वॉशिंगटन, एजेंसी : इराक, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में घोर मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोप झेल रहे अमेरिका ने भारत पर मानवाधिकार उल्लंघन के गंभीर आरोप लगाए हैं। साल 2010 में विभिन्न देशों में मानवाधिकार स्थिति पर अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा तैयार रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर के राज्यों और नक्सली इलाकों में गैरकानूनी हत्याएं और संदिग्ध अपराधियों और चरमपंथियों की हिरासत में होने वाली मौत को लेकर सरकार की भूमिका के ऊपर सवाल उठाया गया है। वर्ष 2010 में विश्व में मानवाधिकार की स्थिति पर भारत सहित कुल 190 देशों की स्थिति पर ऐसी रिपोर्ट तैयार की गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 1984 से 1994 के बीच पंजाब में चरमपंथ से लड़ाई के दौरान जो उत्पीड़न हुआ, भारत सरकार की तरफ से उसकी जवाबदेही तय करने की दिशा में कोई अधिकारिक प्रगति नहीं हुई। इसके अलावा वर्ष 2002 में गुजरात में हुई हिंसा को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा उठाए गए प्रश्नों का जिक्र भी इस रिपोर्ट में है। नक्सली और आतंकी भी मानवाधिकार के दोषी : मानवाधिकार हनन को लेकर जम्मू कश्मीर में भले ही सुरक्षाबलों की आलोचना की जाती हो, लेकिन इसका एक दूसरा पहलू भी है। अमेरिका के विदेश विभाग की रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर और देश के पूर्वोत्तर में आतंकियों, अलगाववादियों और नक्सलियों को गंभीर मानवाधिकार हनन का दोषी पाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में आतंकियों और अलगाववादियों और माओवादी ने मानवाधिकारों का उल्लंघन किया है। इसमें सशस्त्र सैन्यबलों, पुलिस, सरकारी अधिकारी और नागरिकों की हत्या शामिल है। अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन द्वारा जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार, चरमपंथियों ने बलात्कार, सर कलम, वसूली, अपहरण और यातना देने जैसी घटनाओं को अंजाम दिया। हालांकि पिछले साल के मुकाबले इस साल घटनाओं में कमी दर्ज की गई। रिपोर्ट में सरकार और इसके एजेंटो को भी हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघन का दोषी बताया गया है। भ्रष्टाचार के आरोप भी जड़े : अमेरिका की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत की सरकारों और पुलिस में हर लेवल पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। खासतौर पर यहां अल्पसंख्यकों पर हुए हमलों में न्याय के मामले में जानबूझ कर देरी की जाती है। इसके अलावा रिपोर्ट में जातीय आधार पर हमले, घरेलू हिंसा, बाल विवाह, दहेज हत्या और ऑनर किलिंग का जिक्र भी किया गया है। साथ ही कन्या भू्रण हत्या पर भी चिंता जताई गई है। अपने गिरेबां में झांकना भूले : 190 देशों पर रिपोर्ट तैयार करते वक्त अमेरिकी विदेश विभाग मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में शायद खुद को आंकना भूल गया। हाल ही में विकिलीक्स के खुलासों में यह सामने आया है कि इराक और अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना न केवल आम नागरिकों की हत्याओं में शामिल रही, बल्कि ऐसे मामलों की अनदेखी भी की। ज्यादा दिन नहीं हुए हैं जब अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो ने अफगानिस्तान में एक हमले में कई आम नागरिकों को मार डाला था। इनमें राष्ट्रपति हामिद करजई का रिश्तेदार भी शामिल था। इस घटना के बाद करजई ने नाटो को तुरंत देश छोड़कर चले जाने तक को कह दिया था। इसके अलावा अफगानस्तिान से लगी पाक सीमा पर भी अमेरिकी जहाज आए दिन आम लोगों को निशाना बनाते रहते हैं।
- शाहजहांपुर अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में पूरा देश उनके साथ खड़ा था, लेकिन सैनिक फैय्याज खान ने सिस्टम के खिलाफ अकेले ही जंग लड़ी। आखिर में उनकी मुहिम रंग लाई और सुप्रीम कोर्ट ने इस फौजी को न केवल बेदाग पाया, बल्कि उसे दुबारा सेना में शामिल करने का आदेश भी सुनाया। फैय्याज की कहानी कुछ-कुछ बॉलीवुड फिल्म माइ नेम इज खान से मिलती जुलती है। फर्क सिर्फ इतना है कि फिल्म के हीरो शाहरुख खान ने पराए (अमेरिकन) लोगों के बीच खुद को बेदाग साबित किया। वहीं, सच्चाई की इस जंग में फैय्याज का सामना अपनों से ही था। निगोही के गांव इनायतपुर में रहने वाले फैय्याज के पिता रियाज मोहम्मद खां सरकारी टीचर थे। सबसे बड़े बेटे फैय्याज ने कई नौकरियां करने के बाद 1997 में भारतीय सेना में शामिल हो गया। फैय्याज के पिता एक दिन बेटे से मिलने अरुणाचल जा पहुंचे जहां वह तैनात था। उनके पिता अपने बेटे से मिलकर अवध असम एक्सप्रेस से आर्मी के डिब्बे में बैठकर वापस घर आ रहे थे कि डिब्बे में मौजूद सेना के जवानों ने उनसे उतरने को कहा। उन्हें दो दिन हिरासत में रखा गया। इसके बाद असम के बागडोगरा स्थित 101 आर्मी सब एरिया ले जाया गया। उनके ऊपर जासूसी का आरोप लगाते हुए जलपाईगुड़ी के थाना भक्ती नगर में एफआइआर दर्ज करा दी गई। रियाज मोहम्मद को जलपाईगुड़ी पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया। हालांकि, पुलिस ने अपनी जांच में आरोपों को निराधार पाते हुए इस मामले में एफआर लगा दी। घटना फैय्याज के लिए किसी सदमे से कम नहीं थी। 26 अक्टूबर, 2004 को फैय्याज को सेना का पत्र मिला। उसमें लिखा था कि आपके पिता आतंकी संगठन से जुड़े हुए हैं। लिहाजा आपको सेना से निकाला जाता है। फैय्याज की याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने स्वीकार किया और सरकार को नोटिस भेजा। नौ दिसंबर को कोर्ट के आदेश पर सैन्य न्यायिक प्राधिकरण प्रधान खंडपीठ में केस ट्रांसफर कर दिया गया। 25 जनवरी, 2010 को प्राधिकरण के जस्टिस एके माथुर और ले. कर्नल जनरल एनएल नायडू की खंडपीठ ने फैय्याज की बर्खास्तगी को अवैध घोषित करते हुए इसे निरस्त कर दिया। इसके बावजूद उन्हें एक साल तक ज्वाइनिंग नहीं मिली। फरवरी, 2011 में फैय्याज की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई। सुप्रीम कोर्ट ने गत 4 अप्रैल को सेना को उसे वर्दी लौटाने का आदेश दे दिया।
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