जनतंत्र की जीत
लोकपाल विधेयक पर सरकार को झुकाने के बाद प्रख्यात समाजसेवी अन्ना हजारे ने शनिवार, 9 अप्रैल को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर पांच दिन से जारी अपना आमरण अनशन समाप्त कर दिया। 73 वर्षीय हजारे को नींबू-पानी पिलाती एक मासूम बच्ची। साथ हैं देश की पहली महिला आइपीएस और सामाजिक कार्यकर्ता किरण बेदी।
जनता ही जनार्दन
लोकपाल विधेयक पर सरकार को झुकाने के बाद प्रख्यात समाजसेवी अन्ना हजारे ने पांच दिन से जारी अपना आमरण अनशन समाप्त कर दिया। लेकिन अन्ना ने पहले अपने समर्थकों को नींबू-पानी पिलाकर उनका अनशन समाप्त करवाया।लोगों को जैसे बस इंतजार था। ऊब, खीज, क्षोभ और पीड़ा का लावा बस सब्र के मुहाने पर फंसा हुआ था। इसके निकलने या क्रोध की अभिव्यक्ति को दिशा नहीं मिल रही थी, न ही कोई जननायक दिख रहा था। अंग्रेजी में कहते हैं, ऐज इफ पीपुल वेअर वेटिंग फॉर सम वन। अन्ना हजारे बस वही जननायक थे, जिनका सबको इंतजार था। बस फिर क्या था अनशन शुरू करने के ठीक 97 घंटे बाद उनके पास लोक था और तंत्र पूरी तरह विवश अपने घुटनों के बल झुका दिखाई दे रहा था। ये 97 घंटे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के तंत्र की दिशा को 180 डिग्री के कोण पर मोड़ देने वाले रहे। कारण रहा लोक का अभूतपूर्व और स्वत: स्फूर्त समर्थन। यह असली लोक था, अक्सर किसी प्रलोभन या धन के बल पर लाई जाने वाली भीड़ नहीं। इनके जुटने के पीछे न किसी राजनीतिक दल के सांगठनिक ढांचे की ऊर्जा थी, न किसी धर्म की पुकार। मगर गांधी टोपी पहने सात दशक पार कर चुके एक बूढ़े की ईमानदार अपील ने लोक को आंदोलित कर दिया। अक्सर जिस वर्ग पर वोट न देने की तोहमत लगती है, वह भी इस जन आंदोलन में शरीक था। लोगों में सभी राजनीतिक दलों, उनके नेताओं और वोट के सौदागरों को लेकर एक किस्म की खीझ और क्षोभ था। शायद इसी वजह से ओम प्रकाश चौटाला, उमा भारती, शरद यादव और मेनका गांधी ने अन्ना के साथ आना चाहा तो लोगों ने उन्हें नाकाम कर दिया। कृषि मंत्री शरद पवार के कम से कम 4 मंत्रियों की बलि तो अन्ना पहले ही ले चुके हैं, इस बार शरद पवार को ही केंद्र सरकार के मंत्रियों के एक प्रमुख समूह (जीओएम) से बाहर होना पड़ा। अन्ना का अनशन 5 अप्रैल को शुरू हुआ और 92 साल पहले 6 अप्रैल को गांधी ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह शुरू किया था। तब मोहन दास करमचंद गांधी भी महात्मा नहीं सिर्फ मिस्टर गांधी थे। मगर उनको जिस तरह लोगों ने स्वत: स्फूर्त समर्थन दिया वह अभूतपूर्व था। रॉलेट सत्याग्रह के दौरान तो हालत यह हुई कि गांधी जी ने एक-दो दिन के अंदर उपवास वापस ले लिया, लेकिन तब ऐसे सीधे प्रसारण वाले जन संचार माध्यम तो छोडि़ए, संचार की व्यवस्था ही नहीं थी। गांधी की ओर से आंदोलन वापस ले लिए जाने के बाद भी देश के दूर-दराज के हिस्सों में लंबे समय तक हड़ताल चली, लेकिन इसी सत्याग्रह के बाद एक नए गांधी का अवतार हो गया। गांधी कम से कम कांग्रेस के लिए दूसरे नेताओं से बहुत ऊंचाई पर खड़े थे। वह दिशा तय करते थे और सारे नेता उनके पीछे होते थे। अन्ना ने लोक भावना को वही दिशा दे दी है। 97 घंटे चली इस घटना का फलीभूत सिर्फ एक गजट नोटिफिकेशन या साझा समिति नहीं। सख्त प्रावधानों वाला लोकपाल बिल भर नहीं। यह हमारे लोक और तंत्र दोनों की दिशा बदलने वाला है।
लोगों को जैसे बस इंतजार था। ऊब, खीज, क्षोभ और पीड़ा का लावा बस सब्र के मुहाने पर फंसा हुआ था। इसके निकलने या क्रोध की अभिव्यक्ति को दिशा नहीं मिल रही थी, न ही कोई जननायक दिख रहा था। अंग्रेजी में कहते हैं, ऐज इफ पीपुल वेअर वेटिंग फॉर सम वन। अन्ना हजारे बस वही जननायक थे, जिनका सबको इंतजार था। बस फिर क्या था अनशन शुरू करने के ठीक 97 घंटे बाद उनके पास लोक था और तंत्र पूरी तरह विवश अपने घुटनों के बल झुका दिखाई दे रहा था। ये 97 घंटे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के तंत्र की दिशा को 180 डिग्री के कोण पर मोड़ देने वाले रहे। कारण रहा लोक का अभूतपूर्व और स्वत: स्फूर्त समर्थन। यह असली लोक था, अक्सर किसी प्रलोभन या धन के बल पर लाई जाने वाली भीड़ नहीं। इनके जुटने के पीछे न किसी राजनीतिक दल के सांगठनिक ढांचे की ऊर्जा थी, न किसी धर्म की पुकार। मगर गांधी टोपी पहने सात दशक पार कर चुके एक बूढ़े की ईमानदार अपील ने लोक को आंदोलित कर दिया। अक्सर जिस वर्ग पर वोट न देने की तोहमत लगती है, वह भी इस जन आंदोलन में शरीक था। लोगों में सभी राजनीतिक दलों, उनके नेताओं और वोट के सौदागरों को लेकर एक किस्म की खीझ और क्षोभ था। शायद इसी वजह से ओम प्रकाश चौटाला, उमा भारती, शरद यादव और मेनका गांधी ने अन्ना के साथ आना चाहा तो लोगों ने उन्हें नाकाम कर दिया। कृषि मंत्री शरद पवार के कम से कम 4 मंत्रियों की बलि तो अन्ना पहले ही ले चुके हैं, इस बार शरद पवार को ही केंद्र सरकार के मंत्रियों के एक प्रमुख समूह (जीओएम) से बाहर होना पड़ा। अन्ना का अनशन 5 अप्रैल को शुरू हुआ और 92 साल पहले 6 अप्रैल को गांधी ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ सत्याग्रह शुरू किया था। तब मोहन दास करमचंद गांधी भी महात्मा नहीं सिर्फ मिस्टर गांधी थे। मगर उनको जिस तरह लोगों ने स्वत: स्फूर्त समर्थन दिया वह अभूतपूर्व था। रॉलेट सत्याग्रह के दौरान तो हालत यह हुई कि गांधी जी ने एक-दो दिन के अंदर उपवास वापस ले लिया, लेकिन तब ऐसे सीधे प्रसारण वाले जन संचार माध्यम तो छोडि़ए, संचार की व्यवस्था ही नहीं थी। गांधी की ओर से आंदोलन वापस ले लिए जाने के बाद भी देश के दूर-दराज के हिस्सों में लंबे समय तक हड़ताल चली, लेकिन इसी सत्याग्रह के बाद एक नए गांधी का अवतार हो गया। गांधी कम से कम कांग्रेस के लिए दूसरे नेताओं से बहुत ऊंचाई पर खड़े थे। वह दिशा तय करते थे और सारे नेता उनके पीछे होते थे। अन्ना ने लोक भावना को वही दिशा दे दी है। 97 घंटे चली इस घटना का फलीभूत सिर्फ एक गजट नोटिफिकेशन या साझा समिति नहीं। सख्त प्रावधानों वाला लोकपाल बिल भर नहीं। यह हमारे लोक और तंत्र दोनों की दिशा बदलने वाला है।
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