Saturday, February 26, 2011

जमीन हथियाने की साजिश रची गई।

दोषी अधिकारी की पेंशन रुकी लेकिन चौथू को नहीं मिली भूमि, दबाव में सरकारी मशीनरी के हाथ बंधे, सूचना के अधिकार के तहत अर्जी ....
के बाद भी नहीं दे रहे जानकारी
विनोद चतुर्वेदी...

जयपुर,26 फरवरी।
कूटरचित दस्तावेजों से एक काश्तकार की बेशकीमती जमीन हड़पने के षड्यंत्र की जांच में पुष्टि हो जाने पर राज्यपाल के निर्देश पर तत्कालीन सेटलमेंट अधिकारी जयपुर और तहसीलदार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के बावजूद पीडि़त काश्तकार न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं।
प्रकरण में एक आईएएस पिता-पुत्र के अनुचित दबाव के चलते सरकारी मशीनरी के हाथ बंधे हुए हैं और येन-केन प्रकरेण काश्तकार परिवार को उसकी कब्जे काश्त से बेदखल करने के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं! प्रकरण का हैरतअंग्रेज पहलू पीडि़त काश्तकार का सेटलमेंट विभाग से प्रकरण से जुड़े तथ्यों की सत्यापित प्रतिलिपि आरटीआई के तहत मांगे जाने के बाद भी विभाग ने इस पर अब तक गौर नहीं किया। प्रकरण जिले की सांगानेर तहसील अंतर्गत अजमेर रोड स्थित भांकरोटा के समीपवर्ती गांव   केशोपुरा में 8 मील वालों की ढाणी निवासी वयोवृद्ध काश्तकार चौथू से जुड़ा है। चौथू की खसरा नम्बर 409/3 (नए खसरा नंबर 386) में चंदा पुत्र रामकुंवार के साथ 16 बीघा 13 बिस्वा में संवत 2005 की जमाबंदी में विभागीय लापरवाही से गोपी मंगल पुत्र रामनाथ दिवस 1/3 इंद्राज हो गया। प्रार्थी चौथू ने इस गलती का पता चलते ही एएसओ सांगानेर से 2 जून 1989 को दुरुस्ती करवा ली।
पीडि़त का आरोप है कि तत्कालीन भूप्रबंध आयुक्त ने अपील संख्या 34/89 के जरिए अनुचित दबाव डालकर एएसओ सांगानेर के निर्णय को रद्द करवाकर उक्त भूमि की रजिस्ट्री अपने आईएएस पुत्र और भतीजे के नाम से करवा ली। इतना ही नहीं, विभाग के शीर्ष पद पर बैठे अधिकारी ने अपने पद का अनुचित दबाव डालकर अपने-अपने आईएएस पुत्र-भतीजे के नाम से आनन-फानन में नामांतरकरण खुलवा लिया। नामांतरकरण 72 पर रोक होने के बाद भी सेटलमेंट कमिश्नर के आगे आत्मसमर्पण करते हुए निचले स्तर के अधिकारियों ने नामांतरकरण संख्या 12 भी खोलकर दुस्साहस का परिचय दिया!
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को इस जालसाजी के तमाम सबूतों से अवगत करवाते हुए पीडि़त ने बताया क��� जिस समय अन्य काश्तकारों के साथ षड्यंत्र रचकर उसकी जमीन हथियाने की साजिश रची गई। उस समय सेटलमेंट अधिकारी बृजमोहन सिंह बारेठ और सेटलमेंट कमिश्नर जीआर यादव (आईएएस) थे। इस अन्याय के खिलाफ बुरी तरह से प्रताडि़त किए गए वृद्ध काश्तकार चौथू ने राज्य सरकार के समक्ष अपील की। इस पर राज्य सरकार ने तमाम जांच प्रक्रिया के बाद सामने आए परिणाम के आधार पर आदेश क्रमांक प.1 (219) कार्मिक/ क-3/92 दिनांक 8 दिसम्बर, 2000 से सेटलमेंट अधिकारी को दोषी मानते हुए सेवानिवृत्ति के बाद उसकी संपूर्ण पेंशन रोक दी।
पीडि़त का आरोप है कि सरकार के इस कड़े फैसले के बाद भी इस षड्यंत्र के असली सूत्रधार आईएएस पिता-पुत्र के खिलाफ कोई एक्शन नहीं हुआ और अब वे उसे और उसके परिवार को धनबल और बाहुबल से जमीन से बेदखल करने पर आमादा है। प्रकरण में गौर करने लायक तथ्य यह भी है कि काश्तकार की जमाबंदी में उसका 1/4 हिस्सा काटकर 1/3 कर दिया लेकिन इस कटिंग पर किसी अधिकारी/कर्मचारी के हस्ताक्षर भी नहीं हैं। साथ ही राजस्थान से बाहर पदस्थापित आईएएस के हस्ताक्षर विशेषज्ञ की जांच रिपोर्ट में सही नहीं बताए गए हैं। इन तमाम सबूतों के बाद भी पीडि़त काश्तकार को न्याय नहीं मिलना व्यवस्था पर करारा तमाचा है। पीडि़त ने मुख्यमंत्री से की गई गुहार में अपनी और अपने परिजनों की जान-माल की सुरक्षा की प्रार्थना की है।
राज्य सरकार की ओर से भूप्रबंधक अधिकारी जयपुर बृजमोहन सिंह बारेठ को दिए गए आरोप पत्र में वर्ष 1989 में उनके पदस्थापन काल में गांव केशोपुरा में विवादास्पद भूमि खसरा नंबर 386 रकबा 16 बीघा 13 बिस्वा जिसे तत्कालीन भूप्रबंध आयुक्त गणपत राम यादव अपने पुत्र एवं भतीजे के नाम से खरीदा। इस मामले की अपील उनके यहां दर्ज नहीं की गई और प्रकरण में गुण-अवगुण पर गौर किए बिना एएसओ के निर्णय को रद्द कर तत्कालीन भूप्रबंध आयुक्त को अनुचित लाभ पहुंचाने और अपने पद का दुरुपयोग करने के लिए भूप्रबंध अधिकारी जयपुर बृजमोहन सिंह को दोषी पाया गया। राजस्थान लोक सेवा आयोग की राय से सहमति व्यक्त करते हुए राज्यपाल ने इस जांच प्रकरण में बृजमोहन सिंह बारेठ आरएएस (सेवानिवृत्त) की शत-प्रतिशत पेंशन सदैव के लिए रोकने के आदेश पर अपनी मोहर लगा दी।

No comments:

Post a Comment