चार धाम,
देवप्रयाग यदि आप अपना नाम बताएं और सामने बैठा पंडा-पुरोहित आपकी कई पीढि़यों के नाम बता दे तो आपको अचरज अवश्य होगा। जी हां, बद्रीनाथ धाम पहुंचने वाले श्रद्धालु चाहें तो अपने पुरखों की जानकारी पलक झपकते ही हासिल कर सकते हैं। दरअसल बद्रीनाथ के पंडे बहियों मे यहां आने वाले यात्रियों का रिकार्ड रखते आ रहे हैं और यह लेखा किसी अनमोल धरोहर से कम नहीं है। बद्रीनाथ में आने वाले तीर्थयात्रियों की पूजा-पाठ का दायित्व देवप्रयाग (टिहरी गढ़वाल) का पुरोहित समाज संभालता है। इनकी बहियों में राजा रजवाड़ों से लेकर स्वतंत्र भारत का इतिहास सिमटा हुआ है। सत्रहवीं शताब्दी से बहियों का प्रचलन सामने आया था। इससे पहले भोजपत्रों, ताम्रपत्रों का चलन था। देवप्रयाग नगर सहित 42 गांव के पुरोहितों की बहियों में भारत के चप्पे-चप्पे की जानकारी समाई हुई है। बदरीनाथ यात्रा पर आए तीर्थयात्रियों का नाम जाति, गोत्र, वंश, जिला, गांव, मोहल्ला सबकी जानकारी इनमें है। पुरोहितों के उपनाम भी उनके क्षेत्रानुसार यहां प्रचलन में है दिल्ली क्षेत्र का तीर्थ पुरोहित दिल्लीवाल, उसी तरह मेरठवाल, सागरवाल, प्रयागवाल, करोलीवाल, रीवांवाल आदि कहे जाते हैं। श्री बदरीपंडा पंचायत के तहत तीर्थ पुरोहितों के आठ थोकों की व्यवस्था बनी हुई है। पंडा पंचायत अध्यक्ष मुकेश भट्ट प्रयागवाल तीर्थ पुरोहितों की बहियों को महत्वपूर्ण सनद मानते हैं। उनके अनुसार देश के कई परिवारों का बंटवारों और फैसलों में कोर्ट भी इन्हें मान्य करता आया है। कई बहियां तो एक किलोमीटर लंबाई और 70 किलो वजन तक की भी हैं। पहले ये हरिद्वार से बद्रीनाथ लाई जाती थीं। बाद में इन बहियों को हरिद्वार, देवप्रयाग और बद्रीनाथ में रखा जाने लगा। काफी परिश्रम से बनी इन बहियों में भारत के प्रसिद्ध संतों राजनेताओं कलाकारों समाज सेवियों उद्योगपतियों आदि की वंशावलियां, उनके हस्ताक्षर सहित मौजूद हैं।
Good Knowledge ...
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