ठ्ठ जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली अन्ना हजारे का अनशन तोड़ने के लिए सरकार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कानूनों में ढील देने के लिए मजबूर किया। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी भी इस गतिरोध को किसी भी कीमत पर खत्म करने के लिए सरकार पर दबाव बना रहे थे। सरकार अन्ना हजारे व अनशनकारियों की मांगों को असंवैधानिक बताकर उन्हें मानने के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन सोनिया और राहुल ने सरकार को हजारे की मांग मानने को बाध्य किया। हर समस्या के समाधान के बाद कांग्रेस नेतृत्व को श्रेय देने की होड़ तत्काल शुरू हो गई है। कुल मिलाकर अनशन या आंदोलन पांच दिन लंबा खिंचने का दोष फिर सरकार पर है। कांग्रेस के सांसद एसएमएस कर सोनिया को इस एतिहासिक कदम के लिए बधाई दे रहे हैं। कांग्रेस से अंदरखाने यह भी बताया जा रहा है कि आमरण अनशन पर बैठने की अन्ना की चेतावनी के बावजूद अगर सोनिया ने हस्तक्षेप नहीं किया तो उसकी वजह सरकार ही थी। दरअसल, सूचना के अधिकार कानून में संशोधन के खिलाफ जब अन्ना अनशन पर बैठने वाले थे तो सोनिया ने उनसे भेंट की थी। वह सरकारी प्रस्ताव गिर गया था तो अन्ना का अनशन मुल्तवी हो गया था। कांग्रेस सूत्र बता रहे हैं कि इस दफा अन्ना के पत्र और चेतावनी का जवाब सोनिया से न देने को कहा गया था। सरकार का आग्रह था कि इस तरह हर बात पर अगर सोनिया आंदोलनकारियों से मिलती रहीं और हस्तक्षेप करती रहीं तो सरकार के लिए शासन मुश्किल होगा। इसीलिए, सोनिया ने शुरू में इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया। जब बात आगे बढ़ी तो भी सरकार फिर अधिसूचना जारी करने और पूरी तरह झुकने पर राजी नहीं थी, लेकिन सोनिया और राहुल के हस्तक्षेप के बाद आंदोलनकारियों की सारी शर्ते मान ली गई। शुक्रवार को आंदोलनकारियों पर गरज रहे कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की शनिवार को भाषा बदली हुई थी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने हमेशा ही भ्रष्टाचार से लड़ने को सर्वोच्च प्राथमिकता में रखा। लोकपाल विधेयक का प्रारूप तय करने के लिए आंदोलनकारियों की मांग को मंजूर करना उसी का परिचायक है।
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