Wednesday, August 28, 2013

Pension


जून 2012 में रिटायर एक मिडिल स्कूल के टीचर श्री रामलखन बिश्वकर्मा  वाराणसी डीएम के आवास के समक्ष पार्क में 14/15 अगस्त 2013 की रात में आत्मह्त्या कर लिये.उन्हें अपनी पेशन नहीं मिल पा रही थी.हर संभावित सहायता हेतु वे दौड़ते-दौड़ते थक हार चुके थे.चोलापुर मिडिल स्कूल के  हेडमास्टर पद से रिटायर हुए थे.उनके आवास से DM,IG,SSP के साथ जिला स्तर के अन्य अधिकारियों के नाम स्पीड पोस्ट की रसीद मिली.

क़ानून व माननीय न्यायालयों के  अनुसार पेंशन पाने का अधिकार किसी की  संपत्ति है.और किसी को उसके संपत्ति से बंचित नहीं किया जा सकता. {वित्तीय हस्त पुस्तिका खंड 2 भाग 2 से 4 के मूल नियम 56 के उपनियम (ड़) }.यहाँ तक कि अधिवर्षता, स्वेच्छिक सेवा निबृत्ति , अनिवार्य अशक्तता एवं प्रतिकर पेंशन कतिपय शर्तों के अधीन अस्थायी सरकारी सेवकों को भी अनुमन्य है. हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक अपने निर्णयों में  है कहा है कि किसी भी कर्मचारी की पेंशन व ग्रेच्युटी केवल आर्थिक गबन पर रोकी जा सकती है. बिभागीय कार्यवाही,दीवानी या फौजदारी वाद न्यायालय में लंबित रहने पर किसी की  पेंशन व ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं रोका जा सकता. माननीय सुप्रीम कोर्ट ने डी० एस० नकारा बनाम भारत सरकार में पेंशन के बारे में 3 सिद्धांत प्रतिपादित किया है-

            1-Pension creates vested rights

            2-Pension is a payment for the past service rendered

            3-It is a social welfare measure rendering socio-economic justice to those who in the heyday of their life have toiled ceaselessly for the employer on an assurance that in their old age they would not be left in the lurch.

पेंशन के सम्बन्ध में नियम सिविल सर्विस रेगुलेशंस में हैं.उत्तर प्रदेश  लिबरलाइज्ड पेंशन रूल्स 1961 उत्तर प्रदेश रिटायरमेंट बेनीफिट्स रूल्स 1961 ,नयी पारिवारिक पेंशन योजना 1965 इत्यादि लाभकारी नियम बनाकर इन सुबिधाओं को और सरल,उदार,लाभप्रद और जन कल्याणकारी बनाया गया है. शासनादेश संख्या एस-3-2085/दस-907-76 दिनांक 13दिसंबर 1977 द्वारा पेंशन प्रपत्रों की तैयारी हेतु 24 मासीय समय सारिणी निश्चित है,और उत्तर प्रदेश पेंशन मामलों का (प्रस्तुतीकरण ,निस्तारण और बिलम्ब का परिमार्जन ) नियमावली 1994 02 नवम्बर 1994 से लागू है. इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने सेवकों के लिए उत्तर प्रदेश अनुकम्पा निधि स्थापित किया है . ऐसे सरकारी सेवक जिन्होंने न्यूनतम एक वर्ष सरकारी सेवा कर ली हो की मृत्यु हो जाने पर उसके परिवार द्वारा 5 वर्ष के अन्दर अनुकम्पा निधि से आर्थिक सहायता दी जाती है.

 छ: प्रकार की पेंशन होती है:--

Ø  प्रतिकर पेंशन --- सी एस आर  प्रस्तर 426 व G.O सा-3 -1713/दस-87-933/89 दिनांक 28 जुलाई 1989 के संलग्नक -1-सी(ii) दिशा निर्देश बिंदु 11(2)

Ø  अशक्तता पेंशन---- सी एस आर  प्रस्तर 441 से 457 व G.O सा-3 -1152/दस-915/89   दिनांक 01 जुलाई 1989

Ø  अधिवर्षता पेंशन--- सी एस आर  प्रस्तर 458

Ø  सेवा निबृत्ति पेंशन ---

·         अनिवार्य सेवा निबृत्ति पेंशन- मूल नियम 56ई व G.O सा-3 -1380/दस-2001- 301(40/2001 दिनांक 31 जुलाई 2001

·         स्वेच्छिक सेवा निबृत्ति पेंशन--- 20 बर्ष की सेवा पर

Ø  असाधारण पेंशन—यह पेंशन जोखिम भरे पद पर कार्य करते हुए मारे जाने पर या अशक्तता इस स्तर की हो पद पर कार्य न करने लायक हो तो शासन द्वारा पेंशन प्रदत्तकी जाती  है.

Ø  एक्सग्रेसिया पेंशन – सेवा के दौरान अंधे व बिकलांग जिन्हें नियमों के अंतर्गत कोई पेंशन देय न हों. G.O सा-2 -574/दस-942/75 दिनांक 19 – 06 – 76 से यह योजना लागू  है.

    पेंशन स्वीकृत न होने की दशा में कार्यालयाध्यक्ष /बिभागाध्यक्ष पूरी सेवा पेंशन तथा मृत्यु की दशा में 90 % आरिवारिक पेंशन अनंतिम रूप से स्वीकृत कर देगें . और ग्रेच्युटी एक माह के वेतन या रू० 3000 ( जो भी कम हो) रोककर स्वीकृत की जायेगी जो अंतिम भुगतान में से समायोजित की जायेगी. बिभागीय व न्यायिक कार्यवाही की दशा में भी अनंतिम पेंशन देय है,लेकिन ग्रेच्युटी रूकी रहेगी,लेकिन माननीय न्यायालय ने इसे केवल आर्थिक गबन तक सीमित कर दिया है.

 पेंशन हेतु सेवा निबृत्ति के 6 माह पूर्व से जीपीएफ इत्यादि की कटौती बंद कर कर्मचारी के समस्त सेवा संबंधी प्रकरण व सर्विस बुक कार्यालयाध्यक्ष /बिभागाध्यक्ष द्वारा पूर्ण करने/कराने  का प्राविधान है. सेवा के अंतिम दिन सभी सेवा निबृत्तिक लाभ दे देने का नियम है. जीपीएफ तो स्वयं कर्मचारी की होती है,जिसके 90% भुगतान में कोई बाधा उत्पन्न करना घोर पाप की श्रेणी में है. अगर कर्मचारी सेवा के अंतिम महीनों में वेतन लेते हुए सकुशल रिटायर हुआ है तो अनंतिम पेंशन देने में भी कोई बैधानिक कठिनाई नहीं है. कार्यालयाध्यक्ष /बिभागाध्यक्ष इसमें लेकिन परन्तु करता है तो केवल अपने निहित स्वार्थ के कारण ऐसा कृत्य कर रहा है.

 सिविल सेवा नियमावली    उत्तर प्रदेश रिटायरमेंट बेनीफिट्स रूल्स 1961 और अन्य निर्गत शासनादेश के अनुसार रिटायर्ड सेवक को निम्न लिखित सुबिधायें एवं लाभ देय होते हैं:-

v  पेंशन

v  पेंशन का नकदीकरण

v  उपादान

v  उपादान का भुगतान बिलम्ब से होने की दशा में ब्याज

v  अर्जित अवकाश का नकदीकरण

v  जीपीएफ  एवं सम्बध बीमा योजना का लाभ

v  सामूहिक बीमा योजना में जमा धनराशि ब्याज सहित.

v  वांछित निवास स्थान तक का यात्रा भत्ता

v  चिकित्सीय सुबिधा

   मीडिया के अनुसार  तंत्र उनकी मृत्यु के लिए जिम्मेदार है.कितनी दुखदायी जिन्दगी किसी रिटायर्ड बरिष्ठ नागरिक की बना दी जाती है.दिन-प्रति दिन थोड़ा-थोड़ा मरते मरते अंत में अपनी जीवन लीला समाप्त करने को मजबूर हो जाते हैं.  एक रिटायर्ड सीनियर सिटीजन के साथ ऐसा बर्ताव नहीं होना चाहिए था. अब तो पेंशन में कोई दिक्कत न हो ,इसके लिए महालेखाकार से यह अधिकार/कर्तब्य छीनकर उत्तर-प्रदेश  सरकार ने पेशन निदेशालय को दे दिया है. पेंशन निदेशालय ने इसको और सरलीकरण करते हुए बिकेंद्रीकृत कर मंडल स्तर पर मंडलीय निदेशक नियुक्त कर दिया है. मंडल स्तर पर पेंशन अदालत का आयोजन होता है,जिस अदालत में न्याय देने  हेतु पेशन निदेशालय के अफसर बैठते हैं. अनंतिम पेंशन का प्राविधान है,और सब कुछ उसके बैंकखाते में स्वयमेव चला जाता है.यह नियम, शासनादेश इत्यादि अफसरों की मनमानी ब्याख्या के अधीन हैं.जिस भी मामले में उनका निहित स्वार्थ पूरा नहीं होगा तो सभी नियम,क़ानून धरे रह जायेगें . यह तो हकीकत है कि रिटायर्ड सीनियर सिटीजन न सरकार,न अफसर,न समाज,न देश के किसी कार्य का माना जाता है, न कोई शारीरिक परिश्रम और न अफसरों के मनमाफिक आचरण कर पाते हैं.पेंशन ही एकमात्र उनकी जीविका का साधन है.उसमें भी इतनी कागज़,फॉर्म इत्यादि  की औपचारिकता करनी पड़ती है,उसके बाद अफसरों की शासनादेशों की मनमानी ब्याख्या जिसको कुछ रिटायर्ड लोग बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं. अब एक सीनियर सिटीजन  को आत्महत्या करनी पड़े,तो आत्मचिंतन के लिए मजबूर होने के सिवा कुछ नहीं बचा है.किसी भी संवेदनशील मानव को इस पर आश्चर्य होगा.एक मानव का अपने बुजुर्गों के प्रति यह घृणा-भाव देश को कहाँ ले जाएगा.किस तरह अफसर अपने मातहतो और कमजोरों को सताते हैं.सकलडीहा तहसील (चंदौली) में प्राथमिक विद्यालय कूरा में सहायक अध्यापक पन्ना सिह यादव का वर्ष 2010 में नौगढ़ ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय भुसोवी में प्रधानाचार्य के पद पर पदोन्नति देते हुए तबादला हुआ. नौगढ़ ब्लाक में  प्राथमिक विद्यालय भुसोवी नाम का कोई विद्यालय ही नहीं है. पन्ना सिह यादव बेसिक शिक्षा अधिकारी से लेकर जिलाधिकारी तक गुहार लगा चुके हैं, न बिभाग शर्मिन्दा है न प्रशासन .उल्टे बिभाग के लोग यह प्रचारित करते हैं कि यह अफसर की कलम की ताकत है. पन्ना सिह यादव यह कहते हैं कि पूरी ईमानदारी व निष्ठा से सेवा का परिणाम मुझे यह दिया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने तो इससे मिलती जुलती स्थिति में कह दिया,कि ऐसे अफसरों से भगवान भी कार्य नहीं करा सकते? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एआरटीओ इलाहाबाद को एक लिपिक की पदोन्नति आवेदन पत्र का समय से निस्तारण न करने पर 50 हजार का जुर्माना लगाया तथा लिपिक को पदोन्नत करने का आदेश दिया.  उत्तर प्रदेश जनहित गारंटी अधिनियम है,जिसमें बर्तमान 17 लोक सेवाओं के के स्थान पर 150 लोक सेवाओं को शामिल करने का आदेश दिनांक 21अगस्त 13 को दिया गया जिसमें पेंशन स्वीकृति ,जीपीएफ स्वीकृति,चिकित्सा एवं उपार्जित अवकाश स्वीकृति,तथा सुनिश्चित कैरियर प्रोन्नयन एवं मृतक आश्रित नियुक्ति ,मुख्यमंत्री ग्रामोद्योग रोजगार योजनान्तर्गत बैको से सहायता प्राप्त करने हेतु आवेदन पत्रों का निस्तारण,ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रोंके ट्रांसफार्मर जलने पर बदले जाने,नए घरेलू एवं ओद्योगिक विद्युत कनेक्शन एवं खराब मीटर को बदले जाने तथा बिद्युत दुर्घटना पर भुगतान किये जाने,आवासीय एवं गैर आवासीय भवन मानचित्र स्वीकृत किये जाने ,नजूल भूमि को छोड़कर भूखंड/भवन को फ्री होल्ड किये जाने तथा संपत्तियों के निबंधन ,पशुपालन बिभाग की स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा संचालित गोशालाओं के पंजीकरण आदि प्रकरणों पर निर्णय लिए जाने जैसे  जैसे सामान्य मामलों को इस अधिनियम से आच्छादित किया जाएगा.निर्धारित अवधि में निर्णय न लेने पर सम्बंधित अधिकारियों को जनहित गारंटी अधिनियम नियमों के तहत दण्डित कर 5000 रूपये तक आर्थिक दंड भरना होगा . वैसे कार्यालय कार्य प्रणाली  में इसकी काट अफसरों ने आपत्ति के रूप में खोज लिया है.एक आपत्ति लगाकर लगभग 6 महीने इस प्रकार कम से कम 3 आपत्ति से 18 माह तक किसी को इस अधिनियम की गारंटी से बंचित कर रहे हैं.

 ऐसी घटना पूर्व में भी वाराणसी में हो चुकी है, जीविका का साधन सीधे ब्यक्ति की जिन्दगी को प्रभावित करते हैं. ०1 अगस्त 2007 को 7 बिकलांग लोग गुरुबाग जो वाराणसी में लक्शा थाने  से महज 300 मीटर दूर होगा ,जहर खाकर सड़क पर मर गए .2 घंटे तक सड़क पर तड़पते रहे ,प्रशासन व पुलिस का कथन था  कि नाटक कर रहे हैं.मेडिकल सहायता की कोई आवश्यकता नहीं है. जब एक,दो कमजोर स्वास्थ्य वालों का  शरीर मर कर शिथिल पड गया ,तो सबको अस्पताल ले जाया गया.5 ने दम तोड़ दिया. बिकलांगों की गुमटी जिसके सहारे उनका गुजर वसर चल रहा था. उठाकर जब्त कर ली गयी थी. उनकी जीविका के लिए कोई बैकल्पिक ब्यवस्था/जगह नहीं दी गयी.

 क्या सचमुच ऐसी स्थिति है? अनिल कुमार महाजन 1977 बैचके आईएएस हैं. 1993 में उनके बिरुद्ध जांच शुरू हुई ,जब वे बिहार में पदस्थ थे. 11 साल जांच चलती रही जिसमें  वे दो बार निलंबित किये गए. स्वेच्छिक सेवानिबृत्ति  का उनका प्रार्थना पत्र यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि सेवा काल 20 साल नहीं हुआ है. अंत में 15 अक्टूबर 2007 को उनको पागल घोषित करते हुए  जबरदस्ती रिटायरमेंट दे दिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें पूर्ण वेतन देते हुए सभी लाभ देने का आदेश 18 अगस्त 13 को दिया. जस्टिस जीएस सिंघवी.और जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की पीठ ने कहा कि 1977 में नौकरी के समय वे पागल नहीं थे . नौकरी के दौरान पागल इत्यादि अयोग्यता में कर्मचारी को उसके पद के अनुरूप कार्य देकर नौकरी में रखना चाहिए .यदि उस समय कोई पद न खाली हो तो ऐसा कोई पद निर्मित कर उस समय तक कार्य पर रखना चाहिए ,जब तक कोई उपयुक्त पद खाली न हो जाय. The Persons with disabilities (Equal Opportunities,Protection of Rights and Full Participation ) Act 1995 की धारा 47 की ब्याख्या करते हुए  सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 30 साल बाद पागल घोषित कर निकालना गलत है. हो सकता है कि बिहार सरकार और याची के बीच कुछ समस्या रही हो लेकिन किसी को पागल घोषित कर निकाल देना बिधि सम्मत नहीं है. हाई कोर्ट ने याची के वकील को रिट वापस लेने की अनुमति देते समय  केवल जांच अधिकारी की जांच आख्या को देखा है,और सभी तथ्यों को नहीं देखा  है.

 

 तंत्र क्यों और कैसे कार्य करता है? कुछ माह पूर्व प्रधान मंत्री कार्यालय के एक बरिष्ठ नौकरशाह ने अपने आवास आबंटन हेतु प्रयत्न किया.आवास आबंटित भी हो गया लेकिन 8 माह से उसकी मरम्मत ही हो रही थी. थकहार कर बरिष्ठ नौकरशाह ने मंत्री जी को पकड़ा, उन्होंने बिभाग के अफसरों को सख्त हिदायत दिया कि आवास 1 घंटे के अन्दर तैयार हो जाना चाहिए .फ़्लैट 1 घंटे में तैयार कर बरिष्ठ नौकरशाह को दे दिया गया.( Hindustan times August 19, 2013 INSIDE GOVERNMENT)

 ऐसी हालत में क्या मिडिल स्कूल के अध्यापक को उक्त दोनों सुबिधा लेनी चाहिए थी? कोशिश करने पर भी मंत्री तक आम आदमी नहीं पहुँच पाता ,और सरकार के बिरुद्ध अदालत में मुकदमा लड़ना किसी आईएएस के बश की ही बात है.  रिटायर्ड हाई-कोर्ट के जज आर.ए.मेहता 25 अगस्त 2011 को  गुजरात के लोकायुक्त नियुक्त हुए. इनको नियुक्ति और ज्वाईन कराने की जगह नियुक्ति को अनियमित बताते हुए याचिका राज्य प्रशासन द्वारा दाखिल कर दी गयी. उनको ज्वाईन नहीं कराया गया. यह तथ्य जग-जाहिर है कि दिसंबर 2003 से लोकायुक्त गुजरात में नहीं हैं. याचिका दर याचिका खारिज होने पर रिब्यू याचिका पेश की गयी. रिब्यू खारिज होने पर पुन:निरीक्षण (Curative petition) पेश की गयी,जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा अस्वीकार की गयी. मात्र 45 करोड़ जनता का रूपया बर्बाद हुआ और 2 साल का समय लगा,जब कि रिटायर्ड हाई-कोर्ट के जज से सम्बंधित मामला था.सुप्रीम कोर्ट ने इनकी नियुक्ति को बैध घोषित किया. 45 करोड़ तो कोई ईमानदार कर्मचारी पूरे सेवा काल में नहीं प्राप्त कर सकता.

  सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है कि वर्तमान में मुकदमा लड़ना वेहद महँगा हो गया है.न्यायमूर्ति बीएस चौहान एवं एसए बोब्दे की पीठ ने कहा है  कि न्यायिक प्रक्रिया इस कदर धीमी है कि आम लोगों को यह धारणा हो गयी है कि उनकी जिन्दगी में शायद ही उन्हें इन्साफ मिले.कोई ज्योतिषाचार्य भी यह भविष्यबाणी नहीं कर सकता कि आम आदमी को कब तक न्याय मिल पायेगा. न्यायिक पेशे को कभी बेहद पबित्र माना जाता था,लेकिन बर्तमान में इसका ब्यावासायीकरण हो गया है ,इससे इन्साफ की लड़ाई गरीबों के सामर्थ्य के बाहर हो गयी है.न्याय प्रदान करने की राह में जज के साथ वकील भी बराबर के भागीदार हैं,लिहाजा अधिवक्ताओं का यह कर्तब्य है कि वे मुश्किल में में फंसे हुए शख्श को राहत दिलाएं न कि उनका शोषण करें. कोर्ट ने ऐसे वकीलों पर नाराजगी जाहिर की जो अपने मुवक्किल को केस लड़ने के लिए फंसाते हैं,और बाद में केस को किसी अन्य वकील के हवाले कर देते हैं.  ने यह टिप्पणी एक ऐसे वकील को फटकार लगाते हुए की जिसने मुकदमा तो दायर किया लेकिन जिरह करने के लिए केस के दौरान कभी उपस्थित नहीं हुआ.

 पेंशन अदालत,तहसील दिवस,जिला स्तर,मंडल स्तर,शासन स्तर पर प्रत्येक बैठक में पेंशन देने व लंबित मामलों की समीक्षा होती है,इसके बाद भी किसी को अपने पेंशन हेतु मरना पड़े तो इन पेंशन अदालत, तहसील दिवस और अनेक स्तरीय मीटिंग का कोई ओचित्य नहीं है. नौकर शाह की अपनी ब्याख्या और कार्य शैली है. उनको तो कभी रिटायर ही नहीं होना है, और रिटायर के पूर्व ही कारपोरेट लीडर और देश के लीडरों को इतना फ़ायदा दे चुके हैं कि इनके लिए पद व नौकरी आरक्षित रहती है,जो रिटायर होते ही इनको प्राप्त है. पेंशन से बहुत ज्यादा आर्थिक लाभ इनकी मुट्ठी में रहता है,फिर पेंशन के रूल्स व रेगुलेशंस का अनुपालन करने/कराने की क्या आवश्यकता है.एक सचिव महोदय तो कह ही चुके हैं कि जो जन्म लेता है,उसे मरना ही है.  भूतपूर्व कैबिनेट सेक्रेटरी श्री के० एम० चंद्रशेखर का इंटरब्यू दिनांक 20 अगस्त 13 के Hindustan times –INSIDE GOVERNMENT Page पर छापा है, जिसके अनुसार “ ---there are serious systemic flaws in our administrative mechanism.We operate under a set of archaic rules using procedures no longer relevant .Our systems are still based on colonial concepts of concentration of power and distrust”

“When I entered the civil service in 1970 ,the range and ambit of government services was much smaller ,Besides,other components of national governance,namely ,the political excutive and the judiciary have grown in their reach and authority ,thus shrinking the space available for the administrative excutive.The regulatory system,including audit, has also grown much larger .For these reasons ,I think decisions making ,like other aspects of governance ,has been affected”

सचमुच यह सही बिश्लेषण है.आज मंत्री,सांसद,बिधायक,पंचायत अध्यक्ष ,महापौर,इत्यादि जिला स्तरीय  मीटिंग में कलक्टर और सीडीओ को एक किनारे बैठाकर महत्वहीन कर दिए हैं. अनेक जन कल्याण कारी अधिनियम,नियम,शासनादेश और योजनाओं पर कुण्डली मार कर बैठना,जिससे जन सामान्य इससे बंचित रहे और राजनेता के आगे पीछे दुम हिलाना ही नौकरशाह की दुर्गति का कारण है.नौकरशाह की ब्याख्या ऐसे शिखंडी की तरह है,जिसके सामने पराक्रमी भी अस्त्र-शस्त्र डालकर मृत्यु को वरण कर लेते हैं.