, मदुरई तमिलनाडु में चुनाव का रंग फीका है। इसलिए नहीं कि पूरे सूबे में कहीं भी झंडा, बैनर पोस्टर, होर्डिग व बड़े-बड़े कटआउट नहीं दिख रहे हैं, बल्कि इसलिए कि इस बार न तो महंगे गिफ्ट आइटम बंट पा रहे हैं और न ही मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए खुले आम नोटों की बरसात हो पा रही है। यह चुनाव आयोग की सख्ती का कमाल है, लेकिन चुनाव लड़ने व लड़ाने के बाजीगर कहां मानने वाले हैं। पैसा बंटना शुरू हो गया है और लोगों की धरपकड़ भी। हर रोज पैसा व उसे बांटने वाले पकड़े जा रहे हैं। पैसा बांटने में कोई पीछे नहीं है। कहीं द्रमुक के लोग पकड़े जा रहे हैं तो कहीं अन्नाद्रमुक के। चुनाव आयोग के आकड़ों के मुताबिक अभी तक 40 करोड़ रुपये के उपहार या नकद पकड़े जा चुके हैं और आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के 57 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितना पैसा बंट रहा होगा। अब जबकि चुनाव को मात्र चार दिन बाकी है उम्मीदवारों को मतदाताओं को लुभाने के लिए धन का ही सहारा ज्यादा है। शहरों में झुग्गी-झोपडि़यों और गांवों में सबसे ज्यादा धन पहुंच रहा है। सबसे ज्यादा आरोप द्रमुक पर लग रहे हैं। उसके नेता व केंद्रीय मंत्री अलागिरी के खिलाफ अदालत में जनहित याचिका लगाकर उनके दक्षिण तमिलनाडु में जाने पर रोक लगाने की मांग की गई है। यह क्षेत्र अलागिरी का प्रभाव क्षेत्र माना जाता है और आशंका है कि अंतिम समय में वे पैसा बांटकर मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करेंगे। इस मामले में अन्नाद्रमुक भी पीछे नहीं है। जयललिता श्रीरंगम से चुनाव लड़ रही है। वहां पर पास के ही त्रिची से आयोग ने छह करोड़ रुपये नकद पकड़े हैं। बताया जा रहा है कि यह पैसा श्रीरंगम जा रहा था। राजधानी चेन्नई में भी कई लोगों को पकड़ा गया है। दरअसल तमिलनाडु में चुनाव के समय महंगे गिफ्ट मसलन मिक्सर-ग्राइंडर-जूसर, कलर टीवी, मोटरसाइकिल, लैपटाप के साथ नकद राशि बंटती रही है। मतदाता भी इसके आदी हो गए हैं। वे भी आशा करते रहे हैं कि इस बार उन्हें क्या मिलता है। हालांकि आयोग की सख्ती से उम्मीदवार परेशान हैं कि कहीं फायदे की जगह नुकसान न हो जाए। ऐसे में गिफ्ट या नोट बांटने का काम भी एहतियात के साथ किया जाता है। तीन तरह की टीमें बनती हैं। एक घर-घर जाकर मतदाताओं की सूची बनाती है, दूसरी गिफ्ट देती है। तीसरी यह पता करती है कि पूरा माल पहुंचा या नहीं। लेकिन इस बार गफलत हो रही है। आयोग की सख्ती से यह त्रिस्तरीय व्यवस्था गड़बड़ा गई है।
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