Saturday, April 9, 2011

Mahamrityunjaya Mantra

In the Rig-Veda, 4/52/12 the mantra has been recorded as:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌।
“I pray and seek the blessings of the three-eyed Lord Shiva. May I become free from the bondage of death just like a nourishing melon with your blessings, and not with the celestial nectar”.
Mahamrityunjaya Mantra energised with the Mritsanjivini Vidya devised by Shukracharya. This is called Mritsanjeevani Mahamrityunjaya Mantra:
मृतसंजीवनी महामृत्युंजय मंत्र
ॐ ह्रौं जूं सः। ॐ भूर्भवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌।
उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जूं ह्रौं ॐ ।
यह मंत्र सर्वाधिक फल देने वाला माना गया है। कुछ लघु मंत्र भी प्रयोग कर सकते हैं, जैसे -
त्र्यक्षरी अर्थात तीन अक्षरों वाला – ॐ जूं सः
पंचाक्षरी ॐ हौं जूं सः ॐ

It can sure avert death if Mahamrityunjaya Mantra chanted properly.
मंत्र जप की पूर्वनिर्धारित संख्या पूर्ण होने पर उस संख्या की ददांश संख्या में महामृत्युंजय मंत्र के अंत में “स्वाहा” शब्द जोड़कर आहुतियाँ देते हुए हवन करें ।
 It is customary to chant the mantra 125 thousand times over a period to promote long life. The responsibility to chanting the mantra can be entrusted to a responsible Brahmin priest.
In the Padampuran there is a mention of the Mahamrituanjaya mantra as composed in hymn form by Maharishi Markanday.

No comments:

Post a Comment