food available there would be nothing to distribute, he said.
Singhvi congress spokesman denied that this was a rebuff to the Supreme Court. "I totally deny that prime minister has rebuffed the Supreme Court. Those in the opposition, who are trying to sensationalise it as a rebuff to the SC, do not know how the judiciary and the executive function," Singhvi said.
The congress party spokesperson added that there was no order from the apex court to start free distribution of rotting food grains.
"The Supreme Court has given no direction, order or judgment. There is no order. If there is an order we are violating, please go and file a contempt we will face it," Singhvi said.
"I am amazed... Prime Minister talks about policy. I would most humbly inform him that the Supreme Court has the right to interpret Right to Life as enshrined in Article 21 of the Constitution. The Supreme Court has not talked about the policy," BJP chief spokesperson Ravishankar Prasad told reporters here.
"If the government cannot distribute foodgrains then why are they talking about a food security bill. As for how to distribute the foodgrains, they can learn from the Chhattisgarh government. The rations are distributed on the seventh of every month and MLAs and public servants ensure it is done smoothly and fairly," Swaraj said.
The food security should be extended to APL families also, she added.
The Union Food Ministry today told the Supreme Court that its suggestion on limiting food procurement to available storage facilities, if put to action, would hit the poor farmer and “drastically impact food security of the nation”.
In a 19-page affidavit, C Vishwanath, joint secretary in the Ministry, said: “If Food Corporation of India (FCI) and state government agencies that do the work of procurement were to limit procurement only to the extent of their storage capacities, it would mean that in years of peak procurements, when markets are not very favourable, many farmers may not be able to sell their produce... and... would be left... at the mercy of traders who may not pay adequate prices.”
The government said this would force it to go back on the assurance to farmers that “whatever quantities of foodgrains they wish to sell to the government at minimum support prices would be purchased by the FCI and the state agencies” provided quality specifications are met.
On the day when Prime Minister Manmohan Singh reminded the Supreme Court to stay within its Lakshman rekha on policy matters, the apex court retracted its order over supplying free grain to the poor and endorsed the UPA Government’s decision to set apart additional 25 lakh tonne foodgrains for BPL families over six months.
The Bench of Justices Dalveer Bhandari and Deepak Verma found the fresh affidavit filed by the Centre “very comprehensive” though the Centre summarily rejected all the proposals laid out by the court in its previous order of August 31.
Making it clear that it wished to avoid any confrontation with the Government, the judges welcomed the Centre’s move to allocate an additional 25 lakh tonne wheat/rice at BPL prices over and above the sanctioned 469.7 lakh tonne foodgrains allocated under the public distribution system (PDS).
Welcoming this short-term measure aimed for distribution across six months, the Bench said, “This decision of the Union of India would go a long way in providing the much-needed relief to the BPL population.”
On the previous date of hearing, the Bench had frowned at the Food and Public Distribution Ministry officials for treating its direction on “providing free foodgrains to the poor and needy” as a mere suggestion.
Taking a swipe instead on the media, the Bench remarked, “It was not an order but only a suggestion. We hope our orders are read next time before the media reports them.”
On the most crucial aspect of procurement of foodgrains where the court was critical of the grains being allowed to rot instead of it going to the poor and suggestion to the Centre for procuring as much grain as could be stored, the Centre’s affidavit rejected the proposal.
It said that any move to limit procurement would hurt the Centre’s policy to give “attractive price to farmers” and discourage them from growing more foodgrain. Moreover, the affidavit filed by Joint Secretary C Vishwanath stated in clear terms that the apex court’s suggestion would leave the farmers at the mercy of traders who do not pay remunerative prices, leading to change in the cropping pattern.
Admitting there was wastage of foodgrains at the godowns, Additional Solicitor General (ASG) Mohan Parasaran clarified, “There is no confrontation with the (Supreme) Court.” However, he went on to say the wastage of grain was “usual”. The Centre was even non-committal on conducting a fresh survey of the APL and BPL beneficiaries, suggesting it was the task of State Governments and that the Planning Commission had instructed the States to conduct the survey.
But even with such staunch rejection of its suggestions, the Bench welcomed the Centre’s stand and said, “We are very happy with the developments.” On the court’s suggestion for scrapping the APL-category beneficiaries to spare grain for the BPL and Antyodaya Anna Yojana, the Centre was again not agreeable. It reiterated its stand that APL beneficiaries would only be fed after the BPL and AAY beneficiaries were catered to.
However, a ray of light which the Bench saw in the affidavit was the mention of work being done on framing a Food Security Act, with the matter being actively considered by the National Advisory Council (NAC) headed by UPA chairperson Sonia Gandhi. The Bench expressed satisfaction over its concerns being met. For the petitioner NGO PUCL, senior advocate Colin Gonsalves sought time to file response as the Bench posted the matter for September 24.
In another case of over loading of trucks facing contempt of court proceedings against the Chief Secretaries of States across the country on Monday by the Supreme Court proceedings was canceled..In 2005 the then bench headed by Justice Arijit Pasayat had directed all state governments that they issued orders to prevent over loading and proceedings under the Motor Vehicle Act Owner Truck Association in 2007 in the Supreme Court filed contempt petition alleged that the state governments are not following court orders.
On another issue of enemy property lawmaker said that Only govt, not courts, can decide enemy property ownership. A new ordinance on enemy property, to replace the one that lapsed Sunday midnight, blocks the power of courts to decide the owner of assets of those who moved to Pakistan and makes the government the sole arbitrator. “No court shall have jurisdiction to order divestment from the Custodian of enemy property vested in him under this Act or direct the central government to divest such property from the Custodian.” The courts’ purview would be limited to only “adjudicate whether the property... is an enemy property or not”.
Home Minister Chidambaram has approved a new Section 18 that allows divestment of property from the Custodian — which the Enemy Property (Amendment and Validation) Bill did not — to the owner or lawful heir provided the claimant furnishes a “succession certificate or a declaration” from a competent court
Prime Minister on Monday suggested that Supreme Court not get into the "realm of policy formulation". He was reacting to a question on the apex court's order to distribute free grain that is rotting in the open.
The Prime Minister though added that he had not seen the final judgment of the court and that he respected the sentiments behind the decision that a way should be found to ensure useful disposal of food grains to meet needs of the people. But he said that it was not possible to distribute the grain for free.
"How can food grains be distributed free to an estimated 37 per cent of the population which lives below the poverty line," Singh said in his interaction with editors at his 7 Race Course Road residence.
"I do recognise that food should be available to the people below poverty line at concessional prices. We have not allowed any increase in the issue price of food grains to people below poverty line since 2004," he said.
"At the same time making food available free would destroy incentives to farmers to produce more. If there was no food available, there would be nothing to distribute."
Singh also asserted that government had taken adequate steps, to the extent possible, in useful disbursal while noting the apex court's concern of food made available to the poor at affordable price
At the same time making food available free would destroy incentives to farmers to produce more. If there was no food available there would be nothing to distribute, he said.
Singhvi congress spokesman denied that this was a rebuff to the Supreme Court. "I totally deny that prime minister has rebuffed the Supreme Court. Those in the opposition, who are trying to sensationalise it as a rebuff to the SC, do not know how the judiciary and the executive function," Singhvi said.
The congress party spokesperson added that there was no order from the apex court to start free distribution of rotting food grains.
"The Supreme Court has given no direction, order or judgment. There is no order. If there is an order we are violating, please go and file a contempt we will face it," Singhvi said.
"I am amazed... Prime Minister talks about policy. I would most humbly inform him that the Supreme Court has the right to interpret Right to Life as enshrined in Article 21 of the Constitution. The Supreme Court has not talked about the policy," BJP chief spokesperson Ravishankar Prasad told reporters here.
"If the government cannot distribute foodgrains then why are they talking about a food security bill. As for how to distribute the foodgrains, they can learn from the Chhattisgarh government. The rations are distributed on the seventh of every month and MLAs and public servants ensure it is done smoothly and fairly," Swaraj said.
The food security should be extended to APL families also, she added.
The Union Food Ministry today told the Supreme Court that its suggestion on limiting food procurement to available storage facilities, if put to action, would hit the poor farmer and “drastically impact food security of the nation”.
In a 19-page affidavit, C Vishwanath, joint secretary in the Ministry, said: “If Food Corporation of India (FCI) and state government agencies that do the work of procurement were to limit procurement only to the extent of their storage capacities, it would mean that in years of peak procurements, when markets are not very favourable, many farmers may not be able to sell their produce... and... would be left... at the mercy of traders who may not pay adequate prices.”
The government said this would force it to go back on the assurance to farmers that “whatever quantities of foodgrains they wish to sell to the government at minimum support prices would be purchased by the FCI and the state agencies” provided quality specifications are met.
On the day when Prime Minister Manmohan Singh reminded the Supreme Court to stay within its Lakshman rekha on policy matters, the apex court retracted its order over supplying free grain to the poor and endorsed the UPA Government’s decision to set apart additional 25 lakh tonne foodgrains for BPL families over six months.
The Bench of Justices Dalveer Bhandari and Deepak Verma found the fresh affidavit filed by the Centre “very comprehensive” though the Centre summarily rejected all the proposals laid out by the court in its previous order of August 31.
Making it clear that it wished to avoid any confrontation with the Government, the judges welcomed the Centre’s move to allocate an additional 25 lakh tonne wheat/rice at BPL prices over and above the sanctioned 469.7 lakh tonne foodgrains allocated under the public distribution system (PDS).
Welcoming this short-term measure aimed for distribution across six months, the Bench said, “This decision of the Union of India would go a long way in providing the much-needed relief to the BPL population.”
On the previous date of hearing, the Bench had frowned at the Food and Public Distribution Ministry officials for treating its direction on “providing free foodgrains to the poor and needy” as a mere suggestion.
Taking a swipe instead on the media, the Bench remarked, “It was not an order but only a suggestion. We hope our orders are read next time before the media reports them.”
On the most crucial aspect of procurement of foodgrains where the court was critical of the grains being allowed to rot instead of it going to the poor and suggestion to the Centre for procuring as much grain as could be stored, the Centre’s affidavit rejected the proposal.
It said that any move to limit procurement would hurt the Centre’s policy to give “attractive price to farmers” and discourage them from growing more foodgrain. Moreover, the affidavit filed by Joint Secretary C Vishwanath stated in clear terms that the apex court’s suggestion would leave the farmers at the mercy of traders who do not pay remunerative prices, leading to change in the cropping pattern.
Admitting there was wastage of foodgrains at the godowns, Additional Solicitor General (ASG) Mohan Parasaran clarified, “There is no confrontation with the (Supreme) Court.” However, he went on to say the wastage of grain was “usual”. The Centre was even non-committal on conducting a fresh survey of the APL and BPL beneficiaries, suggesting it was the task of State Governments and that the Planning Commission had instructed the States to conduct the survey.
But even with such staunch rejection of its suggestions, the Bench welcomed the Centre’s stand and said, “We are very happy with the developments.” On the court’s suggestion for scrapping the APL-category beneficiaries to spare grain for the BPL and Antyodaya Anna Yojana, the Centre was again not agreeable. It reiterated its stand that APL beneficiaries would only be fed after the BPL and AAY beneficiaries were catered to.
However, a ray of light which the Bench saw in the affidavit was the mention of work being done on framing a Food Security Act, with the matter being actively considered by the National Advisory Council (NAC) headed by UPA chairperson Sonia Gandhi. The Bench expressed satisfaction over its concerns being met. For the petitioner NGO PUCL, senior advocate Colin Gonsalves sought time to file response as the Bench posted the matter for September 24.
In another case of over loading of trucks facing contempt of court proceedings against the Chief Secretaries of States across the country on Monday by the Supreme Court proceedings was canceled..In 2005 the then bench headed by Justice Arijit Pasayat had directed all state governments that they issued orders to prevent over loading and proceedings under the Motor Vehicle Act Owner Truck Association in 2007 in the Supreme Court filed contempt petition alleged that the state governments are not following court orders.
On another issue of enemy property lawmaker said that Only govt, not courts, can decide enemy property ownership. A new ordinance on enemy property, to replace the one that lapsed Sunday midnight, blocks the power of courts to decide the owner of assets of those who moved to Pakistan and makes the government the sole arbitrator. “No court shall have jurisdiction to order divestment from the Custodian of enemy property vested in him under this Act or direct the central government to divest such property from the Custodian.” The courts’ purview would be limited to only “adjudicate whether the property... is an enemy property or not”.
Home Minister Chidambaram has approved a new Section 18 that allows divestment of property from the Custodian — which the Enemy Property (Amendment and Validation) Bill did not — to the owner or lawful heir provided the claimant furnishes a “succession certificate or a declaration” from a competent court
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