ट्रस्ट ने शाहपुरा थाने के पीछे बावड़ियाकलां की यह जमीन भाजपा कार्यकर्ता-पदाधिकारियों के लिए प्रशिक्षण संस्थान खोलने के लिए ली थी।
जस्टिस जीएस सिंघवी और एके गांगुली की पीठ ने बुधवार को दिए फैसले में राज्य सरकार की आवंटन प्रक्रिया को गलत ठहराते हुए आवंटन की अधिसूचना को रद्द कर दिया है।
अखिल भारतीय उपभोक्ता कांग्रेस के अध्यक्ष बीएस शर्मा ने हाईकोर्ट द्वारा जमीन आवंटन की प्रक्रिया को सही ठहराने के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका में जमीन के आवंटन को नियम विरुद्ध बताया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील और राज्य सरकार का तर्क सुनने के बाद 19 जनवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर ट्रस्ट के सचिव कैलाश जोशी ने प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया है।
पैसा लौटाए सरकार, कब्जा ले- सुप्रीम कोर्ट ने टाउन एंड कंट्री प्लानिंग कमिश्नर को जमीन अपने कब्जे में लेने के निर्देश दिए हैं,ताकि मास्टर प्लान के मुताबिक उक्त जमीन का आवासीय इस्तेमाल हो सके। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए कि ट्रस्ट को उसके द्वारा जमा प्रीमियम राशि लौटाई जाए।
ट्रस्ट ने क्यों मांगी थी जमीन?- पार्टी के कार्यकर्ताओं से लेकर पदाधिकारी, विधायक एवं सांसदों को प्रशिक्षण देने के लिए।
113 करोड़ की जमीन- मौजूदा कलेक्टर गाइड लाइन के हिसाब से इस जमीन की कीमत करीब 113 करोड़ रुपए आंकी जा रही है। ट्रस्ट की उक्त जमीन पर चारों तरफ बाउंड्रीवॉल बन चुकी है।
तल्ख टिप्पणी
जाति,संप्रदाय और धर्म के नाम पर जमीन का आवंटन समाज को बांटने वाला और वोट बैंक की राजनीति करने जैसा है। एक संस्था को मर्जी से जमीन देना दूसरों के समानता के मौलिक अधिकार का अतिक्रमण है।
आवंटन प्रक्रिया में गड़बड़ी क्या
25 सितंबर 2004 को राज्य सरकार ने उक्त जमीन के आरक्षण का प्रस्ताव भेजा था, जबकि कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट का गठन 25 दिसंबर 2004 को किया गया। भोपाल के मास्टर प्लान (2005) में यह जमीन भोपाल विकास प्राधिकरण की आवासीय योजना के लिए आरक्षित रखी गई थी। इसके बाद भी जमीन ट्रस्ट को आवंटित कर दी गई।
आवंटन के बाद सरकार ने इसका लैंड यूज आवासीय से गैर आवासीय कराया। इसमें टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की आपत्ति को भी दरकिनार कर दिया गया।
मामला क्या है?
19 जून 2006 को कैबिनेट की स्वीकृति के बाद कुशाभाऊ ट्रस्ट को जमीन आवंटित की गई थी। उस समय प्रचलित कलेक्टर गाइड लाइन के हिसाब से करीब सवा पांच करोड़ रुपए कीमत की जमीन महज 25 लाख रुपए में दे दी गई। इसके खिलाफ कोर्ट में अपील की गई थी। कलेक्टर गाइडलाइन के अनुसार वर्तमान में इसकी कीमत ११३ करोड़ रुपए आंकी गई है।
क्या थी आपत्ति?
उपभोक्ता कांग्रेस के श्री शर्मा ने बताया कि राज्य शासन ने ट्रस्ट को जमीन आवंटित करने के लिए इसका लैंड यूज तक बदल दिया था।
सरकार का तर्क था
राजनेताओं के नाम वाले ट्रस्टों को जमीन आवंटन गलत नहीं है, क्योंकि केंद्र और कई राज्य सरकारों ने बीते समय में मशहूर राजनीतिक हस्तियों के नाम वाले ट्रस्टों को काफी भूमि आवंटित की है।
आगे क्या?
सरकार ट्रस्ट को राशि लौटाकर जमीन वापस लेगी या विधि विशेषज्ञों से विचार-विमर्श कर पुनर्विचार याचिका दायर करने के बारे में निर्णय ले सकती है।
उन्होंने कहा कि मैं मानती हूं कि शुभ कार्य के लिए जमीन दी गई थी। मैं भी देती लेकिन मैं भू-आवंटन करती तो आवंटन रद्द नहीं होता। मेरे समय में सिर्फ घोषणा की गई थी, अगर मेरे समय में आवंटन होता तो मैं इस तरह का प्रावधान करती की वह रद्द न हो पाता। वैसे, मैं सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान करती हूं।
ट्रस्ट के सचिव कैलाश जोशी इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मशविरा करंगे।
एडीशनल सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया विवेक तनखा ने दैनिक भास्कर से फोन पर कहा कि कोर्ट का फैसला महत्वपूर्ण है। अब न सिर्फ मप्र बल्कि देश के किसी भी राज्य में ट्रस्ट या राजनीतिक संगठन को भूमि आवंटित करते समय पारदर्शी प्रक्रिया का पालन करना जरूरी होगा।
इस सवाल पर कि क्या सरकार को अब पुनर्विचार याचिका या अन्य किसी तरीके से राहत मिल सकती है, तनखा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों में रिव्यू की गुंजाइश काफी कम होती है। ऐसा तभी होता है जब प्रस्तुत साक्ष्यों या तथ्यों में कोई त्रुटि देखी गई हो।
ट्रस्ट के न्यासी सचिव और सांसद कैलाश जोशी कहते हैं कि फैसले का अध्ययन करने के बाद ही वे इस बारे में कोई टिप्पणी कर पाएंगे।
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