Saturday, April 9, 2011

अनुपम खेर,भारतीय संविधान

दिल्ली में अन्ना हजारे के ऐतिहासिक अनशन ने केंद्र सरकार को हिला कर रख दिया और केंद्र के सबसे ताकतवर मंत्रियों में से एक शरद पवार को जीओएम से बाहर का रास्ता देखना पड़ा। इससे खिसियाई एनसीपी अन्ना हजारे के सामने तो बेबस है लेकिन उसने अन्ना का समर्थन कर रहे वरिष्ठ अभिनेता अनुपम खेर पर हल्ला बोल दिया है।भारतीय संविधान पर की गई टिप्पणी की विरोध में अभिनेता अनुपम खेर के घर पर पथराव किया गया है. भारतीय संविधान पर अभिनेता अनुपम खेर की टिप्पणी के विरोध में भारतीय रिपब्लिकन पार्टी (आरपीआई) के कार्यकर्ताओं ने कथित रूप से शनिवार को आठ बजे के करीब खेर के घर पर पथराव किया. जिस समय जुहू स्थित उनके घर पर पथराव हुआ, वह घर में मौजूद नहीं थे . पथराव से खेर के घर की कुछ खिड़कियों के शीशे टूट गए.बॉलीवुड अभिनेता अनुपम खेर के जुहू स्थित निवास पर शनिवार देर रात कम से कम दो अज्ञात लोगों ने पत्थर और बोतलें फेंकीं। घटना की पुष्टि करते हुए खेर ने कहा कि कुछ अज्ञात लोगों ने उनके घर पर पत्थर और बोतलें फेंकीं। खेर ने देर रात आईएएनएस को बताया, ''इस घटना में कोई घायल नहीं हुआ है और न ही घर को ज्यादा नुकसान पहुंचा है। अभी हम इस घटना की पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं करा रहे हैं।''जंतर-मंतर में अनशन के दौरान बुधवार को टेलिविजन को दिए साक्षात्कार में खेर ने संविधान को उठाकर फेंकने का कथित बयान दिया था। एनसीपी विधायक जितेंद्र आव्हाड ने ये मुद्दा विधानसभा में उठाया। संविधान के खिलाफ कथित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर फिल्म अभिनेता अनुपम खेर के खिलाफ महाराष्ट्र विधानसभा में शनिवार को विशेषाधिकार हनन का नोटिस लाया गया। विधानसभा अध्यक्ष दिलीप वाल्स पाटिल ने कहा कि उन्होंने सदस्यों की यह मांग स्वीकार कर ली है कि सदन में उनके बयान खेर के खिलाफ विशेषाधिकार नोटिस के रूप में माने जाएं। जन लोकपाल बिल के लिए अन्ना हजारे के अनशन के दौरान जंतर मंतर पहुंचकर उनका समर्थन करने वाले अनुपम खेर ने कहा था कि देश के संविधान को बदलने की जरूरत है, क्योंकि देश आज संविधान के गठन के समय से बहुत आगे बढ़ गया है।

लविवि के मालवीय सभागार में भारतीय संविधान की पृष्ठभूमि पर बोले न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू
भारतीय संविधान किन विचारों पर टिका है? और इसकी ताकत और खासियतें क्या हैं? लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में आयोजित डॉ.वीएन शुक्ल स्मृति व्याख्यान में इन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की गई। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू कार्यक्रम के मुख्य वक्ता थे। उन्होंने भारतीय संविधान, उसके संदर्भो और आजदी के समय के गंभीर हालात व दबावों पर खुल कर चर्चा की। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.आरके मिश्र कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे।
पश्चिमी चिंतन को भारतीय संविधान का आधार बताते हुए न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू ने कहा कि नागरिक अधिकार और राज्य संस्थाओं का जन्म हमारे संघर्षो की देन नहीं है।

पश्चिमी चिंतन पर टिका है भारतीय संविधान

भारतीय समाज में व्याप्त जाति प्रथा को विषमतामूलक व्यवस्था करार दिया। वर्तमान भारत के नब्बे फीसदी लोगों को अप्रवासियों का वंशज बताया और कहा कि भारत के मूल निवासी द्रविड़ नहीं बल्कि भील, संथाल, गोंड व टोंगा जैसी जनजातियां हैं। भारी विविधता के बीच एकता भारतीय संविधान का मूलतत्व है। आजादी के समय का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि आजाद भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का भारी दबाव था, लेकिन तत्कालीन राजनीतिक नेतृत्व ने संयम से काम लेते हुए देश को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया। मुख्य अतिथि प्रो.आरके मिश्र ने इस बात पर चिंता जताई कि न्यायाधीश और न्यायविद् न्याय की भारतीय जड़ों को तलाशने के बजाय पश्चिमी विधिक और राजनीतिक चिंतन पर ज्यादा तरजीह देते हैं। लविवि के कुलपति प्रो.मनोज कुमार मिश्र ने स्वागत भाषण देते हुए न्यायशास्त्र में नए सिरे से शोध पर बल दिया।

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