: आल इंडिया शिया पर्सनल ला बोर्ड ने कन्या भू्रण हत्या के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर दिया। बोर्ड के दो दिनी अधिवेशन में भू्रण हत्या को 'हराम' करार दिया गया। कहा गया कि इस्लाम में केवल उसी सूरत में गर्भपात की इजाजत है, जब महिला की जान बचाने के लिए ऐसा अपरिहार्य हो।
बोर्ड ने 'हेल्पलाइन' शुरू करने की भी घोषणा की है। गर्भ में लड़की होने पर अगर ससुराल में बहू पर गर्भपात कराने के लिए दबाव पड़ता है, तो उसे हिम्मत कर इस 'हेल्पलाइन' पर बस एक फोन करना होगा, बाकी का काम बोर्ड सम्भाल लेगा। ऐसा न करने के लिए पति को समझाया जाएगा। अगर वह नहीं मानता है तो उस परिवार का समाजिक बहिष्कार का एलान हो जाएगा। उस परिवार में न कोई अपनी लड़की देगा और न ही उस परिवार की लड़की को अपने यहां ब्याहेगा। सुख-दुख में भी उस परिवार से कोई राब्ता नहीं रहेगा।
बोर्ड के अध्यक्ष मिर्जा मोहम्मद अतहर की अध्यक्षता में हुए अधिवेशन में शिया समुदाय से निकाह के समय ही 'मेहर' की राशि नकद चुकाने का अनुरोध किया। यह रकम लड़के वालों की तरफ से चुकाई जाती है। निकाह के समय ही 'मेहर' की राशि चुकाना 'सुन्नत-ए-रसूल' है। बोर्ड ने महंगी शादियों पर भी अपना विरोध दर्ज कराया। कम खर्च के लिए सामूहिक शादियों के आयोजन की बात कही। बोर्ड ने स्कूली पाठ्यक्रम में इमाम-ए-हुसैन की जीवनी को शामिल करने, लखनऊ की सड़कों के नाम यहां के नवाबों के नाम पर रखने, विभिन्न निगमों, आयोगों और विधान परिषद- राज्यसभा में शियाओं को नामित करने की वकालत की। अधिवेशन में कहा गया कि पांच करोड़ हिन्दुस्तानी शियाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व एक प्रतिशत से भी कम है। बोर्ड ने कहा कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकवादी संगठनों का शिकार होने वाले शियों को हिन्दुस्तान में राजनीतिक शरण दें।
बोर्ड ने 'हेल्पलाइन' शुरू करने की भी घोषणा की है। गर्भ में लड़की होने पर अगर ससुराल में बहू पर गर्भपात कराने के लिए दबाव पड़ता है, तो उसे हिम्मत कर इस 'हेल्पलाइन' पर बस एक फोन करना होगा, बाकी का काम बोर्ड सम्भाल लेगा। ऐसा न करने के लिए पति को समझाया जाएगा। अगर वह नहीं मानता है तो उस परिवार का समाजिक बहिष्कार का एलान हो जाएगा। उस परिवार में न कोई अपनी लड़की देगा और न ही उस परिवार की लड़की को अपने यहां ब्याहेगा। सुख-दुख में भी उस परिवार से कोई राब्ता नहीं रहेगा।
बोर्ड के अध्यक्ष मिर्जा मोहम्मद अतहर की अध्यक्षता में हुए अधिवेशन में शिया समुदाय से निकाह के समय ही 'मेहर' की राशि नकद चुकाने का अनुरोध किया। यह रकम लड़के वालों की तरफ से चुकाई जाती है। निकाह के समय ही 'मेहर' की राशि चुकाना 'सुन्नत-ए-रसूल' है। बोर्ड ने महंगी शादियों पर भी अपना विरोध दर्ज कराया। कम खर्च के लिए सामूहिक शादियों के आयोजन की बात कही। बोर्ड ने स्कूली पाठ्यक्रम में इमाम-ए-हुसैन की जीवनी को शामिल करने, लखनऊ की सड़कों के नाम यहां के नवाबों के नाम पर रखने, विभिन्न निगमों, आयोगों और विधान परिषद- राज्यसभा में शियाओं को नामित करने की वकालत की। अधिवेशन में कहा गया कि पांच करोड़ हिन्दुस्तानी शियाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व एक प्रतिशत से भी कम है। बोर्ड ने कहा कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंकवादी संगठनों का शिकार होने वाले शियों को हिन्दुस्तान में राजनीतिक शरण दें।
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