अधिकांश स्कूल वन विभाग की भूमि पर बने हैं।
शिक्षा में हिमाचल प्रदेश ने कई आयाम स्थापित किए हैं। प्रदेश के हाल ही में प्रस्तुत बजट में भी सरकार ने सबसे अधिक ध्यान शिक्षा क्षेत्र की तरफ दिया है। बदलते परिवेश में इस क्षेत्र की अहमियत को समझते हुए अगले वित्त वर्ष में शिक्षा के लिए 3164. 54 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है, जो पिछले साल के मुकाबले 597.64 करोड़ अधिक है। निसंदेह यह राशि इस क्षेत्र को और मजबूत करने में सहायक सिद्ध होगी। इस क्षेत्र में सरकार की तरफ से किए गए प्रयास सुखद रहे हैं। इसी कड़ी में जहां शिमला जिला के प्रगतिनगर में इंजीनियरिंग कॉलेज खुलेगा वहीं हमीरपुर में तकनीकी विश्वविद्यालय ने काम करना शुरू कर दिया है, साथ ही केंद्रीय विश्वविद्यालय भी हिमाचल में खुल चुका है। प्रदेश के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए बाहरी राज्यों में न भटकना पड़े इसके लिए बेहतर प्रयास किए जा रहे हैं। इन सबके बावजूद आधारभूत शिक्षा के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। चिंता की बात है कि प्रदेश के 2109 स्कूलों के पास अपना भवन नहीं है, यानी ये स्कूल पराई भूमि पर चल रहे हैं। स्कूल के नाम भूमि का मालिकाना हक न होने से समस्याएं आ रही हैं और अधिकांश स्कूल वन विभाग की भूमि पर बने हैं। आंकड़ों पर गौर फरमाएं तो चंबा में 811 स्कूल व मंडी में 526 स्कूलों के पास भवन नहीं हैं। इनमें अधिकांश संख्या प्राथमिक स्कूलों की है। जिन स्कूलों के पास अपने भवन हैं उनमें से बहुत से भवनों की हालत दयनीय है। रखरखाव न होने के कारण वर्षो पहले बने कई भवन गिरने की कगार पर हैं। पिछले दिनों ऊना जिले के छत्तरपुर टाडा में स्कूल परिसर में चारदीवारी गिरने से चार बच्चों की मौत के बाद शिक्षा विभाग चौकस हुआ और पुराने व जर्जर स्कूल भवनों के स्थान पर नए भवन बनाने के फरमान जारी हुए पर वे सभी एक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा हैं। स्कूल स्तर पर अभी तक बहुत कुछ किया जाना बाकी है। स्टाफ की कमी को दूर करते हुए दूरदराज के स्कूलों में शिक्षकों की व्यवस्था करवाना जरूरी है। सरकार को मिड-डे मील में सामने आ रही शिकायतों को निपटाना होगा। अगर बच्चों की नींव मजबूत करने के लिए सरकार गंभीर है तो उसे स्कूलों में पेश आने वाली समस्याओं को हल करना चाहिए। जिन स्कूलों के नाम अभी तक भूमि नहीं हुई है उसके लिए प्रक्रिया शुरू की जाए। आशा की जानी चाहिए कि आने वाले समय में शिक्षा के क्षेत्र में सरकार की तरफ से किए गए प्रयास कागजों में नहीं जमीन पर दिखाई देंगे।
शिक्षा में हिमाचल प्रदेश ने कई आयाम स्थापित किए हैं। प्रदेश के हाल ही में प्रस्तुत बजट में भी सरकार ने सबसे अधिक ध्यान शिक्षा क्षेत्र की तरफ दिया है। बदलते परिवेश में इस क्षेत्र की अहमियत को समझते हुए अगले वित्त वर्ष में शिक्षा के लिए 3164. 54 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है, जो पिछले साल के मुकाबले 597.64 करोड़ अधिक है। निसंदेह यह राशि इस क्षेत्र को और मजबूत करने में सहायक सिद्ध होगी। इस क्षेत्र में सरकार की तरफ से किए गए प्रयास सुखद रहे हैं। इसी कड़ी में जहां शिमला जिला के प्रगतिनगर में इंजीनियरिंग कॉलेज खुलेगा वहीं हमीरपुर में तकनीकी विश्वविद्यालय ने काम करना शुरू कर दिया है, साथ ही केंद्रीय विश्वविद्यालय भी हिमाचल में खुल चुका है। प्रदेश के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए बाहरी राज्यों में न भटकना पड़े इसके लिए बेहतर प्रयास किए जा रहे हैं। इन सबके बावजूद आधारभूत शिक्षा के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। चिंता की बात है कि प्रदेश के 2109 स्कूलों के पास अपना भवन नहीं है, यानी ये स्कूल पराई भूमि पर चल रहे हैं। स्कूल के नाम भूमि का मालिकाना हक न होने से समस्याएं आ रही हैं और अधिकांश स्कूल वन विभाग की भूमि पर बने हैं। आंकड़ों पर गौर फरमाएं तो चंबा में 811 स्कूल व मंडी में 526 स्कूलों के पास भवन नहीं हैं। इनमें अधिकांश संख्या प्राथमिक स्कूलों की है। जिन स्कूलों के पास अपने भवन हैं उनमें से बहुत से भवनों की हालत दयनीय है। रखरखाव न होने के कारण वर्षो पहले बने कई भवन गिरने की कगार पर हैं। पिछले दिनों ऊना जिले के छत्तरपुर टाडा में स्कूल परिसर में चारदीवारी गिरने से चार बच्चों की मौत के बाद शिक्षा विभाग चौकस हुआ और पुराने व जर्जर स्कूल भवनों के स्थान पर नए भवन बनाने के फरमान जारी हुए पर वे सभी एक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा हैं। स्कूल स्तर पर अभी तक बहुत कुछ किया जाना बाकी है। स्टाफ की कमी को दूर करते हुए दूरदराज के स्कूलों में शिक्षकों की व्यवस्था करवाना जरूरी है। सरकार को मिड-डे मील में सामने आ रही शिकायतों को निपटाना होगा। अगर बच्चों की नींव मजबूत करने के लिए सरकार गंभीर है तो उसे स्कूलों में पेश आने वाली समस्याओं को हल करना चाहिए। जिन स्कूलों के नाम अभी तक भूमि नहीं हुई है उसके लिए प्रक्रिया शुरू की जाए। आशा की जानी चाहिए कि आने वाले समय में शिक्षा के क्षेत्र में सरकार की तरफ से किए गए प्रयास कागजों में नहीं जमीन पर दिखाई देंगे।
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