Saturday, April 9, 2011

सीधी साझेदारी को समेटने का लचीलापन (अंकुश और सतुलन व एहतियात )भी कम नहीं है।

अन्ना हजारे के अनशन ने भारतीय लोकतत्र में एक नए दौर की शुरुआत की है। इसमें जनता प्रतिनिधि आधारित लोकतत्र की मौजूदा प्रणाली में अपने लिए अधिक भागीदारी के लिए जगह बना रही है। भारतीय सविधान में जनता के लिए नीतिगत फैसले लेते समय आम लोगों की रायशुमारी के लिए भले ही केवल सैद्धातिक सहमति हो। लेकिन आम आदमी और सरकार के बीच सीधी साझेदारी को समेटने का लचीलापन भी कम नहीं है।
दरअसल, भारतीय सविधान सस्थाओं के सहारे लोकतत्र सुनि›ित करता है। लिहाजा सस्थाओं से बाहर जाकर शासन चलाने की किसी व्यवस्था के लिए इसमें जगह नहीं है। हालाकि सविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के मुताबिक भारतीय सविधान जनता की सतत सहभागिता वाले लोकतत्र की बात करता है। भारतीय सविधान में जनता के अपने दायित्वों और मूलभूत अधिकारों के साथ ही कर्तव्य निर्वहन के प्रति सचेत रहने के अलावा शासन प्रणाली के सजग रहने की बात भी कही गई है।
सविधान सभा में लोकतत्र के मॉडल पर हुई बहस के दौरान भी कई नेताओं ने जनता की भागीदारी के मुद्दे को उठाया था। 3 जनवरी 1949 को हुई बहस के दौरान स्वतत्रता सेनानी और पूर्व कैबिनेट मत्री महावीर त्यागी ने महात्मा गाधी के लोकतात्रिक मॉडल का हवाला देते हुए कहा था कि इसमें जनता की इच्छा को सर्वोपरि स्थान दिया गया है जिसके आगे किसी व्यक्ति की सत्ता शक्ति गौण है। व्यक्ति और व्यवस्था को एकाकार बताने वाले गाधी मॉडल व्यक्ति के हितों पर होने वाले हमले को व्यवस्था पर हमला मानता है। इसी तरह 19 नवबर 1949 को सविधान सभा में एचवी कामथ ने भी सत्ता के विकेंद्रित मॉडल की हिमायत की थी।
सविधान विशेषज्ञ राजीव धवन के अनुसार काफी विचार विमर्श के बाद सविधान निर्माताओं ने प्रतिनिधि लोकतत्र की व्यवस्था को चुना। जनता शासन व्यवस्था के लिए अपने अधिकार राजनीतिक वर्ग को दे और वह सस्थाओं के माध्यम से लोकतात्रिक प्रणाली सुनि›ित करे। इसके लिए सविधान में व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अनुच्छेद 19 और 300 आदि में सरकार और अफसरशाही पर अंकुश और सतुलन व एहतियात के उपाय भी किये गए। हालाकि धवन मानते हैं कि अन्ना हजारे के आदोलन से उपजी स्थिति प्रतिनिधि लोकतत्र से आगे जनता के सीधे प्रतिनिधित्व का एक नया अध्याय शुरू करती है।
वैसे सविधान में पचायती राज व्यवस्था के प्रावधान सीधे जनता की भागीदारी की हिमायत करते हैं और यह काफी हद तक गाधी के लोकतात्रिक मॉडल से भी प्रेरित है जिसमें प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाव को सशक्त करने की बात की गई है।
भारतीय सविधान जनता की सतत सहभागिता वाले लोकतत्र की बात करता है। भारतीय सविधान में जनता के अपने दायित्वों और मूलभूत अधिकारों के साथ ही कर्तव्य निर्वहन के प्रति सचेत रहने के अलावा शासन प्रणाली के सजग रहने की बात भी कही गई है।
-सुभाष कश्यप
जनता शासन व्यवस्था के लिए अपने अधिकार राजनीतिक वर्ग को दे और वह सस्थाओं के माध्यम से लोकतात्रिक प्रणाली सुनि›ित करे। इसके लिए सविधान में व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अनुच्छेद 19 और 300 आदि में सरकार और अफसरशाही पर अंकुश और सतुलन व एहतियात के उपाय भी किये गए।
-राजीव धवन

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