Saturday, April 9, 2011

अन्ना हजारे


नई दिल्ली केंद्र सरकार ने लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए मंत्रियों और गैर सरकारी सदस्यों वाली साझा समिति के गठन की अधिसूचना शुक्रवार देर रात जारी कर दी। शनिवार की सुबह इसकी प्रति हाथ में आते ही समाजसेवी अन्ना हजारे ने चार दिन से चला आ रहा अपना अनशन तोड़ दिया। साथ ही उन्होंने कहा है कि इसे कानून में तब्दील होने तक जब भी बाधा आएगी, वे फिर से आंदोलन का झंडा उठा खड़े हो जाएंगे। अन्ना ने देश भर में दौरा कर एक जन संगठन खड़ा करने का एलान भी किया है।
अपने 97 घंटे के अनशन के बाद अन्ना ने शनिवार की सुबह लगभग 11 बजे एक बच्ची के हाथों नींबू पानी पी कर अपना अनशन तोड़ा। इससे पहले उन्होंने अपने साथ धरने पर बैठे लगभग पांच सौ समर्थकों का अनशन तुड़वाया। इस मौके पर उन्होंने अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए यह भी स्पष्ट कर दिया कि यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है। राजनेता आसानी से यह कानून पास होने नहीं देंगे, क्योंकि इससे उनके अधिकारों में कमी आएगी। जबकि वे खुद यह सुनिश्चित करवाएंगे कि यह 15 अगस्त तक कानून की शक्ल ले ले। उन्होंने कहा कि इसके रास्ते में जहां भी बाधा आएगी, वे खुद तिरंगा लेकर वहां पहुंच जाएंगे। उन्होंने देश के अलग-अलग शहरों में अपने साथ अनशन पर बैठे समर्थकों से मिलने के लिए देश भर का दौरा करने और भविष्य के आंदोलन को व्यवस्थित करने के लिए एक संगठन तैयार करने का एलान भी किया।
शुक्रवार शाम को अन्ना के प्रतिनिधियों से बातचीत के बाद समझौते का फार्मूला तैयार होने के साथ ही सरकार ने अपना काम शुरू कर दिया था। सरकारी मशीनरी को पूरी रफ्तार देते हुए उसी तारीख में सरकारी आदेश जारी कर उसे गजट अधिसूचना के तौर पर प्रकाशित भी करवा दिया गया। शनिवार की सुबह नौ बजे जब अन्ना की ओर से स्वामी अग्निवेश टेलीकॉम मंत्री कपिल सिब्बल के यहां पहुंचे तो यह अधिसूचना तैयार थी। दरअसल, सरकार ने सिर्फ एक आदेश [जीओ] जारी करने को मंजूरी दी थी। उससे भी एक कदम आगे बढ़ाते हुए अपनी तरफ से ही इसे अधिसूचित करने का भी फैसला कर लिया। अग्निवेश ने इसका स्वागत करते हुए सरकार का धन्यवाद भी किया।
अनशन पर बैठे अन्ना के पास जब सरकारी अधिसूचना की प्रति पहुंची तो वहां बैठे उनके समर्थक खुशी से झूम उठे। मंच पर किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल ने तिरंगा लहरा कर लोगों का अभिवादन किया। अधिसूचना की प्रति अन्ना के हाथों में एक पदक की तरह सज रही थी। कई दिन से अनशन पर बैठे उनके समर्थकों में से कई की आंखें खुशी से भर आई थीं।
लोकपाल के बाद अन्ना का एजेंडा
नई दिल्ली। अन्ना ने अपने समर्थकों के सामने अपने भविष्य के आंदोलन का एजेंडा भी घोषित कर दिया। उन्होंने कहा कि लोकपाल की लड़ाई के बाद भी अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। भविष्य में उनके एजेंडे पर तीन विषय सबसे अहम हैं। अन्ना के मुताबिक लोकपाल का कानून बनने के बाद सत्ता के विकेंद्रीकरण, जन प्रतिनिधियों को वापस बुलाने के अधिकार और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की व्यवस्था में सुधार पर वे अपना ध्यान लगाएंगे।
गतिरोध तोड़ने का श्रेय सोनिया को देने की होड़
आंदोलन लंबा खिंचने का ठीकरा सरकार पर
नई दिल्ली  अन्ना हजारे का अनशन तोड़ने के लिए सरकार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कानूनों में ढील देने के लिए मजबूर किया! कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी भी इस गतिरोध को किसी भी कीमत पर खत्म करने के लिए सरकार पर दबाव बना रहे थे! सरकार अन्ना हजारे व अनशनकारियों की मांगों को असंवैधानिक बताकर उन्हें मानने के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन सोनिया और राहुल ने सरकार को हजारे की मांग मानने को बाध्य किया।
हर समस्या के समाधान के बाद कांग्रेस नेतृत्व को श्रेय देने की होड़ तत्काल शुरू हो गई है। कुल मिलाकर अनशन या आंदोलन पांच दिन लंबा खिंचने का दोष फिर सरकार पर है। कांग्रेस के सांसद एसएमसएस कर सोनिया को इस 'ऐतिहासिक कदम' के लिए बधाई दे रहे हैं। इतना ही नहीं, कांग्रेस से अंदरखाने यह भी बताया जा रहा है कि आमरण अनशन पर बैठने की अन्ना की चेतावनी के बावजूद अगर सोनिया ने हस्तक्षेप नहीं किया तो उसकी वजह सरकार ही थी। दरअसल, सूचना के अधिकार कानून में संशोधन के खिलाफ जब अन्ना अनशन पर बैठने वाले थे तो सोनिया ने उनसे मुलाकात की थी। वह सरकारी प्रस्ताव गिर गया था तो अन्ना का अनशन मुल्तवी हो गया था।
कांग्रेस के सूत्रों से बताया जा रहा है कि इस दफा अन्ना के पत्र और चेतावनी का जवाब सोनिया से न देने को कहा गया था। सरकार का आग्रह था कि इस तरह हर बात पर अगर सोनिया आंदोलनकारियों से मिलती रहीं और हस्तक्षेप करती रहीं तो सरकार के लिए शासन मुश्किल होगा। इसीलिए, सोनिया ने शुरू में इस मामले में हस्तक्षेप नहीं किया। जब बात आगे बढ़ी तो सरकार फिर भी अधिसूचना जारी करने और पूरी तरह झुकने पर राजी नहीं थी, लेकिन सोनिया और राहुल के हस्तक्षेप के बाद आंदोलनकारियों की सारी शर्ते मान ली गई। शुक्रवार को आंदोलनकारियों पर गरज रहे कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की शनिवार को भाषा बदली हुई थी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने हमेशा ही भ्रष्टाचार से लड़ने को सवोच्च्च प्राथमिकता में रखा। लोकपाल विधेयक का प्रारूप तय करने के लिए आंदोलनकारियों की मांग को मंजूर करना उसी का परिचायक है।
अन्ना हजारे की जमीन के सितारे
 समाजसेवी अन्ना के अनशन के 97 घंटों के दौरान सबसे मुश्किल काम था दुनिया भर से उमड़ रहे समर्थन को संभालना और उसे सही अभिव्यक्ति देना। इस काम को संभाला 25 से 30 साल के छात्रों और युवाओं ने। ये आमरण अनशन पर नहीं बैठे, लेकिन इनकी वजह से ही अन्ना के साथ एक-एक कर पांच सौ लोग व्यवस्थित तरीके से अनशन पर बैठे, लाखों लोगों ने वहां पहुंच कर और करोड़ों ने दूसरे तरीकों से आंदोलन को समर्थन दिया और कहीं कोई अव्यवस्था नहीं हुई।
अन्ना के इन सैनिकों ने दो महीने पहले से इस आंदोलन की जमीन तैयारी की थी। बसों में घूम कर पर्चे बांटे। स्कूल-कॉलेजों में जा कर छोटी-छोटी सभाएं कीं। फिर जब समर्थन का महासमुद्र उमड़ा तो उसे बांधे रखने का मुश्किल काम भी किया। सरकार के साथ बातचीत करने वाले किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल और स्वामी अग्निवेश को तो सभी ने जाना, लेकिन इनके पीछे तमाम अनाम सिपाही थे, जिन्होंने अलग-अलग मोर्चे पर अन्ना के लिए मोर्चा संभाला था।
अन्ना के सिपाही :
1. सुरेश पठारे : अन्ना के सबसे पुराने और खास सिपहसलार। अनशन के दौरान भी उनके स्वास्थ्य और दिनचर्या से ले कर सरकार के साथ बातचीत की उनकी रणनीति तक में इनका अहम किरदार रहा।
2. मनीष सिसोदिया : न्यूज चैनल की नौकरी छोड़ लगभग दस साल पहले आरटीआइ आंदोलन में अन्ना के साथ जुड़े मनीष अनशन के दौरान अन्ना की आंख और कान बने रहे। अन्ना ने अपना मंच संभालने की जिम्मेदारी इन्हीं को दी थी।
3. नीरज : पीएचडी कर रहे 28 साल के नीरज वार रूम के मुख्य रणनीतिकार थे। सबसे ज्यादा जोर इस बात पर दिया कि उत्साही नौजवान कोई ऐसा तरीका न अपनाएं, जो अहिंसक आंदोलन का स्वरूप खराब करे।
4. आश्वती : तैयारियों से लेकर अनशन के चार दिनों के दौरान की हर पल की जानकारी देशी-विदेशी मीडिया को मुहैया करवाने का जिम्मा जनसंचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा कर चुकीं 27 साल की आश्वती के पास था।
5. गौरव बख्शी : एसएमएस, फेसबुक, ट्विटर और इंडिया अगेंस्ट करप्शन की वेबसाइट पर मोर्चा संभाला था जार्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी से एमबीए कर कुछ समय पहले तक वहीं नौकरी कर रहे गौरव ने।
6. विभव : अपनी हेल्पलाइन के जरिए हर मिनट औसतन छह लोगों को अन्ना के स्वास्थ्य से लेकर डोनेशन तक की जानकारी दी। प्रचार सामग्री का काम भी संभाला।
7. श्वाति : दिल्ली में जंतर-मंतर पर लगातार बढ़ती जा रही भीड़ को संभालने, आमरण अनशन पर बैठे पांच सौ लोगों के स्वास्थ्य और दिनचर्या का ध्यान रखा।
दम तोड़ जाते हैं लोकसेवकों के खिलाफ ज्यादातर मामले
नई दिल्ली  अन्ना हजारे के अनशन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल विधेयक के औचित्य पर बीते दिनों भले ही कई सवाल उठे हों। लेकिन लोक सेवकों के भ्रष्टाचार से मुकाबले की मौजूदा व्यवस्था की खस्ताहाल तस्वीर हर सवाल पर विराम लगाने को काफी है। हालत यह है कि सीवीसी और सीबीआइ के पास आने वाले भ्रष्टाचार की ज्यादातर शिकायतें बगैर किसी मुकाम पर पहुंचे ही दम तोड़ जाती हैं।
आंकड़ों की खिड़की से देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाली सीबीआइ और केंद्रीय सतर्कता आयोग [सीवीसी] जैसी दो अग्रणी संस्थाएं बेहद कमजोर हाल नजर आती हैं। स्टाफ की कमी और शिकायतों के निपटारे की ढीली व्यवस्था का शिकार दोनों ही हैं। 2010 के अंत में अदालत के पास लटके सीबीआइ मामलों की संख्या साढ़े नौ हजार से ज्यादा थी। जिनमें दो हजार से ज्यादा मामले तो दस साल से अधिक वक्त से लटके हैं। इस फेहरिस्त में 639 मामले तो ऐसे हैं जिनका फैसला 15 से 20 सालों में भी नहीं हो सका है।
शोध संस्था पीआरएस इंडिया के मुताबिक लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार मामलों में कार्रवाई के लिए संबंधित सरकार की इजाजत जरूरी होती है और यह व्यवस्था ईमानदार अधिकारियों को प्रताड़ना से बचाती भी है। लेकिन अनुमति देने में देरी से इस प्रावधान के दुरुपयोग संभव है। आंकड़े बताते हैं कि 2010 के वर्षात तक केंद्र सरकार ने इस बाबत आई 236 अर्जियों का जवाब तक नहीं दिया था और इसमें से साठ फीसदी मामले तीन महीने से अधिक समय से अनुमति का इंतजार कर रहे थे। इसके अलावा केवल छह फीसदी मामले में ही मुकदमा दर्ज किया गया। बल्कि 94 प्रतिशत मामलों में विभागीय दंड से मामला निपटा दिया गया।
भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में कार्रवाई को लेकर लोगों के बीच केंद्रीय सतर्कता आयोग जैसी संस्था की साख को भी आंकड़े आइना दिखाते हैं। सुप्रीम कोर्ट से 2004 में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वालों की शिकायत पर कार्रवाई का अधिकार मिलने के बावजूद सीवीसी के पास पांच साल में 1731 शिकायतें ही आई। यानी औसतन साल में केवल 346 शिकायतें। हालांकि सरकार ने 2010 में लोक हित खुलासे के लिए एक कानून पेश किया है जो इन दिनों संसदीय समिति के पास है।

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