नई दिल्ली गजल गायक सनोवर खान, देश-विदेश में कई शो प्रस्तुत कर चुके हैं। आगरा का रहने वाला यह गायक एम्स में तिल-तिल कर मरने को मजबूर है। तीन महीने से स्ट्रेचर से उठ नहीं पाया है। एम्स में इलाज चल रहा है, लेकिन उसे भर्ती नहीं किया जा सका है। अस्पताल परिसर में कभी इस कोने तो कभी उस कोने सनोवर खान एवं उसके परिजनों की रात गुजर रही है। इसी तरह हिसार की रहने वाली सुनीता की किडनी खराब है। गरीब सुनीता तीन महीने से एम्स परिसर में खुले आकाश के नीचे रह रही है। अस्पताल में भर्ती नहीं होने एवं रहने के लिए कोई जगह नहीं होने की स्थिति में उसे खुले आकाश के नीचे रात गुजारनी पड़ रही है। ये तो उदाहरण हैं। इस तरह के लाचार गरीब मरीजों की संख्या एम्स में दर्जनों में है। विभिन्न राज्यों से इलाज के लिए एम्स पहुंचे गरीब मरीजों के सामने सबसे बड़ी समस्या डाक्टर से टाइम मिलने के दौरान रहने की है। मरीज को यदि दो दिन भी इंतजार करना पड़े तो वह कहां रहे। बाहर रह कर खाना एवं रहना उनके लिए एक अलग मर्ज बन जाता है। अस्पताल परिसर के बाहर सड़क किनारे फूटपाथ पर दर्जनों मरीज रात गुजारते हैं। फरुर्खाबाद के रामप्रकाश के बच्चे को कैंसर है। उन्होंने बताया कि शनिवार को उनके लिए उस समय मुसीबत खड़ी हो गई जब इंतजार कर रहे मरीज एवं उनके परिजनों को जबरदस्ती परिसर से बाहर निकाल दिया गया। रात को फुटपाथ पर सोते हुए उसका सामान चोरी हो गया। धर्मशाला में भी नहीं है जगह: एम्स अस्पताल परिसर के बाहर तीन धर्मशाला हैं। धर्मशालाएं तीन दशक पहले बनी थीं। इन तीनों की लगभग दो सौ लोगों को ठहरने की क्षमता है। यह वर्तमान जरूरत के हिसाब से बहुत कम है। अस्पताल में इलाज की तरह ही यहां भी नंबर लगे होते हैं। यहां ठहरने के लिए भी अस्पताल के डाक्टर की अनुमति जरूरी है। मगर बहुत से मरीजों के वश की बात नहीं है कि वे यहां ठहरने की हिम्मत ही जुटा सकें क्योंकि यहां प्रति दिन के तीन सौ रुपये चार्ज है। अस्पताल परिसर में मरीज के लिए बने इंतजार कक्ष में पचास मरीजों के ठहरने की क्षमता है। यहां भी लोग भरे हुए हैं। एम्स के प्रवक्ता डा. वाईके गुप्ता बताते हैं कि सभी मरीजों को एक दिन में नहीं देखा जा सकता है। इसलिए इंतजार सूची देना उनकी मजबूरी है। अस्पताल परिसर के बाहर कई धर्मशाला हंै। मरीज अस्पताल परिसर ही नहीं वार्ड के बरामदे में भी बिस्तर लगा लेते हैं।
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