रिश्वतखोरी में नेशनल एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड के अध्यक्ष और उनकी पत्नी की गिरफ्तारी भ्रष्टाचार का सामान्य मामला नहीं है। इस गिरफ्तारी से एक बार फिर यह पता चलता है कि उच्च पदों पर बैठे लोग किस तरह दोनों हाथों से अवैध तरीके से अकूत संपदा बटोरने में लगे हुए हैं और कोई भी उन्हें रोकने-टोकने वाला नहीं है। जब भारत सरकार की नवरत्न के तमगे वाली कंपनी का इतना बड़ा अधिकारी घूसखोरी में लिप्त हो तो फिर आम रिश्वतखोर अफसरों के भयभीत होने की जरूरत ही नहीं रह जाती। यह सामान्य बात नहीं कि नाल्को अध्यक्ष के पास से दो करोड़ रुपये से अधिक का सोना और 30 लाख रुपये नकद मिले। नाल्को के अध्यक्ष को गिरफ्तार करने वाले केंद्रीय जांच ब्यूरो के अधिकारियों की मानें तो उन्होंने घूस लेने के लिए एक दलाल की सेवाएं ले रखी थीं। वह रिश्वत में मिली रकम को सोने की ईंटों में तब्दील करता था। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि नाल्को के मुखिया को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है, क्योंकि इस बारे में सुनिश्चित नहीं हुआ जा सकता कि उन्हें अपने किए की सजा वास्तव में मिलेगी। यह पहली बार नहीं है जब सीबीआइ ने रिश्वतखोरी के आरोप में किसी बड़े अधिकारी को गिरफ्तार किया हो। इस तरह की गिरफ्तारियां रह-रहकर होती ही रहती हैं। आम तौर पर ऐसे अफसरों के पास करोड़ों की चल-अचल संपत्तिनिकलती है, लेकिन यह कभी नहीं सुनाई देता कि सरकार इस संपत्तिको जब्त कर लेती है।
यदि केंद्र सरकार भ्रष्टाचार को रोकने को लेकर वास्तव में गंभीर है तो उसे ऐसे कोई नियम-कानून बनाने ही पड़ेंगे जिससे भ्रष्ट तत्व भय खाएं। यह निराशाजनक है कि भ्रष्ट तत्वों को भयभीत करने वाली व्यवस्था बनाने से जानबूझकर इनकार किया जा रहा है। केंद्र सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें तो कर रही है, लेकिन जो कुछ किया जाना अपरिहार्य हो चुका है उससे मुंह मोड़े हुए है। यह समय की मांग है कि केंद्र सरकार भ्रष्ट तत्वों पर शिकंजा कसने के लिए वैसा ही कानून बनाए जैसा बिहार सरकार ने बनाया है और जो न केवल प्रभावी नजर आ रहा है, बल्कि जिसकी सर्वत्र प्रशंसा भी हो रही है। यदि यह सोचा जा रहा है कि भ्रष्ट अफसरों पर जब-तब कार्रवाई करने से वे अपनी हरकतों से बाज आएंगे तो ऐसा होने वाला नहीं है। वैसे भी अनेक मामलों में यह सामने आ चुका है कि भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ मुश्किल से ही कोई कार्रवाई हो पाती है। भ्रष्ट अफसरों पर अंकुश लगाने के मामले में जैसा ढुलमुल रवैया केंद्र सरकार का है वैसा ही राज्य सरकारों का भी है। कुछ राज्यों में तो ऐसे भी उदाहरण सामने आ रहे हैं जहां नेता और नौकरशाह मिलकर करोड़ों रुपये बटोर रहे हैं। विगत दिवस ही उत्तार प्रदेश में राज्य औद्योगिक विकास निगम के मुख्य अभियंता के ठिकानों पर मारे गए छापे में सीबीआइ को लगभग सौ स्थानों से संचालित बैंक खातों के दस्तावेज मिले और माना जा रहा है कि प्लाटों के आवंटन में जो घोटाला किया गया वह डेढ़ सौ करोड़ से अधिक का हो सकता है। क्या यह संभव हो सकता है कि कोई नौकरशाह राजनीतिक संरक्षण के बगैर अवैध तरीके से इतनी अधिक संपदा बटोर ले?
यदि केंद्र सरकार भ्रष्टाचार को रोकने को लेकर वास्तव में गंभीर है तो उसे ऐसे कोई नियम-कानून बनाने ही पड़ेंगे जिससे भ्रष्ट तत्व भय खाएं। यह निराशाजनक है कि भ्रष्ट तत्वों को भयभीत करने वाली व्यवस्था बनाने से जानबूझकर इनकार किया जा रहा है। केंद्र सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें तो कर रही है, लेकिन जो कुछ किया जाना अपरिहार्य हो चुका है उससे मुंह मोड़े हुए है। यह समय की मांग है कि केंद्र सरकार भ्रष्ट तत्वों पर शिकंजा कसने के लिए वैसा ही कानून बनाए जैसा बिहार सरकार ने बनाया है और जो न केवल प्रभावी नजर आ रहा है, बल्कि जिसकी सर्वत्र प्रशंसा भी हो रही है। यदि यह सोचा जा रहा है कि भ्रष्ट अफसरों पर जब-तब कार्रवाई करने से वे अपनी हरकतों से बाज आएंगे तो ऐसा होने वाला नहीं है। वैसे भी अनेक मामलों में यह सामने आ चुका है कि भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ मुश्किल से ही कोई कार्रवाई हो पाती है। भ्रष्ट अफसरों पर अंकुश लगाने के मामले में जैसा ढुलमुल रवैया केंद्र सरकार का है वैसा ही राज्य सरकारों का भी है। कुछ राज्यों में तो ऐसे भी उदाहरण सामने आ रहे हैं जहां नेता और नौकरशाह मिलकर करोड़ों रुपये बटोर रहे हैं। विगत दिवस ही उत्तार प्रदेश में राज्य औद्योगिक विकास निगम के मुख्य अभियंता के ठिकानों पर मारे गए छापे में सीबीआइ को लगभग सौ स्थानों से संचालित बैंक खातों के दस्तावेज मिले और माना जा रहा है कि प्लाटों के आवंटन में जो घोटाला किया गया वह डेढ़ सौ करोड़ से अधिक का हो सकता है। क्या यह संभव हो सकता है कि कोई नौकरशाह राजनीतिक संरक्षण के बगैर अवैध तरीके से इतनी अधिक संपदा बटोर ले?
- दिल्ली के लोगों से अब सीवरेज के इस्तेमाल के लिए शुल्क लेने के संबंध में जल बोर्ड द्वारा जारी किया गया नया फरमान जहां एक ओर लोगों की मुफ्तखोरी पर लगाम लगाने की दृष्टि से सही है, वहीं यदि दूसरेदृष्टिकोण से देखा जाए तो बोर्ड को लोगों को बिना समुचित सीवरेज सुविधा दिए शुल्क नहीं वसूल करना चाहिए। जल बोर्ड ने विगत शुक्रवार को एक सर्कुलर जारी किया है, जिसके अनुसार वह एक अप्रैल से दिल्लीवासियों से सीवरेज शुल्क वसूल करेगा। यह शुल्क उपभोक्ता के प्लाट के आकार पर निर्भर करेगा और शुल्क न देने पर सीवर कनेक्शन काटने का भी प्रावधान किया गया है। यह सीवरेज शुल्क 150 से 2500 रुपये तक होगा। जल बोर्ड के इस निर्णय को गलत नहीं ठहराया जा सकता लेकिन बोर्ड को यह भी देखना होगा कि दिल्ली के तमाम इलाके सीवरेज जाम की समस्या से जूझ रहे हैं। मध्य दिल्ली के दरियागंज, चांदनी चौक, चावड़ी बाजार, कमला नगर, सदर बाजार, आइटीओ व पुरानी दिल्ली के कई इलाके, उत्तार-पश्चिमी दिल्ली के मुखर्जी नगर, शालीमार बाग, मॉडल टाउन, अशोक विहार और पश्चिमी दिल्ली के पश्चिम विहार, विकासपुरी, उत्ताम नगर, राजौरी गार्डन, जनकपुरी, मीरा बाग, द्वारका से सटे इलाके, बिजवासन, नजफगढ़, इत्यादि में सीवरेज व्यवस्था बहुत खराब है। आए दिन सड़कों पर सीवर का पानी बहता रहता है, जिससे लोगों का वहां से गुजरना मुश्किल हो जाता है। मॉडल टाउन में बारिश के दिनों में लोगों के घरों में सीवर का पानी घुस जाता है और बाढ़ जैसा नजारा हो जाता है। पूर्वी दिल्ली के शाहदरा, गुड़हाई मोहल्ला, मोहल्ला मेहराम, भोलानाथ नगर, गीता कॉलोनी, शकरपुर, इत्यादि क्षेत्रों में भी सीवरेज समस्या अपने विकराल रूप में मौजूद है। यहां तो पॉश इलाकों का भी बुरा हाल है। पिछले एक सप्ताह से आइपी एक्सटेंशन के पास बनी अनधिकृत कॉलोनी में सीवर जाम होने से पॉश इलाके आइपी एक्सटेंशन की सड़कों पर भी पानी भरा हुआ है। सीवर जाम से यहां लोग बुरी तरह परेशान हैं। सीवरेज व्यवस्था की दिल्ली की यह तस्वीर यह बयां करती है कि जल बोर्ड सीवरेज व्यवस्था में सुधार करने की दिशा में कुछ खास नहीं कर पा रहा है। ऐसे में उसे चाहिए कि वह शुल्क वसूलने के साथ लोगों को अच्छी सीवरेज व्यवस्था मुहैया कराए ताकि दिल्लीवासियों को शुल्क देने में कोई परेशानी न हो।
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