इसमें राष्ट्रीय स्तर पर लोकपाल और प्रांतीय स्तर पर लोकायुक्त नियुक्त करने की मांग की गई है। बिल के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर बने लोकपाल में अध्यक्ष सहित दस सदस्यीय समिति होगी। इनमें कम से कम चार विधि विशेषज्ञ शामिल रहेंगे। यह लोकपाल सर्वोच्च न्यायालय, चुनाव आयोग आदि की तरह स्वतंत्र संवैधानिक संस्था होगी। इस लोकपाल को भ्रष्टाचार से जुड़े सभी मामलों की जांच के अधिकार रहेंगे। सीवीसी, एंटी करप्शन ब्यूरो, सीबीआई समेत सभी एजेंसियां व संस्थाएं इसके अधीन होंगी। प्रस्ताव के अनुसार यह लोकपाल किसी भी मामले की जांच अधिकतम एक साल में पूरी करेगा और अगले एक साल में सजा दिलाएगा। राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र बनाने से लेकर एफआईआर न लिखने समेत सभी मामलों की शिकायत इस लोकपाल से की जा सकेगी। सरकारों को शायद लोकपाल के इस प्रारूप से इतना एतराज न होता अगर चयन का अधिकार उनके पास होता। इस जन लोकपाल के सदस्यों का चुनाव सरकार नहीं कर सकेगी। प्रस्तावित प्रारूप के अनुसार इसके लिए राज्यसभा व लोकसभा के अध्यक्षों, सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, उच्च न्यायालयों के दो वरिष्ठतम मुख्य न्यायाधीश, भारतीय मूल के सभी नोबल पुरस्कार विजेता, अंतिम दो मैग्सेसे पुरस्कार विजेता, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष, सीएजी, मुख्य चुनाव आयुक्त, भारत रत्न से सम्मानित लोग व पूर्व लोकपाल चयन समिति के सदस्य गणों को मिलाकर एक चयन समिति बनाई जाएगी। यह समिति जनता के साथ सामंजस्य बिठाकर सदस्यों का चुनाव करेगी। चयन प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी रहेगी। सारा पेच इसी पर फंसा है।
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